विशाल जोशी
हर वर्ष की तरह इस बार भी फरवरी माह में दिल्ली स्थित मुग़ल गार्डन के दरवाजे आम जनता के लिए खोल दिए गए. प्रकृति और रंग-बिरंगे फूलों का यह नजारा अनायास हि सबका मन मोह लेता हैं. यह नजारा दिल्ली के प्रदूषण को मात देता हुआ नजर आता है. मगर प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ को देखकर मन दुखी हो जाता है, प्रकृति का ख़याल रखना मनुष्य की जिम्मेदारी है मगर यह बात कुछ लोगों के समझ से परे है , मुग़ल गार्डन की ही बात कर लीजिये पिछले दिनों जब मैं वहां अपने मित्रों के साथ भ्रमण के लिए गया था मैंने देखा की गार्डन में इतनी सुरक्षा होने के बावजूद कईं लोगों ने यहां के नियमों का उलंघन किया। "सेल्फियां" लेने के लिए लोग रस्सियों को लांघ कर बगीचे में उतर गए। पेड़ो पर चढ़ने में भी लोगों ने किसी की न सुनी। एक पिता ने अपने बेटे से कहा इस फूल को पकड़ो लोग रोकते रहे की इसे छूना मना है फिर भी बच्चे ने फूल तोड़ ही लिया। बाहर निकलने वाले मार्ग पर कईं फूल आगन्तुओं के पैरों तले आये क्योंकि कुछ असमाजिक तत्व उन्हें भीतर से तोड़कर बाहर लाये थे।
राष्ट्रपति भवन के पीछे स्थित यह उद्यान लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और उसका महत्व समझाने की दृष्टि से हर वर्ष खोला जाता है परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि लोग यहां सिर्फ पिकनिक मनाने आते हैं, सेल्फियां खींचने आते हैं, यहां की सम्पदा को नुकसान पहुँचाने आते हैं. पर्यावरण का आनंद लेना चाहते हैं मगर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं. उस दिशा में कोई प्रयास भी नहीं करना चाहते. पर्यावरण के प्रति आम जनता में आज भी जागरूकता की कमी है.
No comments:
Post a Comment