Wednesday, 26 July 2023

पांचवा नामवर सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन


नई दिल्ली 26 जुलाई,  इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में पांचवा नामवर सिंह स्मृति व्याख्यान "जनतांत्रिक भाव और साहित्य" विषय पर आयोजित किया गया। इस मौके पर मुख्य वक्ता प्रो बद्रीनारायण ने कहा कि इंट्यूशनलाइजेसन ऑफ मेमोरीज का नामवर जी कि स्मृति का यह एक सराहनीय प्रयास है, नामवर जी 72 के बाद वह लोक की तरफ आकर्षित होते हैं फिर 90 के बाद वह जनतंत्र का चिंतन करते हैं, संवाद स्वभाव जनतांत्रिक स्वभाव का मूल होता है, यह नामवर जी की खासियत है, आज सब खेमों में बंट गए हैं साहित्य में यह काफी हावी है, आज हिंदी में आलोचना खत्म हो गई है। समाज में आज इंपैथी खत्म हो गई है, साहित्य का पब्लिक स्फीयर फ्रैगमेंटेड हो गया है, स्टीरियोटाइप बाड़े बना लिए है, साहित्य में डेमोक्रेसी का मरण हो गया है, पॉलिटिक्स में डेमोक्रॉसी बची रहेगी जन दबाव के चलते मगर

साहित्य में यह खत्म हो रहा है, जिस समुदाय में उसकी आलोचनात्मकत्ता खत्म हो जाता है वह समाप्त हो जाता है, नामवर जी हर विचारधारा के लोगो से संवाद करते थे, वह किसी खर को भी छू लेते थे तो वह सोना हो जाता था, हमारा वितान छोटा हो गया है, जो पॉलिटिक्स से साहित्य में आ गया है,मल्टीपल ट्रेडिशन ही हमारी जनतांत्रिक चेतना का मूल है, लोक की चेतना भारतीय समाज की मूल चेतना है, जनतांत्रिक मूल्यों को लोग हमारे यहां जीते है.नामवर जी  मौखिक संस्कृती के बड़े हिमायती थे साहित्यिक स्फीयर को लोक स्फीयर से संवाद की परंपरा को सीखना चाहिए, साहित्य में जनतांत्रिक चित्ती को भारतीय साहित्य में पुनर्जीवित करना होगा, लोक से सीखना होगा, राष्ट्रीय भारतीय चेतना ही नामवर जी का रूट था। जनतांत्रिक चित्ती को साहित्य में पुनर्जीवित करें, अपने बाड़ों से बाहर निकले।


इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय काला केंद्र के अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने कहा कि इस अवसर को पुन स्मरण करने का अवसर मानता हूं, बद्री नारायण जी ने जो कुछ भी बताया वह सब गुण उनके पास है, उनके पास जाते थे तो वह बड़े साहित्यकार की तरह नहीं गार्जियन की तरह मिलते थे।  नामवर जी का स्नेह कोई भी पा सकता था. बद्री नारायण जी का चिंता सही है हमारी भाषा बदल गई है, वह प्रतिवाद की भाषा में बदल गई है। एक सिलसिला है जो विनोबा जी शुरू हुआ था वही परंपरा साहित्य में नामवर जी ने चलाई थी,उन लोगो में थे जिनमे समाज की छवि थी।

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