Sunday 29 September 2019

भूवनेश्वर यात्रा की यादें

अनिकेत कुमार
पिछले जून माह में दिल्ली से भूवनेश्वर होते हुए पूरी तक की यात्रा यादगार रही, वैसे तो यह यात्रा हमारे लिए धार्मिक तो थी ही साथ में मनोरंजन से भरपूर थी जिसकी शुरुआत हमने नई दिल्ली से रेलवे द्वारा आरंभ की जो भुबनेश्वर राजधानी में थी ये सफ़र बाईस घंटों का था जहाँ रेलवे द्वारा खान-पान की पूरी सुविधा प्रदान की गई थी जहाँ हमे चॉकलेट पॉपकॉर्न नाश्ते के तौर पर दिया गया जिसका स्वाद लाज़वाब था और उसकी स्मृति आज भी मेरे मन में है ये सफ़र हमने एक दूसरे से हँसी-ठिठोली करके व्यतीत किया। अगले दिन रात को जब हम भुबनेश्वर पहुँच तो पूरी तरह थक चुके थे। रात्रि भोजन करके विश्राम किया। अगले दिन सुबह हम भुबनेश्वर भ्रमण के लिए रवाना हुए। जिसकी शुरुआत खंड-गिरि और उदय-गिरि से हुई जहाँ इतिहास, वास्तुकला, कला और धर्म की दृष्टि से इन गुफाओं का विशेष महत्व है। उदय-गिरि में 18 गुफाएं हैं और खंड-गिरि में 15 गुफाएं हैं। ऐसी मान्यता है कि कुछ गुफाओं का निर्माण जैन साधुओं ने किया था और ये प्रारंभिक काल में चट्टानों से काट कर बनाए गए जैन मंदिरों की वास्तुकला के नमूनों में से एक है। इसके पश्चात हम नंदनकानन चिड़िया-घर की सैर पर गए नंदनकानन, जिसका शाब्दिक अर्थ है गार्डन ऑफ हेवन देश में अन्य चिड़ियाघरों के विपरीत, नंदनकानन को जंगल के अंदर स्थापित किया गया है। यह एक पूरी तरह से प्राकृतिक वातावरण में स्थापित जियोलाजिकल पार्क है जो काफ़ी प्रसिद्ध है इसके उपरान्त हम अपने होटल पहुँचे जहाँ हमने लज़ीज व्यंजन का लुत्फ़ उठाया और विश्राम किया। 

अगली सुबह हम फिर हर्ष और उल्लास के साथ पूरी (उड़ीसा) के जगन्नाथ मंदिर केलिए रवाना हुए। हमने भुबनेश्वर से पूरी तक का सफ़र रेलगाड़ी से तय किया जोकि दो घंटो का था। पूरी पहुँचने के बाद हमने समुद्र किनारे होटल लिया जिसके कमरों की बनावट खासा आकर्षक थी।  होटल के कमरे की बाल्कनी का दरवाज़ा समुद्र की दिशा में खुलता था जो जहां से मनमोहक नज़ारा दिखाई देता था उस दिन शाम को हम समुद्र किनारे घूमे और वहाँ के तरह-तरह के वयंजन का लुत्फ़ उठाया अगले दिन सुबह हमने जगगन्नाथ मंदिर के दर्शन किए। पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक माना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर से हर साल रथ यात्रा निकलती है इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और भगिनी सुभद्रा की तीन अलग-अलग रथों में सवार होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है । इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जिसको को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ है। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात  बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैंयह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है।

मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुद्र की लहरों से आने वाली आवाज़ को नहीं सुन सकते आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज़ सुनाई देने लगती है। यह अनुभव शाम के समय और भी अलौकि लगता है। हमने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे और उड़ते देखे हैं। जगन्नाथ मंदिर की यह बात आपको चौंका देगी कि इसके ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता यहां तक कि हवाई जहाज़ भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता। मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता साथ ही मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज़ बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ चकित कर देने वाली बात यह है कि पुरी में यह प्रक्रिया उल्टी है। हम ये देखकर आश्चर्यचकित होगए थे। ये हमारे लिए नया और अद्भुत सफ़र रहा जहाँ हमने बहुत कुछ जाना और देखा मंदिर के बाद हम वापिस अपने होटल गए  

उसके पश्चात हमने चिल्का झील के लिए रवाना हुए। यह भारत की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है। यह 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है, जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी  जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप लेलिया ऐसी मान्यता है। दिसम्बर माह से जून माह तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है। हमने झील की सैर की हाँलाकि नौका का मूल्य काफ़ी अधिक था। तो हमने जोड़ो में बुकिंग की जिससे नौका का मूल्य दो परिवारों में आधा-आधा बट गया हमने झील में डाल्फ़ीन मछली देखी। जो बहुत ही अद्भुत नज़ारा था। जिसका दृश्य आज भी मेरे ज़हन में है। उसके पश्चात हम वापिस किनारे पर गए, शाम का समय हो चला और हम होटल के लिए रवाना हुए। होटल पहुँच कर रात्रि भोजन किया और सो गए। अगली सुबह हम वापिस दिल्ली के लिए रवाना हुए। लेकिन वो दृश्य अभी भी मन-मस्तिष्क रच बस गया है। 

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