Sunday 4 December 2016

सकारात्मकता और सद्भाव का सबक सिखाती शंकर लाल जी की ज़िन्दगी

बिपिन बिहारी दुबे 
आवो सा, पधारो, विराजो जैसे शब्दों की मिठास लिए लोग जब आपका स्वागत कर रहे हों. आपका उनसे जुड़ाव स्वतः हो जाता है. राजस्थान की संस्कृति का सबसे आकर्षक पहलु यही है जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों में मैंने ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलने और जानने की कोशिश की. इसी कोशिश में कुछ दिनों पहले झाड़ोल उदयपुर के बारी गाँव के निवासी शंकर लालजी से मिला. बगैर किसी भौतिक सुविधा वाले गाँव में रहने वाला एक शख्स बिना किसी आक्रामकता के कैसे देश के लोगों को साकारात्मक सन्देश दे देता है. मैंने बातचीत कर  शंकर लालजी से सीखा.  इसलिए सोचा कि आपके साथ भी साझा करूँ. उससे पहले मेरे दोस्त सदाशिव रेड्डी को बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद देता हूँ. रेड्डी की सहायता के बिना यह बिलकुल भी संभव नहीं था.

बिपिन- आप मूलतः यहीं के रहने वाले हैं? या कहीं और जगह से आकर बसे हैं?
शंकर लालजी- हमलोग मूलतः पास के ही सैलाना गाँव के बाशिंदे थे. लेकिन हम चार भाई थे. इसलिए परिवार बड़ा होने के कारण मैंने अपने परिवार के साथ बारी के इस मंगरी पर अपना घर बनाया. मेरे परिवार में ही देखिये पत्नी,  2 लड़के और 3 लड़कियाँ हैं.  आज भी हमार व्यवहार उनके साथ बना हुआ है. हम सब एक दुसरे के सुख-दुःख में शामिल होते हैं.
बिपिन- यहाँ भी आपको काफी असुविधा होती होगी? मैंने देखा रास्ते में एक नदी थी जिसको हम पार कर के आये. फिर आपका तो रहवास ही यहीं है.
शंकर लालजी- पूरा बरसात दिक्कत होता है.  बरसात के समय में पहाड़ी नदी के आने के कारण सड़क, बाजार, विद्यालय, अस्पताल आदि से बिलकुल कट जाता है. किसी आपात स्थिति में बहुत मुश्किल से कई लोगों की मदद से नदी पार कर जाना-आना पड़ता है.
बिपिन- अभी आप रोजी-रोटी के लिए क्या करते हैं?
शंकर लालजी- यही खेत में काम करता हूँ. यहाँ ज्यादातर लोग खेती-किसानी ही करते हैं. पैसे की तंगी थी तो कुछ समय के लिए उदयपुर में मजदूरी भी की. लेकिन वो रास नही आया तो वापस आकर किसानी शुरू कर दी. दो पैसा कम ही सही; यहाँ किसीका हुकुम तो नहीं बजाना पड़ता.
बिपिन- आपने कहाँ तक पढाई की है?
शंकर लालजी- (अत्यंत उत्साहित होते हुए) सर, मैं आठवीं तक पढ़ने वाला गाँव का पहला व्यक्ति हूँ. और भी पढ़ना चाहता था. लेकिन पारिवारिक स्थिति, किसी प्रकार की सुविधा नहीं होने के कारण, और साथ ही तब इधर कोई दसवी तक का विद्यालय भी नहीं था. आठवीं तक ही पढ़ने के लिए मुझे यहाँ से १० किलोमीटर बाघपुरा पैदल जाना पड़ता था. लेकिन मैंने अपने गाँव वालों को पढ़ाने के लिए बहुत मेहनत किया. आज आप जो बारी स्कूल देख रहे हैं. वहाँ मैंने ही 1995 में सबसे पहले अंकुर संस्थान और प्रोढ़ शिक्षा वालों के साथ मिलकर पढ़ाने का कार्य शुरू किया था. तब हम टेम्पररी व्यवस्था कर के रात को गाँव के लोगों को इकट्ठा कर साक्षर करने का कार्य करते थे. फिर कुछ समय बाद वहाँ प्राथमिक विद्यालय खुला और अब वह आठवीं तक हो चूका है. जिसमें हमारे गाँव के अलावा और भी कई गाँव ले लड़के-लड़कियाँ 2-3 किलोमीटर से चल के आते हैं.
बिपिन- यहाँ मुख्य तौर पर खेती किसकी होती है? आज के समय में सिर्फ खेती से काम चल जाता है?
शंकर लालजी- यहाँ तो दो ही फसल होती है. अभी मक्के की कटाई हुई है और अब गेहूं लगायेंगे जो मार्च तक तैयार होगा. अनाज ठीक-ठाक हो तो चल जाता है. अभी ये मक्का लगभग 4 महीने तक चलेगा तब तक गेहूं हो जाएगा. कभी-कभी दो-एक महीने की दिक्कत आती है. तो मजदूरी कर लेते हैं. अब तो लड़के भी कमाने लगे हैं. तो ज्यादा दिक्कत नहीं आती है.
बिपिन- आपके बच्चों की पढ़ाई तो ठीक हुई होगी?
शंकर लालजी- हां ठीक ही है. दोनों लड़के दसवीं पास है. दोनों JCB चलाते हैं. एक लड़के की शादी कर दी. एक लड़की ने अभी कॉलेज (ग्रेजुएशन) पास किया है. एक दसवीं में है और एक आठवीं में.
बिपिन- यहाँ पीने के पानी का व्यवस्था कैसा है?
शंकर लालजी- पीने के पानी की कोई असुविधा नहीं है. सामने जो कुआँ है वो हम सबने मिलकर खोदा था. वहीं से पानी निकाल कर आप पियें, खाएं, नहाएं, पशुओं के लिए इस्तेमाल करें. आपके ऊपर है. काफी भाग-दौड़ के बाद मैंने सरकार से एक मोटर लगवा लिया. तो अब पानी बार-बार निकालने के मेहनत से बच जाते हैं.
बिपिन- मोटर कैसे चलता है बिजली से?
शंकर लालजी- गाँव में बिजली नहीं है सर. एक मशीन है जिसमें जरुरत के अनुसार तेल डालकर चलाते रहते है.
बिपिन- आपके घर के पास एक मंदिर है वो किस देवता का है?
शंकर लालजी- वो मंदिर नहीं है सर, वो दरगाह है मोईनुद्दीन का. बहुत शक्ति है उनमें.
बिपिन – पर आप तो हिंदू हैं? आपके घर में दरगाह कैसे?
शंकर लालजी – क्या फर्क पड़ता है सर? हम तो इनकी पूजा करते हैं. एक बार मेरी घरवाली बहुत बीमार थी. बचने का कोई चांस नहीं था. मुझे लोगों ने अजमेर मोईनुद्दीन के दरगाह जाने को कहा. मैं गया और मन्नत मांगी कि अगर मेरी पत्नी की तबियत ठीक हो जाती है तो मैं आपको घर में ले जाऊँगा. कुछ ही दिनों में मेरी पत्नी ठीक हो गयी. फिर मैं अपने घर में उनको बैठाया. मैंने कहा न बहुत शक्ति है उनमें. कभी आप वीरवार को आइये तो देखिएगा कितनी भीड़ होती है. बहुत दूर-दूर से लोग चल कर आते हैं यहाँ.  
बिपिन- इतने कम समय में आपने मुझे बहुत जानकारी दी. जिससे मेरा मनोबल भी बढ़ा. आप अपनी तरफ से कुछ कहना चाहेंगे.
शंकर लालजी- और क्या कहेंगे सर? सब ठीक चल रहा है. बस सरकार मुख्य सड़क से लेकर यहाँ तक एक सीसी रोड बनवा दे तो आने-जाने की सुविधा हो जाए. मेरा तो छोड़िये जो लोग यहाँ बाबा के पास आते हैं उनको बहुत दिक्कत होता है.

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