आजादी के बाद शिक्षा की समीक्षा और प्रगति के लिए बने शिक्षा आयोगों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कोठारी आयोग। प्रो डी एस कोठारी जी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग के प्रतिवेदन के आधार पर ही देश में पहली शिक्षा नीति 1968 बनाई गई थी। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि इस आयोग के सदस्य सचिव श्री जे पी नाईक , जो भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय में सलाहकार थे, ने इस नीति को लागू होने के बाद के बीस साल की समीक्षा की थी। उन्होने लिखा है कि " शिक्षा के निर्णय शैक्षिक नहीं ; राजनैतिक होते हैं ।" जे पी नाईक जी देश और दुनिया के प्रसिद्ध शिक्षाविद् हैं। पुणे में उनके नाम से एक संस्थान स्थापित किया गया है जो प्रारंभिक शिक्षा के लिए कार्य करता है। क्या हम लोग यानि शिक्षक और शिक्षा में परिवर्तन के लिए काम करने वाले लोग,खुद से यह प्रश्न कर सकते हैं कि क्या मैने देश में लागू की गई पहली शिक्ष नीति पढ़ी, समझी है? यदि नहीं ; तो क्यों? इसके लगभग अठारह वर्ष बाद देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी की अगुवाई में देश की दूसरी शिक्षा नीति बनी जो 1986 में बनी और बहुत जोर शोर से लागू हुई।लोक सभा में पूरे दो दिन तक सांसदों से चर्चा के बाद यह शिक्षा नीति नीति बहुत उत्साह से लागू की गई थी। बहुत सारे लोग यह जानते और मानते हैं कि इस नीति में बहुत सारे ऐसे प्रावधान किए गए थे जिन्हें शिक्षा में व्यापक परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। दो तीन साल बहुत तेज़ी से काम होने के बाद यह नीति लगभग थम सी गई। तत्समय प्रधानमंत्री बदलते ही शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए आचार्य राममूर्ति समिति गठित हुईं और इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रोग्रेम ऑफ एक्शन ( पी ओ ए) 1992 तैयार किया गया । हम लोग फिर ख़ुद से प्रश्न कर सकते हैं कि क्या हमने इस दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पढ़ - समझ लिया है ? यदि नहीं ; तो क्यों? क्या यह भी उपलब्ध नहीं हुईं या आपकी पढ़ने में रुचि नहीं है ? अब देश भर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की बहुत चर्चा हो रही है जिसे हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी की गंभीर पहल के रूप में विकसित किया गया है। लगभग पांच साल की लंबी अवधि में बनी यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक बार फिर बहुत चर्चा में हैं। खूब सारी बड़ी बड़ी बातें की जा रही है इसके विशेष होने की। एन सी एफ तैयार हो रहा है। इसके पहले सभी राज्यों में एस सी एफ तैयार हो रहे हैं। भारी भरकम राशि खर्च होना शुरु हो गई है। क्या शिक्षकों और शिक्षा में परिवर्तन के लिए काम करने वाले लोगों ने इस नीति को पढ़ लिया है ? क्या शिक्षकों की इस नीति को लागू करने में कोई भूमिका नहीं है ? इस नीति में शिक्षकों को प्रकाश पुंज कहा गया है। क्या अभी सरकार की तरफ़ से या समाज और राजनीति से जुडे लोग शिक्षकों को इस योग्य मानते हैं कि वे प्रकाश पुंज हो सकते हैं ? प्रशासन को तो शिक्षक बहुउद्देशीय कार्यकर्त्ता नज़र आते है जो शिक्षा के क्षेत्र में कुछ भी ठीक से नहीं करते हैं ? क्या इस नीति को शिक्षकों ने रुचि पूर्वक पढ़ लिया है ? यदि नहीं तो क्यों ? मेरे विचार से सभी शिक्षकों को बहुत गंभीरता से देश में शैक्षिक बदलाव के लिए बनाई गईं तीनों नीतियों को जरूर पढ़ना समझना चाहिए और खुद यह कार्य करने की दिशा में सक्रिय पहल करना चाहिए कि अच्छी अच्छी शिक्षा नीतियों का शिक्षा व्यवस्था पर कोई विशेष प्रभाव क्यों नहीं पड़ता ? हमारे देश का श्रम, संसाधन और समय क्यों व्यर्थ हो रहा है ? क्यों सरकारी विद्यालयों पर समाज को भरोसा नहीं रह गया है ? शिक्षकों की भूमिका को सर्वोत्कृष्ट मानने के बावजूद क्यों शिक्षकों की हैसियत लगातर घट रही है ? सबकी मदद के बावजूद विद्यालय की परिस्थिति कमजोर हो गई है जिस कारण बच्चे तनाव में हैं, पालक तनाव में हैं और शिक्षक खुद तनाव में रहते हुए अपने आप से भरोसा खो बैठे हैं।कुछ गिने चुने शिक्षक ही सबको योग्य नजर आते हैं जबकि बच्चों को तो सभी शिक्षक पढ़ाते हैं । लगता है कि अब वह समय आ गया है जब सभी शिक्षकों को शिक्षण के प्रति अपने दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सब सारी शिक्षा नीतियों का सम्यक रूप से अध्ययन करना शुरु करें और खुद ही अपनी कार्य योजना तैयार करें। अपने अपने विद्यालय को आनंद घर का रूप दे कर सभी बच्चों के लिए रूचिपूर्ण शिक्षण संस्थान बनाने की दिशा में सक्रिय पहल करें तो संभव है कि समाज और सरकार का भरोसा जीता जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत शिक्षक संदर्भ समूह आप सभी से विनम्र अनुरोध करता है कि समूह के साथ जुड़कर विद्यालय को आनंद घर बनाओ अभियान को सफल बनाने में मदद कीजिए। यह बुनियादी काम है जो आज की जरूरत भी है। वर्ष 2007 में शिक्षा बचाओ आंदोलन से उपजे शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने देश के सामने शिक्षा का नया प्रतिमान स्थापित करने के लिए काम करना शुरू किया है। न्यास की मान्यता है कि" देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलो।" शिक्षा से जुड़े दस विषय, तीन आयाम और तीन कार्य विभाग के संरचनात्मक ढांचे के साथ कार्यरत न्यास के अनुसार" सजग शिक्षक से ही बेहतर शिक्षा मिलेगी और बेहतर समाज का निर्माण होगा । देश की शिक्षा में नए विकल्प की आवश्यकता का अनुभव करते हुए न्यास के सक्रिय पदाधिकारियों ने शिक्षा में समग्र परिवर्तन के लिए ही न्यास का गठन किया है। न्यास का ध्येय वाक्य है " देश बदलना है तो शिक्षा बदलो। देश की शिक्षा अपनी संस्कृति, प्रकृति एवम् प्रगति के अनुरूप बनें।" न्यास देश व्यापी प्रयास कर रहा है। न्यास के सचिव श्री अतुल कोठारी जी जी कहते हैं कि शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा होना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात को स्वीकार कर लिया गया है। वे कहते हैं कि शिक्षा स्वायत्त हो। यही वह बिन्दु है जिस पर सबको सोचना चाहिए। सरकारी ढंग से सोचने वाले लोगों को यह समझ ही नहीं आएगा। जो शिक्षा को भी विभाग की तरह मानते हैं उनके लिए तो शिक्षा कानून का विषय है जबकि सही बात यह है कि शिक्षा का मुख्य काम मानवीयता का सृजन करना है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा निरंतर शिक्षा में परिवर्तन और सुधार के लिए सार्थक पहल की जा रही है। शिक्षक संदर्भ समूह देश भर में विद्यालय को आनंद घर बनाओ अभियान शुरू कर रहा है। प्रसिद्ध शिक्षाविद् गिजू भाई जी के दर्शन पर आधारित इस समूह में शामिल शिक्षक स्व प्रेरणा से शिक्षा में परिवर्तन और सुधार के लिए रचनात्मक मैत्री समूह के रूप में काम करने के लिए तैयार हुए हैं। न्यास द्वारा संचालित अभियान को शिक्षक संदर्भ समूह द्वारा अपनाया जा सकता है। न्यास के सचिव और सभी शिक्षाविदों का शिक्षक संदर्भ समूह आभारी रहेगा यदि सबको साथ दे सकेगें।
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