सुबोध आनंद गार्ग्य...
वरिष्ठ कथाकार काशीनाथ सिंह की कहानी ‘जंगलजातकम्’ मनुष्य की स्वार्थपरकता, उसके अहंकार और विवेकशून्यता पर केंद्रित है. उपरोक्त कहानी में काशीनाथ जी ने प्रारम्भिक काल से मनुष्य और जंगल के बीच के संबंधों और समय के साथ उनमें बदलावों को प्रस्तुत किया है. मनुष्य को जंगल के पेड़ों के प्रति दुर्व्यवहार और अपने लालच के लिए उनके प्रति साजिश करते दिखाया गया है.
जंगलजातकम् में ‘घमोच’, ‘कुल्हाड़े’ जैसे चरित्र मानवीय क्षुद्रता और विवेकहीनता को दर्शाते हैं. ‘घमोच’ मनुष्य को पेड़ों के खिलाफ उकसाता है, उनके प्रति हिंसा को मनुष्य के लिए हितकर बताता है. वहीं ‘कुल्हाड़े’ बेंटों की तलाश में पेड़ों को काटने हेतु उतारू है. कहानी में विभिन्न तरह के पेड़ों का उल्लेख जंगल के वातावरण को जीवंत करते हैं. पेड़ों का आपसी वार्त्तालाप वास्तविक समस्याओं पर प्रकाश डालता है. प्रकृति के प्रति हो रहे अन्याय और इस विनाशलीला में मानवीय संलिप्तता अंधकारमय भविष्य की ओर ईशारा करती है.
जंगल-आदिम संबंधों पर आधारित ‘जंगलजातकम्’ मानव की अमानवीय क्रूरता को दर्शाती है. लेखक मनुष्य को उसकी मर्यादा याद दिलाते हुए उसके कर्मों के दुष्प्रभाव का बोध कराते हैं. कहानी के जरिए लेखक मनुष्य की अमानुषिक क्रियाओं की एक सीमा चाहते हैं जिससे कि जंगल का वातावरण मंगलमय रहे. मानवीकृत अमंगलमयता जंगल में वास ना करे.
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