Tuesday, 7 October 2014

गज़ल


मुहब्बत
कृष्णा सरोज 
दीवानगी है मुहब्बत, जुदाई है मुहब्बत ।
आसमाँ से चाँद-तारे, तोड़ लाई है मुहब्बत ॥

ना जाने कब किससे, दिल मिल जाए ।
क्या चीज़ ख़ुदा ने, बनाई है मुहब्बत ॥

एक दूजे के बगैर, वो रह नहीं सकते ।
जिसने दर्दे -दिल से, निभाई है मुहब्बत॥

ज़माने के हर बंधन तोड़ जाती है ।
मांग महबूब की लहू से, नहलाई है मुहब्बत ॥

ज़माना लाख कोशिशें  कर ले, रोक नहीं सकता ।
महल की शहज़ादी को, झोपड़ी तक लाई है मुहब्बत ॥



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