Saturday, 5 October 2019

कमजोर होता सूचना के अधिकार

अनुराग  अज्ञेय
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं, तो मेरा सीधा मतलब जनता के शासन से है। जनता का शासन अर्थात शासन व्यवस्था की सर्वोच्च कोटि है, लेकिन फिर भी आज हम इससे कोसों दूर हैं। जब हमारे देश में सूचना के अधिकार 2005 आया तो ऐसा माना गया कि हमारी सरकार अपनी खामियों को दूर करेगी। लेकिन हमारी शासन व्यवस्था की यह विडंबना है कि हम अपनी शासन व्यवस्था का दर्पण अर्थात सूचना के अधिकार पर कालिख पोत चुके हैं। मौजूदा स्थिति को देखें तो सचमुच हम अपनी अभिव्यक्ति की आजादी की स्वतंत्रता आंशिक रूप में खो चुके हैं। बीते कुछ वर्षों पहले हम अपनी सरकार के प्रति उंगली उठा सकते थे। इसके पहले हम कोई  भी सरकारी आकड़े सुचना अधिकार 2005 अधिनियम के तहत मिल सकते थे। सरकारी आंकड़ा मांगने के लिए किसी को सड़क पर उतरना नहीं पड़ता था। हम एक स्वच्छ लोकतंत्र तथा शांतिपूर्ण ढंग से लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का सहभागिता बने रहे। अब हालात बदल चुके हैं, हमें सरकारी सूचना के मामले में आईटीआई 2005 एक्ट के जरिए नहीं प्राप्त कर सकते हैं। आरटीआई 2005 आज हमारे बीच एक संस्था मात्र है जैसे किसी दरवाजे पर लटके ताले! क्या या हमारी जरूरत नहीं है कि हम अपनी सरकार, सिस्टम, या फिर अन्य सरकारी कार्यों का उनसे व्योरा मांगे ।
इससे पहले की हम भारतीय होने के नाते आयकर भी भरते हैं। यह एक रूप में हमारी मौलिक अधिकार में वर्णित स्वतंत्रता का हनन करती है। यह मौजूदा सरकार आज सूचना के अधिकार 2005 जैसे मौलिक संस्था को एक धरोहर बनाना चाहती है। इस सरकार की नीति लोकतंत्र के लिए सचमुच बड़ा घातक मालूम पड़ता है। क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी छिनना लोकतांत्रिक संविधान में कहीं वर्णित नहीं है आज के दौर में अगर आपको सूचना प्राप्त करना है तो उससे संबंधित उस कैबिनेट की विभाग में जाइए। मैं आपसे पूछता हूं कि क्या प्रमाण है कि दिये गए आंकड़े सरकार या फिर हमारे विकास के वास्तविक मुद्दों के तहकीकात करते हुए सही होंगे। सरकार द्वारा प्राप्त आंकड़े मनगढ़ंत भी हो सकता है जो हमारे विकास और हमारे देश के लिए काफी अंधविश्वासों की आशाओं से भरा रहेगा। अतः यह हमारा दायित्व बनता है कि हमें इसके प्रति सरकार को आवाज देनी होगी और सूचना अधिकार को जीवंत स्तंभ देनी होगी। सूचना अधिकार 2005 लोकतंत्र की प्राणवायु है जो लोकतंत्र को जीवित रखती है। अगर कल सूचना अधिकार 2005 को पूर्ण ध्वस्त कर दिया जाए तो हमारी लोकतंत्र कृतिम प्राणवायु से चलने लगेंगे। अतः सूचना अधिकार 2005 को हमें जीवित करनी होगी ताकि हम अपनी सरकार और उनके व्यवस्थाओं के बारे में जान सके। अगर हम कल सूचनाओं के अधिकार 2005 को खोते हैं तो आने वाला कल की क्या गारंटी है कि हमारी आवाज सरकार तक पहुंचे। जब हमारी आवाज सरकार तक नहीं पहुंचे गी तो सचमुच लोकतंत्र की कल्पना करना असंभव हो जाएंगे। हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र को खो देंगे। 

1 comment:

  1. पढ़ के दिल आनंद से भर गया है ।

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