Sunday 15 November 2020

तालियां जरा जोर से बजाएं

डा. सचिदानंद जोशी

दिल्ली मराठी प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित "दिवाळी पहाट" के कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। मराठी प्रतिष्ठान द्वारा गत चार वर्षों से दिवाली के अवसर पर एक संगीत सभा का आयोजन किया जा रहा है। महाराष्ट्र में दिवाली के एक दिन पहले ऐसी संगीत सभा सुबह आयोजित करने का चलन पहले से है। दिल्ली में ये सिलसिला हाल का ही है। फिर भी कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ। इंडिया गेट और आय जी एन सी ए के लॉन में आयोजित इन कार्यक्रमो में मराठी के श्रेष्ठ गायकों ने अपनी प्रस्तुति दी है और तीन चार हज़ार श्रोताओ ने उनका आनंद लिया है।

इस वर्ष कोरोना के कारण सारी संगीत सभाएं और मंच के कार्यक्रम बंद है। अभी भोतिक दूरी के नियमो का पालन करते हुए अधिकतम 200 व्यक्तियों के कार्यक्रम करने की अनुमति है। इसलिए इस बार यह कार्यक्रम 15 नवंबर की सुबह 6.30 पर रखा गया। दिवाली के उत्साह की गर्मी तो थी लेकिन ठंड ने भी अच्छी खासी दस्तक दे दी थी। ओस की बूंदे भी धरती गिरने लगी थी। आय जी एन सी ए के माटी घर लॉन में जहां हज़ार व्यक्ति आसानी से बैठ सकते है , कुल 100 व्यक्ति कुर्सियों पर दूर दूर बैठे थे। मुँह पर मास्क थे और मास्क खोलो तो मुँह से भाप निकल रही थी। फिर भी संगीत का शौक और कुछ करने की ज़िद इन लोगो को यहाँ खींच लाया था। श्रोताओं में आय सी सी आर के अध्यक्ष डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे जी सपत्नीक उपस्थित थे। श्री वैभव डांगे, श्री विवेक गर्गे, श्री अभिजीत गोडबोले और श्री गणेश रामदासी जैसे मित्रो ने साहस और संकल्प से इस कार्यक्रम की योजना बनाई थी।


मंच पर अपना गायन प्रस्तुत करने के लिए जब पंडित शौनक अभिषेकी अपने संगत कलाकारों के साथ उपस्थित हुए तो सबने उत्साह से तालियां बजायी। पंडित अभिषेकी अभिभूत थे। वैसे जिस कलाकार ने हजारों की संख्या में संगीत रसिकों के सामने अपनी प्रस्तुति दी हो उसके लिए समान्य परिस्थितियों में सामने महज 100 लोगो का होना उत्साह कम करने वाला ही होगा। लेकिन ये न्यू नार्मल से होकर नार्मल की ओर बढ़ने की जद्दोजहद वाला एक कदम था इसलिए अभीभूत करने वाला ही था।

मंच पर अपना स्वर लगाने के बाद पंडित अभिषेकी ने जो कहा वह सचमुच मार्मिक था, " आज नवंबर की इस ठंड भरी सुबह में आप लोग यहाँ आये हैं ये मेरा सौभाग्य है। आज मैं भी आठ नौ महीने बाद मंच पर आकर श्रोताओं के सामने बैठ कर गा पा रहा हूँ। बहुत अटपटा लग रहा है लेकिन मैं रोमांचित हूँ । मैं आप सब को प्रणाम करता हूँ। " उनकी पहली तान पर वहाँ उपस्थित सबने पूरे जोश से तालियां बजायी। उन तालियों की गूंज उन हज़ारों तालियों की गूंज से कहीं अधिक थी जी सामान्य परिस्थिति में बजती। क्योकि ये जीवन की सामान्य बनाने की कोशिश में एक कदम था। पंडित अभिषेकी का ये प्रणाम उन अनगिनत कलाकारों का प्रणाम था जो इन नौ महीनों में अपनी कला के मंच पर प्रस्तुतिकरण की बैचेनी से बाट जोह रहे हैं। और वो तालियां उन सभी कलाकारों के लिए थी जिन्होंने इन विपरीत परिस्थियों में हम सबको संघर्ष की प्रेरणा दी और हमारा जीवन नित नई ऊर्जा से भरते रहे। नौ माह हो गए। नौ माह में एक पिंड शिशु का रूप धारण कर जन्म ले लेता था। रचना क्रम का कीमती समय। लेकिन विगत नौ माह का हमारा यह समय सिर्फ जीवन की बचाये रखने में और धैर्य बनाये रखने में बीता। इन नौ महीनों में कितना कुछ बदल गया।तालियों की जगह हम "बिना आवाज़ की तालियों " के अभ्यस्त हो गये।


लेकिन इंसानी जिद के आगे कोई भी चुनौती कठिन नही है। इंसान अब जिद पर है और वह निश्चित रूप से इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हो गया है। वह जीवन की सामान्य बनाने की दिशा में बढ़ रहा है। सावधानियां बरतेगा , नए नियमो का पालन करेगा लेकिन ज़िंदगी की वापिस पटरी पर लाकर ही मानेगा। इसलिए जब कोई कलाकार हिम्मत कर मंच पर आए तालियां जोरदार बजाए। कोई रचनाकार अपनी नई कृति दिखाए तो तालिया जोर से बजाएं। कोई कुम्हार दिए बनाये, कोई दर्जी कपड़े बनाये , कोई नए जूते बनाये , कोई आपका घर साफ कर या सजाए , कोई आपके लिए मिठाई पकवान बनाये , कोई आपके लिए जरूरत का सामान उपलब्ध कराए कोई भी ऐसा जो जिंदगी को वापिस पटरी पर लाने की जद्दोजहद में है और उसके लिए अपनी जान और अपना चैन जोखिम में डाल रहा है तो उसके लिए आप तालिया जरूर बजाए। अपने खुद के लिए भी तालिया बजाए और बहुत जोर से बजाए कि आप भी इन झंझावातों के बीच अपनी जीवन नैय्या की गति को संयत और सामान्य करने में लगातार जुटे हैं।

उधर पंडित शौनक अभिषेकी का सुमधुर गान चल रहा था और मेरे मन मे लगातार ये सारी बाते घुमड़ घुमड़ कर आ रही थी। वे सारे चेहरे सामने आ रहे थे जो अपनी जान जोखिम में डाल हमारा जीवन सामान्य बनाने में जुटे थे। वे सभी अपने अंदर का तनाव छुपा कर मुस्कुरा रहे थे ताकि हम हंसी खुशी से रह सके। ये तालियां जो हम लॉन में बजा रहे थे वो पंडित अभिषेकी के लिए तो थी ही साथ ही ऐसे उन तमाम लोगो के लिए भी थी। आपको भी जब ऐसा मौका मिले तालियां जरूर बजाए और जोर से बजाए , औरों के लिए भी और अपने लिए भी।

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