Tuesday, 4 October 2016

पॉर्नोग्राफी से परहेज क्यों

आदित्य कुमार
ऐसे लोग महिलाओं को सीता बने रहने का फरमान तो जारी कर देते हैं लेकिन दुकान पर पॉर्नोग्राफी को रामायण बोलकर खरीदते हैं... फिल्म कोई सरकारी अस्पताल का ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं, जो अपने आप लीक हो जाता है. अजय देवगन के द्वारा निर्मित फिल्म ‘पार्च्ड’ 23 सितंबर को रिलीज होने वाली थी मगर, इसके पहले हीं इस फिल्म के कुछ सीन सेक्स सीडी के नाम से पॉर्नोग्राफी बाजार में आलू-प्याज की तरह बिक लगा. सवाल यह है कि फिल्म का यह सीन कैसे लीक हो गया? क्या यह इस बात से पुष्टि कर रहा कि बॉलीवुड में हिरोइनों का कैमरे के जरिये शोषण किया जा रहा है. सेक्स सेलिब्रेट करना बिल्कुल गलत नहीं है, लेकिन कैमरे के जरिये उसको पॉर्नोग्राफी की तरह सूट करना और यह फिल्म रिलीज होने के पहले बाजारों में सेक्स सीडी के नाम से बिकने लगना, यह एक रणनीति का हिस्सा हीं लगता है. आज के दौर में फिल्म निर्माण में खर्च के साथ-साथ, करोड़ों रुपये इसके प्रमोसन और विज्ञापन पर खर्च किये जाते हैं. क्या करोड़ों के खर्च को बचाने के लये कुछ  क्लीप्स को लीक करके फिल्मों का
प्रचार किया जा रहा है? यदि ऐसा है तो महिलाओं के सशक्तिकरण, उनकी स्वतंत्रता की बात करने वाली बॉलीवुड महिलाओं का शोषण कर रही है. दक्षिण भारत की अभिनेत्री सिल्क की मौत, कंगना का फिल्मी जगत को लेकर खुलासा, दिव्या की मौत की मिस्ट्री... तो यही बता रहा है. इस आधार पर समाज के साथ-साथ बाजार भी पुरुषप्रधान दिख रहा है. यह खतरनाक है क्योंकि जब बाजार का नाम आता है तो इसमें राजनीति भी शामिल हो जाती है. फिल्म के लीक हुए सीन को कोलकाता में ‘राधिका आप्टे का सेक्स सीन’ के नाम से बेचा जा रहा है. उस वीडियो में अभिनेता आदिल हुसैन भी बताए जा रहे हैं. सीडी का नाम ‘आदिल हुसैन का सेक्स सीन’ क्यों नहीं रखा गया? हमारे समाज में महिलाओं पर हीं गालियों का डिक्सनरी क्यों होता हैं? सोचियेगा... ‘पार्च्ड’ फिल्म में गुजरात के एक गांव में तीन महिलओं की कहानी बतायी गयी है, जिनका शोषण समाज के साथ-साथ उनका परिवार भी करता है। अंत में परिस्थितियों से लड़ते हुए वो आजाद होती हैं।  फिल्मों के ऐसे संदेश  ‘लीक स्टंट’ से पूरी तरह से धुलता हुआ दिखता है।

हम उसी समाज में जीते हैं जहां दुकान में पॉर्नोग्राफी को रामायण के नाम से खरीदा जाता है, मगर यही समाज महिलाओं को सीता बनने का फरमन जारी करता है. लड़कियां स्कर्ट पहन लेती हैं तो पुरुष प्रधान सोच वाले लोग बौखला जाते हैं. मुंह को ट्वीटर बनाकर फटाफट फरमान का ट्वीट जारी करने लग जाते हैं. सिंधू साड़ी पहन कर बैडमिंटन नहीं खेल सकती है, ना हीं साक्षी पदक ला सकती हैं और ना हीं महिला झोल वाले ड्रेस को पहनकर गाड़ी ड्राइव  कर सकती हैं. कपड़े से भी समाज की तस्वीर सामने आती है. पुरुष प्रधान सोच वाले लोगों को महिलाओं के मुख्यधारा में शामिल होने से डर लगता है. केवल पुरुष हीं पुरुष प्रधान नहीं होते, महिलाएं भी होती हैं. ये सास को बाहर निकालने वाली बहू को प्रताड़ित करने वाली सास और पोते का 100 प्रतिशत डिमांड करने वाली दादी होती हैं.

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