रामनरेश
भारतीय समाज में जहाँ एक ओर महिलाओं को देवी मान कर पूजा जाता है वहीँ दूसरी ओर उन्हें पुरुषों से कमतर दोयम दर्जे का समझा जाता है, एक ओर महिला सशक्तिकरण की बात चल रही हैं वहीँ दूसरी ओर परिवार, समाज और व्यवस्था में उनकी उपेक्षा का सिलसिला लगातार जारी है, हाल ही में मुझे दिल्ली के एक प्रतिष्ठित और लगभग 60-70 साल पुराने "सफदरजंग अस्पताल" में जाने का अवसर मिला. सफदरजंग ऐसा नाम जिस पर लाखों लोगों को विश्वास है कि यहां हमारा अच्छे से इलाज होगा या हो जाएगा । आप हम इलाज तो करवा सकते हैं लेकिन अच्छी व्यवस्था की बात करना बेमानी होगी. सफदरजंग अस्पताल के "ओपीडी" की बात करें तो इसमें गर्भवती महिला के लिए एक अलग से विंडो बना हुआ है जिसमें वह आकर जल्दी से अपनी पर्ची बनवाकर चेकअप करवा सकती हैं. लेकिन इस अस्पताल में यह विंडो सिर्फ नामात्र की ही है इस नाम के विंडो में साफ साफ लिखा हुआ है कि "गर्भवती महिला यहां से पर्ची बनवाएं" और वहां जाने पर पता चलता है कि यह तो बन्द है इस संदर्भ में जब गार्ड से पूछा तो वह कहता है "महिला वाली लाइन में लग जाओ" गर्भवती महिला और आम महिला में क्या फर्क रह जायेगा इसी के लिए पूछताछ केंद्र जाने पर वहां बैठे कर्मचारी ने कहा कि "गर्भ से ही तो है न बच्चा बाहर तो नही निकल रहा है न" उनका ऐसा जवाब सुनकर मुझे बड़ी हैरानी हुई, कितने असंवेदनशील हैं यह लोग. आपके पास समय है और आप चाहते हैं कि किसी और को यह सब न भुगतना पड़े तो इसकी शिकायत के लिए पांचवे तल पर जाकर अपनी शिकायत या सुझाब दे सकते हैं. शिकायती काउंटर पर जाकर अपनी समस्या बतायी तो वहां बैठे व्यक्ति ने कहा की जब आपका काम हो चूका है तो आप इस झमेले में क्यों पड़ रहे हैं.
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