Wednesday 5 July 2023

चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय पर ए एस एन स्कूल में कार्यशाला का आयोजन


01 जुलाई 2023, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, दिल्ली प्रांत एवं आदर्श शिक्षा निकेतन सीनियर सेकेन्डरी स्कूल, मयूर विहार, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय पर ‘शिक्षकों के लिए’ स्कूल के प्रथम दिवस पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।  विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती स्वर्णिमा लूथरा जी नें उपस्थित सभी अथिति विशेषज्ञों का पौधा देकर स्वागत किया. कार्यशाला में 47 शिक्षकों ने प्रतिभाग किया।

तीन बार गायत्रीमंत्र कर, शुद्ध मन से, कार्यशाला में शिक्षकों को पंचकोश से चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के बारे में बताया गया। न्यास के वरिष्ठ एवं संस्थापक सदस्यों में से एक श्री जुगल किशोर जी ने न्यास के शैक्षिक कार्यों, आंदोलनों एवं विषय  का परिचय करवाया। इसी क्रम में  डॉ. विनोद शनवाल जी नें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बारे में बताते हुए कहा कि शिक्षक को यह ज्ञात होना चाहिए कि कैसे पढा़ये, क्या पढा़ये? इसी क्रम में,  श्रीमती ममता नागपाल जी ने शिक्षकों को जीवन में अन्न के महत्व, आज के खान-पान से शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में बताया।  फलों एवं सब्जियों को अच्छे से धुल कर ही इस्तेमाल करने की बात भी उन्होने कही साथ ही पैकेट बंद वस्तुओं के इस्तेमाल से बचने की सलाह भी दी। डॉ. इंद्रजीत नें मनोमय कोश के बारे में  शिक्षकों  को बताते हुये कहा कि मनुष्य बनने की पहली सीढ़ी है कि आप अपने मन से जुड़ने का प्रयास करे। उन्होंने  मन  व  अन्तः करण को समझने को जरूरी बताया। मन हमारी संवेदनाओं को विचार के रूप में निरूपित करता हैl शिक्षक मन के भावों की समझ को कक्षा-कक्ष में बताये और शिक्षार्थी संवाद करें। मनोयोग की तीन स्तरों को डॉ सिंह नें ppt के माध्यम से उदाहरण देकर स्पष्ट किया। उन्होंने, स्थूल शरीर - पंच इंद्रिय, पंचतत्व, सूक्ष्म शरीर - भावनात्मक व तार्किक और कारण शरीर - आरोग्य, आनंद आदि पर चर्चा करते हुए कहा कि मन को सुसंस्कृत होना जरूरी है। तर्क संगत, न्यायोचित एवं गहन विश्लेषण से हुये परिस्कृत चिंतन, सुसंस्कृत-सत्संग एवं मनन -चिंतन से व्यक्तित्व को उन्नत बनाया जा सकता है एवं मन की स्थिति को ऊपर उठाया जा सकता है। चेतन और अवचेतन मन को जागृत करने के बारे में बताया गया। साथ ही, मन को संस्कारों का आधार बताया गया। ‘स्व’ पर केंद्रित होने पर हमारा मन पढा़ई में और अच्छे से लगेगा। डॉ. सिंह नें कहा कि किस प्रकार से एक निश्चित संकल्प के द्वारा ज़िंदगी में कुछ भी हासिल किया जा सकता है। स्वाध्याय, चिंतन-मनन और अध्यात्म का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। यह मानते हुए, अंत में ध्यान कराकर उन्होने अपनी वाणी को विराम दियाl 

डॉ. मीना पाण्डे जी ने विज्ञान कोश पर अपनी बात रखते हुए बताया कि विज्ञानमय कोश विवेक की बात करता है। श्रद्धा के बिना ज्ञान नहीं आता, ज्ञान के समान कुछ और पवित्र नहीं है। ज्ञान के लिए निरीक्षण, परीक्षण, संश्लेषण और विश्लेषण आदि बिन्दुओं पर उन्होने चर्चा की। प्रतिभा, प्रज्ञा, मेधा आदि बुद्धि के ही विभिन्न रूप है, यह डॉ मीना जी ने बताया।  कल्पना शक्ति का विकास करना बुद्धि का काम है और विज्ञान हमें निरीक्षण सिखाता है, साथ ही स्थूल एवं सूक्ष्मता की बात करता है। परिक्षण हमारे ज्ञान इंद्रियों से संबंधित है, आदि बातों पर पीपीटी के माध्यम से शिक्षकों के समक्ष डॉ मीना जी नें अपनी बात रखी। डॉ. मीना पाण्डे द्वारा बच्चों को विज्ञानमय कोश के बारे में जानकारी दी गयी। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से हमारा पूरा शरीर सूक्ष्म रूप में कार्य करता रहता है।  साथ ही उन्होंने महात्मा गाँधी और गौतम बुद्ध का उदाहरण देकर भी अपनी बात को समझाया।

श्री जुगल  किशोर जी ने आनंदमय कोश पर चर्चा करते हुए त्याग, सेवा, समर्पण की बात की। साथ दूसरों के आसूँ पोछने में जो मन को संतुष्टि मिलती है वो किसी अन्य कार्य करने से हमको नहीं मिलती है। उन्होंने शिक्षकों के लिए कुछ जरूरी बातों को जानने के लिए कहा, जिसमे सबसे पहले बच्चों को समझना, फिर, उसकी परिस्थिति को जानना और फिर, उन्हें अपनाना। कार्यशाला के अंत में प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये गए। सभी प्रतिभागियों एवं विषय विशेषज्ञों को धन्यवाद के साथ, कल्याण मंत्र कराकर, इस कार्यशाला का समापन किया गया।

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