करुणा नयन चतुर्वेदी
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मीलिया कोय,
जो दिल खोजा आपने मुझसे बुरा न कोय
कबीर ने यह पद जब बोला होगा, उस समय उनकी मनोस्थिति क्या रही होगी? कोई भी अपने को बुरा कैसे कहा सकता है ? लेकिन उन्होंने ऐसा किया ताकि लोगों में अपने खिलाफ आलोचना सुनने की क्षमता विकसित हो सके।
आज काफ़ी समय से लंबित दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव के नतीजों का पिटारा आख़िर सबके सामने खुल गया और उम्मीदों के विपरीत चुनावी नतीजों ने सबको चौंका दिया है। लेकिन यह नतीजे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लिए अप्रत्याशित हैं। क्योंकि जिस जोश, जज्बे और जुनून के साथ परिषद चुनावी रण में उतरी थी। उसके अनुरूप उसका प्रदर्शन नहीं रहा। अध्यक्ष पद पर एनएसयूआई के रौनक खत्री ने एबीवीपी के ऋषभ चौधरी को मात दी है। वहीं उपाध्यक्ष पद पर एबीवीपी के भानु प्रताप सिंह ने एनएसयूआई के यश नंदल को हराया है। सचिव पद पर एबीवीपी की मित्रविंदा करनवाल ने नम्रता जेफ को शिकस्त दी है। तो संयुक्त सचिव पद पर एनएसयूआई के लोकेश चौधरी ने एबीवीपी के अमन कपासिया को हराया है।
एनएसयूआई ने पिछले चुनाव की गलतियों से सीखते हुए इस बार अपने नाम के अनुरूप प्रदर्शन किया है। वहीं एबीवीपी अपने आंतरिक कलह का ही शिकार हो गई है। एबीवीपी ने चुनाव से तुरंत पहले अपने कर्मठ कार्यकर्ताओं के टिकट काटकर आंतरिक कलह को जन्म दिया था। जिसके अंतर्गत कई कार्यकर्ता एनएसयूआई में शामिल हो गए थे। इससे यह तो स्पष्ट हो गया था कि इसबार के नतीजे चौंकाने वाले हैं। वहीं ऋषिराज सिंह के टिकट कटने से पूर्वांचल के वोटरों का भी एबीवीपी से मोह भंग होता प्रतीत हुआ है।
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