Saturday, 11 January 2025

दिल्ली का खान मार्केट और फ़क़ीर चंद बुक स्टोर

करुणानयन चतुर्वेदी  

पिछले दिनों भ्रमण के सिलसिले में दिल्ली के खान मार्केट जाना हुआ। कुछ बंधु भी मेरे साथ भ्रमण के दौरान साथ में थे। यह दिल्ली कितनी दिलदार है। आप जहाँ भी जाएं आपको एक नया अनुभव प्राप्त होता है। कितनी बार ही आप उस जगह से गुजरे होंगे, वहाँ रुकेंगे होंगे। लोगों से बातें की होंगी। लेकिन ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपने हर बार अलग अनुभव नहीं महसूस किया हो। यह शहर हमेशा आपको चकित करता रहता है। इस शहर में आपको हमेशा नयापन दिखाई देगा।

ख़ैर मैं खान मार्केट में प्रख्यात फ़क़ीर चंद एंड सन्स बुक स्टोर को एक्सप्लोर कर रहा था। इसी क्रम में एक कॉन्टेंट क्रिएटर मुझसे मिल गए। महानुभाव कहने लगे आप इस बुक स्टोर का रिव्यू दे दीजिए। मैं रिव्यू देने के लिए तैयार हो गया। किंतु उन्होंने एक डेमो शूट करने का प्रस्ताव रखा ताकि उनको विश्वास हो जाए कि मैं उनके वीडियो के अनुसार बोल पा रहा हूँ कि नहीं। यह प्रक्रिया जैसे ही खत्म हुई, श्रीमान कहने लगे कि आपकी हिंदी काफ़ी अच्छी और शुद्ध है। इसमें थोड़ा इंग्लिश के शब्दों का इस्तेमाल करें ताकि मेरे दर्शक आसानी से वीडियो से जुड़ सकें। इस विषय पर उनके साथ मेरी काफ़ी देर बहस हुई । इस दौरान मैंने उनसे कहा कि अंग्रेज़ी मेरी अच्छी नहीं है। आप मेरे मित्रों से बात कर सकते हैं वह अंग्रेज़ी में सहज हैं। इस क्रम में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि मेरी अंग्रेज़ी उतनी अच्छी नहीं है। लेकिन जब उन्होंने अंग्रेजी के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया तो मुझे आपत्ति हो गई। हालांकि थोड़ी देर की बातचीत के बाद श्रीमान कहने लगे कि अंग्रेज़ी से उन्हें भी दिक्कत है। भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हिंदी में बोलना चाहिए। लेकिन मेरी मजबूरी है कि दर्शकों को ध्यान में रखकर वीडियो बनाना पड़ रहा  है। इसीलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ। ख़ैर बहस के बाद उन्होंने मेरा रिव्यू लिया और अंत में मेरी हिंदी की सराहना भी की। 

असली बात यह है कि उस व्यक्ति के एक समय पर  दोहरे चरित्र से मैं अवाक रह गया। एक समय हिंदी की शुद्धता को लेकर व्यथित व्यक्ति तुरन्त बहस में फंसने पर अंग्रेज़ी को ही अपशब्द कहने लगा। वह विचलित हो गया उससे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। इस घटना का सार यही है कि हिंदी से भी आप लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। जब मैं भारत के सबसे महंगे मार्केट में देशी विदेशी लोगों की मौजूदगी में हिंदी को लेकर नहीं झुका और सम्मान से यह कह सका कि मैं हिंदी भाषी हूँ तो इसमें इस भाषा का और मेरे गुरुजनों का ही योगदान है। जिनके मार्गदर्शन में मैं और बेहतर हो रहा हूँ।

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