Saturday 20 May 2023

चरित्र निर्माण विषय पर कार्यशाला का आयोजन


नई दिल्ली, 20 मई। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास व सनातन धर्म विद्यालय पीतमपुरा, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय पर शिक्षक केंद्रित कार्यशाला का आयोजन किया गया।  कार्यशाला में विद्यालय के शिक्षकों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। कार्यशाला का प्रारंभ दीप प्रज्वलन पश्चात सभी वक्ताओं के स्वागत द्वारा प्रारंभ किया गया।

कार्यशाला के आरंभ में विद्यालय प्रधानाचार्य तथा शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की ओर से विद्यालयोँ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की क्रियान्वयन समिति की राष्ट्रीय संयोजिका 


श्रीमती अनिता शर्मा ने न्यास का परिचय दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सभी एकजुट होकर कार्य करें। इस कार्यशाला का केंद्र रहा कि चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास क्यों आवश्यक है और पंचकोष की अवधारणा का व्यावहारिक ज्ञान किस प्रकार से अध्यापकों को इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक हो सकता है। कार्यशाला के प्रथम वक्ता श्री चंडी प्रसन्न नायक ने पंचकोष के मूल सिद्धांत के बारे में बताते हुए अन्नमय कोश की विस्तार से चर्चा की। एक विद्यार्थी के आहार विहार में परिवार के साथ विद्यालय का समन्वय कैसा हो इस पर योग की क्रियाओं के प्रस्तुतिकरण के साथ चर्चा की

गई। श्रीमती सीमा सिंह ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्राणमय कोश पर प्रकाश डाला। उन्होंने वृक्षासन का उदाहरण देते हुए बताया कि योग और योगासनों के द्वारा कैसे पंचकोश के हरएक कोष को जोड़ा जा सकता है। श्रीमती सीमा जी में अत्यंत सरल व व्यवहारिक शैली में अपना प्रस्तुतीकारण रखा। चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय के दिल्ली प्रांत संयोजक डॉ इंद्रजीत ने मनोमय कोश का वर्णन किया और बताया कि इस कोश से ही मानव के मनुस्यत्व की यात्रा आरंभ होती है। मानसिक विकास की सतत प्रक्रिया से मानव स्वयं को पशु जगत से ऊपर अपनी स्थापना करता है। मानसिक विकास की इस प्रक्रिया में जब हम भावनाओं तथा

अभिव्यक्ति को तार्किक स्तर पर समझकर ब्रह्मांड के रहस्यों की गुत्थी सुलझाने लगते है और 'यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' की समझ बनाने लगते है तो हमारी बौद्धिक क्षमताओं का विकास आरंभ हो जाता है। इसी क्रम में श्रीमती ममता नागपाल ने विज्ञानमय कोश को विस्तार देते हुए बताया कि विद्यार्थी की तर्क शक्ति व प्रश्न पूछनें की क्षमता ही उसके सर्वांगीण विकास का परिचायक है। डॉ वंदना रावल ने मनुष्य जीवन के एकमात्र लक्ष्य ‘अहम से ब्रह्म’ तक पहुंचने की संकल्पना, प्रक्रिया तथा अर्थ का वर्णन आनंदमयकोश के माध्यम से किया। प्रत्येक कोष के अंत में प्रतिभागी शिक्षकों की जिज्ञाषाओं के उत्तर भी दिए गये। प्रतिभागियों द्वारा योग भी किया गया। 


अंत में डॉ विनोद शनवाल ने बताया कि किस प्रकार से पंचकोष के सिद्धांत को समझ कर शिक्षक अपने शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में बदलाव कर प्रत्येक छात्र के चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास में सहायक हो सकता है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से नित्य नवीन अनुप्रयोग कर और सतत संश्लेषण से विद्यार्थी के व्यक्तित्व का विकास किया जा सकता है। कार्यशाला में उपस्थित सभी प्रतिभागियों नें राष्ट्र हित में शिक्षा के भारतीयकरण और शिक्षा से चरित्र निर्माण व आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को सार्थक करने की ओर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास

द्वारा किए जा रहे उत्कृष्ट कार्यों की भूरि-भूरि सराहना की। कार्यशाला के समापन में सनातन धर्म विद्यालय, पीतमपुरा, दिल्ली की ओर से श्रीमती रेखा सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। 

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