Monday 6 May 2024

भारतीय ज्ञान परम्परा का स्वरूप बहुत व्यापक है: प्रो मुरली मनोहर पाठक

करूणा नयन चतुर्वेदी 


नई दिल्ली, 6 मई। दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में संस्कृत विभाग द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृत विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मुरली मनोहर पाठक उपस्थित रहे। वशिष्ट अतिथि के रूप में हिन्दू अध्ययन केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय की सह निदेशक प्रो  प्रेरणा मल्होत्रा उपस्थित रहीं। 



कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने मां सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीपार्जन करके किया। कॉलेज प्राचार्य प्रो आरएन दूबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृत भाषा हमारे सभ्यता और संस्कृति को रेखांकित करती है। इस भाषा का पुनरूत्थान करना बहुत ज़रूरी है। आज के समय में पश्चिमी भाषा सभी सीखना चाहते हैं। लेकिन भारतीय भाषाओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।


मुख्य अतिथि प्रो पाठक ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को जब से आत्मसार किया गया है, तभी से भारतीय ज्ञान परम्परा पर पुनः बल दिया जा रहा है। भारत में दों धाराएं रहीं हैं। पहली लिखित और दूसरा लोकव्यवहार में लोगों को ज्ञान प्रदान करती आई हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य में संस्कृत को ऋषियों ने लिखा नहीं, बल्कि इसका दर्शन किया। यह पौरूषेय नहीं है। हमारे यहां शब्दों को ब्रह्म की संज्ञा प्रदान की जाती है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां पर लोक और परलोक दोनों को ही अपने चिंतन में स्थान दिया है। वेद हमें लौकिक के साथ पारलौकिक आचरण भी सिखाते हैं। 


विशिष्ट अतिथि डॉ मल्होत्रा ने अपने संबोधन में कहा कि जो राष्ट्र अपने भाषा को छोड़ देता है वह अपने संस्कृति, संस्कार और समाज को भी त्याज कर देता है।  उन्होंने ने कहा कि पश्चिमी देशों के विद्वान जोकि 500 वर्ष पहले पृथ्वी को चपटी मानते थे। वे हमें ज्ञान देने आ जाते हैं। जबकि हमारे यहां शुरू से ही भूगोल की अवधारणा रही है। उन्होंने कहा कि दरअसल हम बिना पढ़े और समझे ही किसी की बातों में आ जाते हैं। हम किसी भी तथ्य को तब तक प्रामाणिक नहीं मानते हैं, जब तक की उसपर कोई पश्चिमी विचारक अपना मत न रख दे। इसलिए संस्कृत का भारत में ह्रास हुआ है। उन्होंने अम्बेडकर के कोलंबिया में दिए गए उद्बोधन को याद करते हुए कहा कि पश्चिमी लोग बिना भारतीय लोकव्यवस्था को जाने ही जाति को नस्ल बता देते हैं। जोकि सरासर झूठ है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा की ही देन है कि आधुनिक विज्ञान चल रहा है।


कार्यक्रम का मंच संचालन संगोष्ठी की संयोजिका प्रो शशि रानी और छात्र अरिमार्दन दूबे ने किया। वहीं आभार ज्ञापन डॉ सुनीता शर्मा ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस कार्यक्रम में प्रो बिजेंद्र कुमार, प्रो संगीता, प्रो ममता, प्रो राजवीर सिंह,  प्रो राकेश कुमार आदि शिक्षकों के साथ सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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