Monday 13 May 2024

समाज के सही नायक और अपराधी

करुरणानयन चतुर्वेदी 



हेल्लो! एक्सक्यूज मी करूणा। कल कांस्टीट्यूशन क्लब से बाहर निकलते वक्त पीछे से किसी ने मुझे पुकारा। पहले तो मैंने इस आवाज़ को अनदेखा किया। लेकिन जब उस आवाज़ की ध्वनि और तीव्रता से मुझे सुनाई देने लगी तो मैं पीछे मुड़ा। मैंने पाया कि वह अपने दिल्ली विश्वविद्यालय के ही विद्यार्थी थे।

मैंने उनका हाल चाल पूछा, तो वह कहने लगे की ईश्वर की दुआ से सब ठीक है । लेकिन आपसे एक बात पूछनी थी। मैं उनसे कहा कि कहिए कोई समस्या है। इसपर उन्होंने ने कहा कि आप उत्तर प्रदेश में कहां से हैं? थोड़ी देर तक मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया। आख़िर उनका यह पूछने का प्रयोजन क्या था? ख़ैर मैंने उन्हें बताया की वाराणसी के पास एक गाज़ीपुर जिला है। मैं वहीं से आता हूं। 

  

बस मेरे कहने के तुरंत बाद उन्होंने कहा कि अच्छा गाज़ीपुर वही न मुख्तार अंसारी वाला क्षेत्र। यह कहकर मुझे अजीब सी नज़रों से देखते हुए सी यू सून कहकर चलते बने। मैं कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाता उससे पहले महोदय आंखों के सामने से ओझिल हो चुके थे।लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या मेरा ज़िला केवल मुख्तार अंसारी के लिए ही प्रसिद्ध है? इस व्यक्ति के अलावा वहां कोई और हस्ती नहीं हैं,जो हमारे जिला का प्रतिनिधित्व करते हों। इसका जवाब है कि दरअसल अपने प्रसिद्ध हस्तियों को हमारे जिले के लोगों ने अपने स्मृति पटल पर उठाया ही नहीं।


हमारे ज़िले ने मरहूम राही मासूम रज़ा जैसा लेखक दिया। जिसने अपने लेखनी से महाभारत धारावाहिक के पात्रों में जान भर डाली। उन्होंने हिंदी साहित्य को अपने कलम के दाम पर सींचा । मगर अफ़सोस आज हमारे ज़िले के ज्यादातर युवा इस महान विभूति से परिचित ही नहीं है। इस ज़िले ने वीर अब्दुल हमीद और ब्रिगेडियर उस्मान जैसे फ़ौलादी जवान दिए हैं। जिन्होंने अपने जान की बाज़ी लगाकर देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दी है। इस भूमि ने विश्वनाथ सिंह गहमरी जैसा नेता दिया है। जिसने पं.नेहरू को पूर्वांचल की गरीबी से ऐसे अवगत कराया की खुद नेहरू की आंख भर आयी। इस धरित्री ने राम बहादुर राय जैसे शानदार पत्रकार दिए। जिनके लेखन कौशल से आज भी पत्रकारिता के छात्र सीखते हैं। मगर हमारे ज़िले का दुर्भाग्य देखिए कि इस महानविभूति को ( मैंने जिनसे भी पूछा) जानते तक नहीं हैं।  ऐसे तमाम प्रसिद्ध हस्तियों को जन्म देने वाली इस पवन धरित्री को किसी ऐसे शख्स के साथ जोड़कर कदापि नहीं देखना चाहिए, जिसका जीवन ही अपराध और हिंसा का परिचायक हो।

संविधान गंगा की जलधारा तो संशोधन उसके घाट हैं : रामबहादुर राय

करूणा नयन चतुर्वेदी 



नई दिल्ली, 12 मई। दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में ऋषिराज सिंह और प्रिंस शुक्ला की पुस्तक के विमोचन के समय सभागार को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय बाबू जी ने कहा कि काशी में गंगा के किनारे बहुत सारे घाट हैं। जबकि गंगा का जल जो हरिद्वार में है, वही काशी में भी है। ठीक इसी प्रकार संविधान गंगा की भांति है और इसमें होने वाले संशोधन उसके घाट हैं। नरेंद्र मोदी सरकार में जो भी संविधान संशोधन हुए हैं वह नए घाट के समान हैं। लेकिन इससे पूर्व की सरकारों ने अपने व्यक्तिगत, दलीय महत्वकांक्षा और बदनीयती को आत्मसार करने के लिए बहुत संशोधन किए। राय साहब ने आपातकाल के समय इंदिरा गांधी के प्रधानमन्त्री चुनाव को चुनौती नहीं दिए जा सकने वाले संविधान संशोधन को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह दिखाता है की कैसे यूपीए सरकारों ने जनहित में संविधान संशोधन करने की बजाय अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किया।


मुख्य अतिथि के रूप उपस्थित रहे कानून व न्याय मंत्री भारत सरकार श्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि ऋषिराज और प्रिंस बधाई के पात्र हैं। इन्होंने अपने छात्र जीवन में ही इतने शानदार मुद्दे पर किताब लिख डाली है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अब तक का कार्यकाल जनता को ही समर्पित रहा है। उन्होंने पुस्तक में हुए 35ए का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इसमें दोनों लेखक लिखते हैं की 35ए को संविधान में बिना किसी संशोधन के जोड़ा गया। यह अपने आपमें एक शोध का विषय है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में नारी शक्ति वंदन अधिनियम का भी उल्लेख हुआ है। यह काम देवगौड़ा जी के समय से ही हो रहा था । लेकिन मोदी सरकार ने इसको पारित करने का काम किया। नारी शक्ति वंदन अधिनियम से महिलाओं की 33 प्रतिशत ,जब लोकसभा और राज्यों के विधानसभा में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करेंगी। तब देखिएगा की इसका प्रभाव कितना क्रांतिकारी बदलाव लाएगा। 

इस कार्यक्रम में कुछ गणमान्य अतिथि भी उपस्थित रहे। जिसमें भारतीय बार काउंसिल के चेयरमैन मनन मिश्रा, वरिष्ठ अधिवक्ता माननीय सर्वोच्च न्यायालय गोविंद गोयल, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के सचिव श्रीहरि बोरिकर , बीजेपी राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला, प्रज्ञा संस्थान के सचिव राकेश सिंह आदि प्रमुख थे। कार्यक्रम का मंच संचालन का कार्य शेखर सुमन ने किया। वहीं कार्यक्रम में युक्ता ठाकुर, संस्कृति मिश्र, मैथिली मिश्र, अमृत राज पांडे , आर्य गौतम चौबे, विष्णुकांत पांडे, आशीष, अरिमर्दन दुबे आदि के साथ भारी संख्या में विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।

रामराज्य की संकल्पना ही इस पृथ्वी को गर्त में जाने से रोक सकती है: श्री आलोक कुमार

करूणा नयन चतुर्वेदी दिल्ली 



नई दिल्ली, 13 मई। जिज्ञासा फाउंडेशन के स्थापना दिवस पर विशेष व्याख्यान का आयोजन नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में किया गया। व्याख्यान का विषय राम मंदिर से राम राज्य की ओर था। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष विश्व हिंदू परिषद के श्री आलोक कुमार जी ने  कहा कि रामराज्य का वर्णन मुख्य रूप से समाज का वर्णन है। उनके शासन में सभी लोग सुखी से जीविकोपार्जन करते थे। समाज में कोई वैमनस्य नहीं था। आज पूरे विश्व में वैश्विक स्तर पर अशांति है। लेकिन जब आप रामराज्य की ओर देखेंगे तो पाएंगे की कैसे प्रभु श्री राम ने रावण से युद्ध को टालने के लिए अंगद को उसके दरबार में शान्ति दूत बनाकर भेजा था। आज के समय लोग जातीय विभेद की बहुत बात करते हैं। परंतु उस समय रावण से युद्ध करने के लिए श्री राम ने अपने समुदाय को छोड़कर वानर, रिक्ष आदि से मदद मांगी थी। इन्हीं सब चीज़ों पर आज के भारत को काम करने की जरूरत है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एन जी टी के भूतपूर्व अध्यक्ष जस्टिस आदर्श गोयल ने इस विषय पर कहा कि हमारी संस्कृति में शुरू से त्याग और समर्पण की भावना रही है। किसी भी देश का इतिहास उठाकर आप देखेंगे, तो कहीं भी राजा ने अपने से राज्यगद्दी का स्वतः परित्याग नहीं किया है। लेकिन रामराज्य में ही ऐसा होता है की राम स्वयं राज्य को त्यागते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में रामराज्य को साकार करने के लिए चुनावी प्रक्रिया में सुधार करने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम का प्रस्तावना संबोधन राजकुमार भाटिया ने  दिया। कार्यक्रम का संचालन कीर्ति मिश्रा ने किया। देव रत्न शर्मा  ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य बलबीर पुंज, डॉ सुभाष गौतम , महेंद्र कौशिक आदि के साथ भारी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित रहें। 

Sunday 12 May 2024

एक ही नारा एक ही नाम जय परशुराम व जय श्री राम के नारों से गूंज उठा विवि परिसर

करूणा नयन चतुर्वेदी

नई दिल्ली, 10 मई। दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैम्पस में विवि के विभिन्न महाविद्यालयों में अध्ययनरत ब्राह्मण छात्र छात्राओं ने अक्षय तृतीया और महर्षि भगवान परशुराम जी के जयंती पर  भव्य विशाल शोभा यात्रा निकाला। यात्रा श्रीराम कॉलेज से शुरू होकर रूप नगर गोल चक्कर, हंसराज कॉलेज, हिंदू कॉलेज से होते हुए कला संकाय के गेट नंबर 4 पर आकर समाप्त हुई ।


यात्रा शुरू होने से पूर्व श्री राम कॉलेज के सम्मुख हनुमान मंदिर में पहले विधिवत वेदसम्मत हवन और पूजन किया गया। इस पावन अवसर पर वैदिक मंत्रोचार से पूरा विश्वविद्यालय प्रांगण झूम उठा। शोभा यात्रा में सर्व समाज के लोगों ने अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित की। यात्रा में शामिल लोगों के जब जब ब्राह्मण बोला है, राजसिंहासन डोला है। कौन चले भाई कौन चले , परशुराम के लाल चले आदि जयघोष और नारों ने पूरे विवि परिसर को गुंजायमान कर दिया। 

यह यात्रा दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत ब्राह्मण छात्र छात्राओं द्वारा पहली बार निकाली गई है। कैम्पस प्रांगण में स्वामी विवेकानन्द के प्रतिमा के सम्मुख उनको माल्यार्पण करके एवम् यात्रा में शामिल सभी लोगों का आभार व्यक्त कर किया गया। अंत में सभी श्रद्धालुओं को भंडारे का प्रसाद वितरण भी किया गया। यात्रा में विभिन्न जगहों पर लोगों को गर्मी से बचने के लिए पेय पदार्थों का भी इंतज़ाम किया गया था।

इस शुभ अवसर पर सचिन दीक्षित, आलोक तिवारी, अंकिता विश्वास, संस्कृति मिश्रा, आर्य गौतम चौबे, राज द्विवेदी, अजय राज द्विवेदी, प्रेम गोस्वामी, करन कौशिक आदि के साथ भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

भविष्य का भारत और मतदान के मायने

संकल्प मिश्र 

भारत पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इस देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए हर पांच वर्ष में चुनाव होता है। इस समय पूरे देश की लोकसभा सीटों पर मतदान अलग-अलग चरणों में चल रहा है। हम लगातार यह  देखते आरहे है कि वोटिंग 60% से ज्यादा नहीं होती यह कहें की सुनने को नहीं मिलती है। ऐसे में  प्रश्न उठता है कि क्या देश के लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था से विश्वास कम होता जा रहा है। इस प्रकार मतदाता का 2024 लोकसभा चुनाव में मतदान केंद्र जाने की बजाय घर पर बैठ जाना उसकी लोकतन्त्र के प्रति उदासी को दर्शाता हैं। शहरी समाज में मतदाता अपने घरों में बैठा रहता है पर वोट डालने नहीं निकलता है। 



मतदान करना हमारा कोई कर्म नहीं बल्कि हमारा कर्तव्य है, एक  जिम्मेदार नागरिक के तौर पर यह काम करना चाहिए। देश के युवा वर्ग को भी इन कर्तव्यों को समझने की अवश्यकता हैं। एक जागरूक नागरिक के वोट न करने की वजह से पूरे देश में भ्रष्टाचारी नेताओं, माफियाओं, देश विरोधियों का एक अल्प समूह आज भी  संसद तक पहुंचने में सफल हो जाता है। मतदान किसको करना है, यह बताने से ज्यादा जरूरी है कि बताया जाए कि  मतदान क्यों करना है? आज भारत देश जो युवाओं का देश कहा जाता है। भारत देश के युवा-साथी, जो की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में जाकर शिक्षा तो ले रहे है। बड़े-बड़े मंचों पर डिबेट्स में जाकर मतदान करने के लिए जागरूक तो कर रहे हैं लेकिन उनका खुद मतदान केंद्रों न जाना एक बड़ी विडम्बना है। इसलिए शिक्षा के साथ के साथ अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करना भी आवश्यक है। आपका वोट मात्र एक वोट नहीं  बल्कि भारत का भविष्य कैसा होगा यह भी तय करता है। इस लिय आप सभी आज से तय कीजिये कि पहले मतदान फिर जलपान!!

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में 23 मई से समर थिएटर फेस्टिवल


नई दिल्ली, 10 मई। रानावि रंगमंडल द्वारा आयोजित ‘ग्रीष्म कालीन नाट्य समारोह’ में 9 नाटकों की 37 प्रस्तुतियाँ होंगी ।   संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की स्वायत्त संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय; जो कि देश ही नहीं विश्व पटल पर रंगमंच के लिए स्थापित संस्था है, के रंगमंडल विभाग द्वारा इस वर्ष ‘समर थिएटर फेस्टिवल’ दिल्ली तथा लद्दाख में आयोजित हो रहा है । यह पहली बार है कि रंगमंडल लद्दाख में अपना यह महत्वपूर्ण फ़ेस्टिवल आयोजित कर रहा है । दिल्ली में इसकी शुरुआत 23 मई से है । कुल 09 नाटकों की 32 प्रस्तुतियाँ दिल्ली में आयोजित होंगी तथा लद्दाख में कुल पाँच प्रस्तुतियाँ 26 से 30 जून तक की जाएगी ।   राष्ट्रीय नाट्य

विद्यालय, रंगमण्ड ल द्वारा ‘समर थिएटर फेस्टिवल’ में मंचित किए जाने वाले नाटकों में महोत्सव की शुरुआत‌ - 23 मई को बहुचर्चित नाटक ‘ताजमहल का टेंडर’ से होगी । रानावि रंगमंडल की यह नाट्य प्रस्तुति अपना 25 साल पूरा कर चुका है । इसे निर्देशित किया है श्री चितरंजन त्रिपाठी जी ने । वहीं भारतीय रंगमंच की जीवित किंवदन्ती, पद्मश्री रामगोपाल बजाज द्वारा निर्देशित नाटक ‘अंधायुग’ का भी मंचन किया जाएगा । महोत्सव में, भारती शर्मा निर्देशित नाटक ‘खूब लड़ी मर्दानी’, प्रो. विदुषी ऋता गांगुली निर्देशित नाटक ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’, प्रो. देवेंद्र राज अंकुर निर्देशित ‘बंद गली का आखरी मकान’, श्री अजय कुमार के निर्देशन में ‘माई री मैं का से कहूं’, प्रो. रामगोपाल बजाज द्वारा निर्देशित ‘लैला मजनूं’, स्व. उषा गांगुली निर्देशित ‘बायेन’ तथा श्री राजेश सिंह निर्देशित अतिप्रशंसित संगीतमय नाट्य प्रस्तुति ‘बाबूजी’ का मंचन किया जाएगा।    

Monday 6 May 2024

भारतीय ज्ञान परम्परा का स्वरूप बहुत व्यापक है: प्रो मुरली मनोहर पाठक

करूणा नयन चतुर्वेदी 


नई दिल्ली, 6 मई। दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में संस्कृत विभाग द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृत विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मुरली मनोहर पाठक उपस्थित रहे। वशिष्ट अतिथि के रूप में हिन्दू अध्ययन केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय की सह निदेशक प्रो  प्रेरणा मल्होत्रा उपस्थित रहीं। 



कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने मां सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीपार्जन करके किया। कॉलेज प्राचार्य प्रो आरएन दूबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृत भाषा हमारे सभ्यता और संस्कृति को रेखांकित करती है। इस भाषा का पुनरूत्थान करना बहुत ज़रूरी है। आज के समय में पश्चिमी भाषा सभी सीखना चाहते हैं। लेकिन भारतीय भाषाओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।


मुख्य अतिथि प्रो पाठक ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को जब से आत्मसार किया गया है, तभी से भारतीय ज्ञान परम्परा पर पुनः बल दिया जा रहा है। भारत में दों धाराएं रहीं हैं। पहली लिखित और दूसरा लोकव्यवहार में लोगों को ज्ञान प्रदान करती आई हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य में संस्कृत को ऋषियों ने लिखा नहीं, बल्कि इसका दर्शन किया। यह पौरूषेय नहीं है। हमारे यहां शब्दों को ब्रह्म की संज्ञा प्रदान की जाती है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां पर लोक और परलोक दोनों को ही अपने चिंतन में स्थान दिया है। वेद हमें लौकिक के साथ पारलौकिक आचरण भी सिखाते हैं। 


विशिष्ट अतिथि डॉ मल्होत्रा ने अपने संबोधन में कहा कि जो राष्ट्र अपने भाषा को छोड़ देता है वह अपने संस्कृति, संस्कार और समाज को भी त्याज कर देता है।  उन्होंने ने कहा कि पश्चिमी देशों के विद्वान जोकि 500 वर्ष पहले पृथ्वी को चपटी मानते थे। वे हमें ज्ञान देने आ जाते हैं। जबकि हमारे यहां शुरू से ही भूगोल की अवधारणा रही है। उन्होंने कहा कि दरअसल हम बिना पढ़े और समझे ही किसी की बातों में आ जाते हैं। हम किसी भी तथ्य को तब तक प्रामाणिक नहीं मानते हैं, जब तक की उसपर कोई पश्चिमी विचारक अपना मत न रख दे। इसलिए संस्कृत का भारत में ह्रास हुआ है। उन्होंने अम्बेडकर के कोलंबिया में दिए गए उद्बोधन को याद करते हुए कहा कि पश्चिमी लोग बिना भारतीय लोकव्यवस्था को जाने ही जाति को नस्ल बता देते हैं। जोकि सरासर झूठ है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा की ही देन है कि आधुनिक विज्ञान चल रहा है।


कार्यक्रम का मंच संचालन संगोष्ठी की संयोजिका प्रो शशि रानी और छात्र अरिमार्दन दूबे ने किया। वहीं आभार ज्ञापन डॉ सुनीता शर्मा ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस कार्यक्रम में प्रो बिजेंद्र कुमार, प्रो संगीता, प्रो ममता, प्रो राजवीर सिंह,  प्रो राकेश कुमार आदि शिक्षकों के साथ सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।