बिपिन बिहारी दुबे
‘दंगल’ सिनेमा कहानी है एक
पिता महावीर सिंह फोगाट, और उनकी दो बेटी गीता और बबीता की. यह सिनेमा इन तीनों के संघर्ष की गाथा भी है। कैसे एक पिता
अपनी बेटियों को समाज में नयी पहचान स्थापित कराने के लिए अपना सबकुछ समर्पित कर
देता है? वह समाज की रुढियों से टकराता है। अपने पिता के इस भरोसे का प्रभाव उनकी बेटियों पर भी पड़ता है। जो दंगल में एक लड़के को पटखनी देने के बहाने पुरे समाज को पटखनी दे देती
हैं। जो लड़कियों को लड़कों से कम आंकने की कोशिश
करता है। दंगल के इस कहानी की भांति ही हमारे आसपास
भी कई ऐसी कहानियाँ लिखी और रची जा रही होती है। उनमें से कुछ इतनी
कामयाब होती हैं कि उन पर सिनेमा बन सके। कुछ कामयाब होने के
बावजूद लोगों तक नहीं पहुंच पाती। कुछ अपने संघर्ष काल के दौरान ही थक कर बैठ
जाती हैं। दंगल की ऐसी ही कहानी, जो उदयपुर
राजस्थान के झाड़ोल तहसील के लाखागुड़ा गाँव में लिखी जा रही है। यह कहानी है एक पिता मांगीलाल वढेरा और उनकी दो बेटी मधु और गीता की।
मधु जो हुआ
उसको भूलकर एक अच्छा शिक्षक बनना चाहती है। वो अपने लक्ष्य के बारे में लिखती है- ‘’जब
भी मैं उस पल को याद करती हूँ बहुत दुःख होता है। पर अब मैं एक आदर्श शिक्षक बनना
चाहती हूँ। जिससे अपने माता-पिता का नाम रौशन कर सकूं और समाज और देश के विकास में
सार्थक योगदान दे सकूं। मेरा दाखिला सिर्फ दस हजार रूपए की कमी के कारण नहीं हो
सका इसलिए मैं गरीब बच्चों की आर्थिक सहायता करना चाहती हूँ। इस सुदूर आदिवासी
क्षेत्र में लोगों को सरकार द्वारा चलायी जाने वाली योजनाओं के प्रति जागरुक भी करना
चाहती हूँ।’’
मांगीलाल जी झाड़ोल
तहसील के लाखागुड़ा गाँव के निवासी है। अरावली पहाड़ियों की गोद में बसा लाखागुड़ा सौ
फिसदी आदिवासी आबादी वाला गाँव है। जिसकी पहली पीढ़ी पूर्ण रूप से शिक्षा से जुड़
रही है। इसके पहले कुछ गीने-चुने लोगों ने पढाई किया। मांगीलाल जी उनमें से एक थे। मांगीलाल जी कहते हैं ‘’सर मुझे बचपन से ही डॉक्टर बनने का बहुत शौक था। और मैं
पढाई में होशियार भी था इसलिए मुझे लगता था कि मैं डॉक्टर बन जाऊंगा।’’ लेकिन बचपन
में ही उनके माता का देहांत हो गया। उनके पिताजी दूसरी लाड़ी(पत्नी) ले आए। पर वो
माता की कमी पूरी नहीं कर सकी। धीरे-धीरे मांगीलाल जी अन्य कामों में उलझते गए और
उनका शिक्षा से सम्बन्ध टूटता गया। किसी भी तरह से उन्होंने आठवीं तक पढाई पूरी
की। जिंदगी तेज रफ़्तार से आगे दौड़ी उनकी शादी हुई एक बेटा और दो बेटी हुई।आठवीं
तक पढ़ने के कारण मांगीलाल जी को उदयपुर के एक निजी कंपनी में नौकरी मिली। जिसमें
उन्होंने कई वर्षोँ तक कम किया। मांगीलाल जी अपने अधूरे सपने को अपने बच्चों के
माध्यम से पूरा करने की ठाने। उनको झाड़ोल के निजी विद्यालय में दाखिला दिलाया। लेकिन
लड़का बूरी संगती में फंस गया। और लाख कोशिश के बावजूद उसने पढाई-लिखाई नहीं की। ‘’क्या
करते सर, बहुत बिगड़ गया था। कितना मारा-पिटा, कसमें दिलाई लेकिन कोई फर्क नहीं
पड़ा। दसवीं तक आते-आते उसने पढ़ने से बिल्कुल मना कर दिया। फिर मैंने भी छोड़
दिया जा तेरी किस्मत में जो लिखा होगा वही होगा अब मैं क्या करूं?’’ बेटे से
नाउम्मीद होने के बाद भी उन्होंने भरोसा नहीं छोड़ा क्योंकि दोनों लड़कियाँ मधु और
गीता पढ़ने में अच्छी थी। मांगीलाल जी उन्हें देखकर खुश होते रहे ‘’मैं और मेरा
बेटा न सही बेटियाँ तो मेरे सपनों को जरुर पूरा करेंगी।’’
उन्होंने
जरुरत को देखते हुए कंपनी बदली और कुछ महीनों बाद ही नयी कंपनी पर फ्रॉड का केस
चला और वो बंद हो गयी। अच्छी भली चल रही जिंदगी एक बार फिर बेपटरी हो गयी। लड़कियाँ
अब ग्यारहवी-बारहवीं में पढ़ रही थी खर्चा ज्यादा था। उस बिच में नौकरी चली जाने के
कारण उनका पूरा होता हुआ सपना एक बार फिर अधूरा दिखने लगा। इधर घर का एक मात्र आय
का स्त्रोत बंद हुआ. पैसों की तंगी शुरू हो गयी। मांगीलाल जी धीरे-धीरे घोर निराशा
में डूबते गए और इसका असर उनके सेहत पर पड़ा। तबियत ऐसी बिगड़ गयी कि वो लगभग एक साल
तक उठ नहीं सके। इस बीच में ही उनकी बड़ी बेटी मधु ने बारहवीं के बाद नर्सिंग के
लिए भी चयनित हुई। पर घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उसका दाखिला
नहीँ हो पाया। पिता की तबियत और दाखिला नहीं होने की चिंता में मधु भी बिमार हो
गयी। मांगीलालजी कहते हैं ये उनके जीवन का सबसे बड़ा संकट काल था। ‘’ऐसा लगा सब कुछ
बर्बाद हो जायेगा. एक तो पैसे की तंगी और ऊपर से दो जनों का ईलाज। कहीं-कहीं से पैसा
इकट्ठा किया और कुछ जेवर खर्चे फिर किसी-किसी तरह से अपनी और अपनी बेटी की जान बचा
सके।’’ आज उस घटना को दो साल हो चुके हैं। इस बीच में छोटी बेटी गीता ने भी 2015 में बारहवीं पास कर लिया। गीता को वकील बनना
है पर यहाँ तो आगे पढ़ने के साधन उपलब्ध नहीं थे वो आगे की पढाई की बात घरवालों से
करती भी तो कैसे? स्वस्थ होने के बाद मधु ने डॉक्टर बनने के सपनों को छोड़ STC की
तैयारी करनी शुरू कर दी। 2016 में मधु का STC में
चयन हो गया लेकिन गीता कुछ अंको से रह गयी।
गीता दो साल
पढाई छूटने के दौरान भी हतोत्साहित नही हुई है। पिता के स्वस्थ होने के बाद अब वो
भी अपने वकील बनने के सपने को पूरा करने के लिए पूरी तैयारी के साथ जुटी है। साथ
ही साथ वह अन्य कई विश्वविद्यालयों के फॉर्म भी भर रही है। जिससे वो थोड़ी देर से
सही अपने सपने को पूरा कर सके। मांगीलाल जी स्वस्थ होने के बाद अब खेती-किसानी में
जुटे हैं। पर वो घर बैठना नहीं चाहते इसलिए इधर उधर छोटा-मोटा रोजगार तलाशते रहते
हैं। वे चाहते हैं कि गीता भी STC में दाखिला ले ले जिससे उसका भविष्य भी सुरक्षित
हो जाए।
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