नई दिल्ली, तीन दिवसीय शिक्षा के महाकुंभ का सुभारंभ पूसा के सुब्रम्ण्यम सभागार में केंद्रीय कृषि मंत्री माननीय नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा दीप जला कर किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप मे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा की ज्ञानोत्सव ज्ञान का उत्सव ही नहीं, यह ज्ञान का यज्ञ है। सात्विक उद्देश्य से किए जाने वाले यज्ञ में सर्वश्रेष्ठ की आहुति देनी होती है। इस ज्ञानोत्सव में आने वाले साधारण कार्यकर्ता नहीं बल्कि आप भारत के निर्माता हैं। भारतीयता मेरी माँ के स्तन से निकले दूध के समान है। स्तन से निकला दूध रक्त का संचार करता है। भारतीय शिक्षा समावेशिता की यात्रा करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल में सार्वभौमिकता, समता और समग्रता है। विद्या हमारे धर्म का लक्षण हैं। आप सभी श्रेष्ठ भारत के निर्माण में शिक्षा के क्रियान्वयन में भागीदार बने ऐसी आशा करता हूँ। यह उद्गार शिक्षा संस्कृति उत्थान द्वारा अयोजित तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव के शुभारंभ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप मे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी ने व्यक्त किए। नई दिल्ली के पूसा परिसर में सुब्रह्मण्यम सभागार में यह तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं विभिन्न शैक्षणिक संस्थान के साथ आयोजित किया गया।
ज्ञानोत्सव की संकल्पना को व्यक्त करते हुए न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को साकार करने के लिए ज्ञानोत्सव में चिंतन, मनन और समाधान पर चर्चा होगी। हमारे ध्येय वाक्यों को हम सार्थकता की ओर ले जा रहें हैं। देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा। समाज में परिवर्तन शिक्षा से ही किया जा सकता है। भारत केंद्रित शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए हम कार्य कर रहे हैं। हमें भारत के गांवों, विद्यालयों, महाविद्यालयों तक पहुंचने की योजना बनाना है। उस हेतु राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस ज्ञानोत्सव के बाद राज्य तथा नगर स्तर तक ज्ञानोत्सव का आयोजन किए जाने की योजना है। सरकार ने जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई है उसके क्रियान्वयन में समाज की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। लोकतंत्र में सरकार और समाज मिलकर सामूहिक प्रयास करेंगे तो सफलता निश्चित है।
ज्ञानोत्सव को संबोधित करते हुऐ सह - सरकार्यवाह श्री अरुण कुमार ने कहा कि पूरे देश में एक निरंतरता है। एक राष्ट्र, एक समाज, और एक संस्कृति भारत की विशेषता है। अब देश में अमृतकाल प्रारंभ हो चुका है। आने वाले 25 वर्षों में इसकी पूर्णता पर भारत का दैदिप्यमान दिखाई देगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण अपने आप में एक संकेत है। परिवर्तन की इच्छा रखिए, परिवर्तन प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद ही परिवर्तन आते हैं। हमें प्रयासों की मात्रा बढ़ानी होगी। कोई भी परिवर्तन जल्दबाजी से नहीं होता, परिणाम अवश्यंभावी है।
स्वागत वक्तव्य देते हुए ज्ञानोत्सव आयोजन प्रभारी श्री विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि हम सब शिक्षा के क्षेत्र में ताकतवर फसल के निर्माण का कार्य कर रहे हैं। शिक्षा में परिवर्तन लाने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन ज्ञानोत्सव के माध्यम से सार्थक सिद्ध होगा।अध्यक्षीय उद्बोधन में केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्रसिंह तोमर ने कहा कि शिक्षा प्रगति का उपकर्म है। शिक्षा रोजगार उन्मुखी , संस्कार उन्मुखी, राष्ट्र उन्मुखी होनी चाहिए। न्यास के गठन से पहले शिक्षा बचाओ आंदोलन कार्य कर रहा था। शिक्षा का दीप जलाने वाला यह आंदोलन शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन कर पाया है। अब उसका क्रियान्वयन होगा। यह नीति हमें विश्व गुरु के पद पर प्रतिष्ठित करेगी।
ज्ञानोत्सव शुभारंभ सत्र में संयोजक श्री ओम शर्मा ने आभार व्यक्त किया। संचालन डॉ. पंकज मित्तल द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र के पूर्व प्रदर्शनी का शुभारम्भ माननीय केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर; राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सह-सरकार्यवाह, श्री अरुण कुमार जी; 'शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास' के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी जी और एआईओयू, महासचिव श्रीमती पंकज मित्तल द्वारा किया गया। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर 80 से भी अधिक विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों ने भाग लिया। इस प्रदर्शनी में शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत का दर्शन कराया गया। छात्रों के द्वारा अपनी सुंदर प्रतिभाओं, घरेलू उद्योग और कृषि के माध्यम से कौशल संवर्धन का आयोजन देखने को मिला।
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