Saturday 25 March 2017

कर्ज में डूबे गरीब और किसान के लिए कोई आर्थिक नीति नहीं


विकास कुमार

नोटबंदी के बाद  देश की अर्थव्यस्था  हलकी सी डगमगाई सी नज़र आती है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव private  sector के लोगो पर पड़ा है। नोटबंदी के चलते कुछ लोगों की नौकरी चली गयी आखिर ये लोग किनसे न्याय मांगे? जब भी अर्थव्यवस्था की बात करते हैं,तो जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद)की बात किये बिना बात पूरी नहीँ कर सकते हैं। पिछले साल की जीडीपी देखे तो देश के लिए  इसका स्तर अच्छा रहा है। नोटबंदी के कारण इस साल जीडीपी में थोड़ी कमी आ सकती है। परंतु सवाल ये उठता है, कि जब देश की जीडीपी इतनी अच्छी है, तो फिर देश में इतने सारे लोग बेरोजगार क्यों और कैसे हैं? क्या देश की जीडीपी बढ़ने से देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आयेगा? सरकार के इतने सारे स्कीम जैसे स्टार्टअप इंडिया,कौशल विकास,स्किल इंडिया से शायद देश के युवाओं को एक सही दिशा मिल सकती  है। लेकिन अगर देश में इतने लोग अशिक्षित हैं,तो फिर ये स्कीम कुछ लोगो के पास ही सिमट कर रह जायेगी।देश की शिक्षा व्यवस्था की बात करे तो देश के प्राथमिक विद्यालयों में अभी भी शिक्षा सही रूप में नही दी जा रही है। जिसके कारण बच्चों की प्राथमिक शिक्षा बर्बाद होती  जा रही  है। अगर प्राथमिक शिक्षा  अर्थात नींव ही बर्बाद हो जायेगी  तो फिर वो बच्चे आगे क्या पढ़ पाएंगे? भारत एक कृषि प्रधान देश है,लेकिन फिर भी देश की अर्थव्यस्था में कृषि की हिस्सेदारी केवल 14% सिमट कर रह गयी है। जबकि हमारे देश में लगभग 60% किसान खेती करते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001-2011 के बीच देश के 90 लाख किसान खेती करना छोड़ दिए हैं।अगर इसी तरह किसान खेती करना छोड़ते  जाए तो यह देश के लिए अभिशाप हैं, अगर इसी तरह चलता रहा तो एक दिन ऐसा होगा की लोग एक एक निवाले को तरस जायेंगे। फिर वहां पर पैसे और जीडीपी का कोई महत्व नहीँ  रह जायेगा।
2017-18 के बजट में सरकार ने किसान की हालत को देखते हुए उनके लिये अलग-अलग योजनायें निकाली गयी हैं। जैसे अगर आपने  फसल का बीमा  करवाया है और किसी कारणवश वो फसल बर्बाद  हो जाती है तो उसका हर्जाना 100% सरकार को देना होता है, वो भी 30 दिनों के अंदर। साथ में सरकार को भ्रश्टाक्च को कम करने के  लिये कड़े नियम भी बनाने  चाहिए ताकि बिचौलियों से बचा जा सके।

एक सर्वे के अनुसार 2001 से 2011 के बीच भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर 1.6% रही, वही खाद्यान उत्पादन की वृद्धि  दर 2001-11 के बीच मात्र 1.03 %ही रहा। यानी कि  देश में उपलब्ध अनाज की मात्रा से देश की सम्पूर्ण जनता का पेट नही भरा जा सकता है। जिस प्रकार से जनसँख्या बढ़ रही है उसको देखें तो 2050 से भारत में बढ़ती जनसख्या या उपलब्ध जनसख्या के लिए 450 मिलियन टन खाद्यान की जरूरत पड़ेगी,किन्तु वर्तमान समय में उत्पादन इस लक्ष्य से बहुत कम मात्रा में है। पिछले कुछ सालों की खाद्यान उत्पादन की रिपोर्ट इस प्रकार हैं-
वर्ष                                                    कुल उत्पादन
2012-13                                            257 मिलियन टन
2013-14                                            263 मिलियन टन
2014-15 (सूखे के कारण)                      252 मिलियन टन
2015-16                                            253 मिलियन टन


इन आँकड़ो को देखने के बाद ज्ञात होता है कि भारत में ऐसे जाने कितने लोग हैं, जो दिन में एक बार के खाने के लिए भी तरसते रहते हैं और उनका  हर एक दिन जंग जैसा गुजरता है ।


UNICEF के रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कुपोषण या भूख से मरने वाला हर चौथा व्यक्ति भारतीय है । वही WORLD HUNGER REPORT के अनुसार 2015 में भारत में प्रथम स्थान पर भूख से पीडित लोगों की  संख्या थी। 194 मिलियन लोग भूख के शिकार हुए थे । GLOBAL HUNGER INDEX(वैश्विक भूख सूचकांक)जिसे IFPRI(International food policy research institute) जारी करता है, इसके अनुसार कुल 118 देशो की सूची में भारत की स्थिति 97वें स्थान पर है। यह सूचकांक 100 अंको पर आधारित होता है। जिसमें की भारत को केवल 29 अंक मिले हैं।

आज गरीब और किसान दोनों लोग कर्ज में डूबे हुए हैं।आज किसान की हालत ये हो गयी  है, कि उनके सामने एक तरफ़ कुआँ और एक तरफ़ खाई ना होकर दोनों तरफ ही खाई  है की स्थिति है। चुनाव के वक़्त लंबे लंबे जुमले दिए जाते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है वैसे ही किसानों का दर्द ये नेता लोग भूल जाते हैं। देश को आज़ाद हुए 70 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी किसान गुलामी की ज़िंदगी ही जी रहे हैं, बस फर्क इतना है, कि ये पहले अंग्रेज़ो के गुलाम थे और आज अपने भारतियों के गुलाम हैं। क्या किसान को अच्छी ज़िन्दगी जीने का कोई हक नही?क्या इस देश का किसान होना एक श्राप है?

किसान अपने बेटे को गाँव की सरकारी स्कूल में पढ़ाने को मजबूर हैं,जहाँ शिक्षा के नाम पर बस खाना पूर्ति की जाती है।  शिक्षा व्यवस्था इतनी अच्छी की जानी चाहिये कि किसान का बेटा और नेता का बेटा  एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करे ।ताकि अच्छी शिक्षा के साथ गरीबी का भेद-भाव भी खत्म किया जा सके। प्राथमिक शिक्षा ही सही नही हो पायेगी  तो क्या गरीब और किसान के बच्चे skill india,कौशल विकास जैसी योजनाओं का लाभ उठा पाएंगे?  सरकार को बड़े बंगले ,A.C कमरे में रहकर भी जमीनी स्तर में सोचते हुये  गरीबो के लिए योजनायें बनानी चाहिये। अन्यथा इनका विकास सही तरीके से सम्भव नही है।

सरकार को इसपर गहन विचार करने की ज़रूरत है। केवल देश की जीडीपी बढ़ने से देश के हर व्यक्ति का विकास नहीँ  हो जाता है ।लेकिन हां  अगर गरीब लोगो का विकास होगा तो देश का भला और विकास दोनों होगा और  देश का विकास होने से जीडीपी का का ये ग्रोथ और भी ज्यादा अच्छा होगा। जिससे देश के लोग ख़ुशी से अपनी ज़िंदगी जी सकेंगे।

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