Tuesday 6 December 2016

विवेक मिश्र को अठारवाँ रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार

अठारवाँ रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार समारोह के मौके पर आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि कहानीकार रामाकान्त जी एक प्रतिबद्ध रचनाकार थे। उनकी कहानी लड़ाई का ज़िक्र किया और कहा की यह कहानी हँसिये के समाज की कहानी है। संस्मरण सुनते हुए कहा की मैं और रामाकान्त कहते थे कि अभी तक हमलोगों को कोई पुरस्कार नहीं मिला, आगे कभी मिलेगा। मैं ज़िन्दा रह गया, अगर वो होते तो उनको भी मिलता। रमाकांत जी बहुत स्वाभिमानी थे। उनको उपेक्षित रखा गया। रामाकान्त सम्मान एक बड़ा सम्मान है।
इस अवसर पर रामाकान्त स्मारिका का लोकार्पण किया गया। महेश दर्पण ने लेखक विवेक मिश्र का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि विवेक जी हमेशा मुस्कुराते हैं पर लेखन में वे मुस्कुराते नहीं है।
मैत्री पुष्पा ने विवेक मिश्र की कहानी जिसे पुरस्कार मिला "और गिलहरियाँ बैठ गई" के विषय में कहा की इस कहानी को दो-तीन बार पढ़नी चाहिए। यह कहानी दिल को छूती है। इस कहानी में स्त्रियों का जीवन है। शहर की स्त्री जो बढ़-चढ़ कर बोलती हैं उनमे पचास प्रतिशत झूठ होता है। विवेक की कहानी में स्त्री के माध्यम से बात पुरुष कहलवाता है। यह कहानी मुझे झाँसी की ज़मीन पर खड़े होकर सोचने को मजबूर करती हैं। कुछ नसीहतें भी दिया उन्होंने।

हंस में संपादक संजय सहाय ने कहा की इस कहानी में उसकी भाषा बहुत प्रभावित करती है। कहानी में स्वतः सम्पादन बहुत बेहतर है। यह मूलतः पेट्रियार्की की कहानी है और आधी एक माँ की कहानी है जो बहुत कुछ सहती है।
नाटककार दिनेश खन्ना ने कहा की यह कहानी सोचने पर विवश करती है। यह बहुत सूक्ष्म कहानी है। कहानी की कसौटी कहानी होती है। कहानी "और गिलहरियाँ बैठ गई" अवसाद की कहानी है। भागम-भाग की ज़िंदगी में सन्नाटा है। यह कहानी आदमी को दस्तक देती है। आज के समय में ऐसी कहानी सहारा है। लो प्रोफ़ाइल व्यक्ति की कहानी है।

सुशील सिद्धार्थ ने कहा की विवेक मिश्र मेरी दुनिया की लेखक हैं। विवेक जिन संघर्षों को जगह देते हैं वह महत्वपूर्ण हैं। छोटी-छोटी चीज़ों को महत्व देते है। विवेक एक सरल व्यक्ति हैं। व्यक्ति, मित्र, पिता, नागरिक के रूप में बहुत मौन हैं। स्त्री विमर्श के नाम पर हिंदी में बहुत कचरा लिखा गया है। पर विवेक उसमें से अच्छी चीज़ निकाल लेते हैं। आज राजनीति में ही नहीं कहानियों में भी लोग फेंक रहे हैं। मैं विवेक को छोटी कहानी का हुनर मंद मानता हूँ। यह कहानी आज की कहानियों से अलग है यही विशेषता है। विवेक ऐसे लेखक हैं जिन पर भरोसा किया जा सकता है।

कथाकार संजीव ने कहा कि मेरे लिए सुखद है कि मेरे प्रिय लेखक विवेक मिश्र को सम्मानमिला है। जिस समय में कहानी कविता से लोग दूर जा रहे हैं उस समय कहानी के विवेक को बचाने का काम विवेक कर रहे हैं। उन्होंने विवेक की कहानी ये 'गंगा तुम बहती क्यों हो' का जिक़्र किया । 'हनिया' कहानी की चर्चा करते हुए यह कहा की जिन चीज़ों को कोई नाहीं उठता उसे यह उठाते हैं। "और गिलहरियाँ बैठ गईं' कहानी को जादुई यथार्थ की कहानी बताया। साथ ही कहा कि इनकी कहानी में बराबर रहस्य बना रहता है। विवेक की तुलना काफ़्का, उदय प्रकाश, निर्मल वर्मा आदि लेखकों से किया। और कहा कि लेखक समय की नब्ज़ को टटोलते हैं।
विवेक के अंदर से नई ज़मीन निकल रही है। "और गिलहरियाँ बैठ गईं" कहानी में संवाद हीनता के माध्यम से कहानी को कहा गया है।
रमाकांत स्मृति सम्मान से सम्मानित हुए कहानीकार विवेक मिश्र ने कहा की पुरस्कृत होना मेरे लिए यह हर्ष का विषय हैं। हम लोग साहित्य विरोधी समय में हैं। जिस समय केलिए लिख रहे हैं वह समय बहुत चुनौती पूर्ण समय है। अपनी कहानी "और गिलहरियाँ बैठ गईं" की रचनाप्रक्रिया के विषय में विषय में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि मेरे भीतर जो घटता है मैं उसे कहानी के रूप में लिखता हूँ। समय की ज़ब्ज को पकड़ कर लिखना बहुत ज़रूरी है। पाठकों के पत्र और फ़ोन आदि ने मेरे भीतर मरते हुए कहानीकार को बचाए रखा है। यह पुरस्कार मेरे भीतर के कथाकार के लिए अकसीजन हैं।

विष्णु चंद्र शर्मा ने अपने समापन वक्तव्य में कहा की रामाकान्त विस्थापित थे। रामाकान्त जहाँ होते थे उस बस्ती की कहानी लिखते। बस्ती को क़रीब से देखते थे। रामाकान्त पत्रकारों पर कहानी लिखना चाहते थे। वो जैसे बोलते थे वैसे लिखते थे। दिल्ली के सादतपुर की खोज की। सादतपूर के कई चेहरों को अपनी कहानी के माध्यम से सामने लाया। वो सादतपुर के मारखेज़ थे।

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