नई दिल्ली, 26 जुलाई। विश्व हिंदी परिषद द्वारा द्वि दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन 25 एवं 26 जुलाई 2024 को एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर नई दिल्ली में किया गया जिसका विषय "युग पुरुष श्री अरविंद : हिंदी भाषा और विकसित भारत " था। कार्यक्रम की शुरुआत प्रेम रावत की शांति वीडियो संदेश के साथ किया गया जिसमें उनकी विभिन्न उपलब्धियों, कार्यक्रमों आदि का उल्लेख था। वीडियो के माध्यम से उन्होंने ने विभिन्न राय एवं विचारों को प्रस्तुत किया। इसके बाद राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया।
आरम्भ सत्र की शुरुआत हुई। मंच संचालक डॉ शंकुतला सारुपरिया जी ने मुख्य अतिथियों, अतिथियों का परिचय दिया। फिर प्रो संध्या वात्स्यान (सम्मेलन संयोजिका) ने सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन करते हुए अपना स्वागत संबोधन शुरू किया। फिर उन्होंने विश्व हिंदी परिषद की भूमिका की स्पष्ट की। उन्होंने विकसित भारत की बात करते हुए श्री अरविंद घोष जी के संघर्ष और जीवनयात्रा का जिक्र करते हुए अपनी बात को खत्म किया।
इस सत्र में बीज्वक्तव्य एवं अध्यक्षता प्रो सूर्यप्रसाद दीक्षित (पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग लखनऊ विश्वविद्यायल) और श्री चिंतामणि महाराज (सांसद लोकसभा ) द्वारा किया गया। और मुख्य वक्तव्य डॉ अर्पणा राय ( श्री अरविंद आश्रम नई दिल्ली ) शामिल थी। सभी अतिथियों को समृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया. इसके बाद सूर्य प्रकाश दीक्षित जी का बीज़वक्त शुरू हुआ। सूर्य प्रकाश दीक्षित जी ने अरविंद घोष के जीवन यात्रा व संघर्षों को श्रोताओं से परिचित कराया। उन्होंने अरविंद घोष के महत्वपूर्ण ग्रन्थ, आश्रम व साहित्य आदि के बारे में बताया। उन्होंने महर्षि जी के शरीर से परे चेतना, विकासवादी दृष्टिकोण के बारे में बताया।
इसके बाद माननीय चिंतामणि जी ने अपने गुरु के प्रति श्रद्धा को संजोए रखने के लिए कहा। उन्होंने विभिन्न कहानियों के जरिए बताया कि कैसे आज का युवा संवेदनशील हो रहा है। तथा किस प्रकार राजनीति को समझने के लिए सदगुरु का आश्रय लेना चाहिए।
इसके बाद अरविंद आश्रम के विदुषीका डॉ अर्पणा राय ने सभी लोगो के अभिनन्दन करते हुए अपना वक्तव्य शुरू किया। उन्होंने श्री अरविंद घोष जी के महान साधना योग के बारे में बताया जो तीन चरणों में है: पूर्ण योग, समग्र योग व रूपांतरण योग। फिर उन्होंने बताया कि श्री अरविंद जी के बारे में गहराई से पीढ़ियों और उनकी बातों को अपने जीवन में उतारने के लिए कहा
इसके बाद श्री देवी प्रसाद मिश्र (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विश्व हिंदी परिषद) ने बताया कि भारत को जानना है तो महर्षि अरविंद को तथा उनके विचारों को जानना जरूरी है,उसके बाद उन्होंने कहा " अंग्रेज गए, अंग्रेजी जाए, भारतीय भाषाओं का शासन आए। उन्होंने सभी को आश्वाशन दिया कि हिंदी और अन्य भाषाओं के प्रचार प्रसार के लिए विश्व हिंदी परिषद हमेशा उनके साथ है उद्घाटन सत्र की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इसके बाद विपिन कुमार ( महासचिव विश्व हिंदी परिषद) द्वारा स्वागत भाषण दिया। डॉ विपिन कुमार द्वारा मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया और सभी का स्वागत करते हुए अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। इस सत्र में अतिथि के रूप में आर के सिंह (पूर्व सांसद, पत्रकार एवं उद्योगपति ), श्री रामचंद्र जांगड़ा( सांसद राज्यसभा ) के सी त्यागी (राष्ट्रीय प्रधान महान सचिव जदयू), पद्मश्री भूषण आचार्य यारलगड्डा लक्ष्मीप्रसाद, (विश्व हिंदी परिषद) शामिल थे। इसके बाद आर के सिन्हा ने लोगो को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि यदि व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो हिंदी भाषा की शब्दावली को जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए, इसके काम चलाऊ रूप का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उसके बाद के सी त्यागी जी ने बताया कि हिंदी के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार से यूएनओ में हिंदी को सम्मान मिलता है। इन सबका श्रेय सुषमा स्वराज जी को जाता है। इसके बाद पी सी टंडन जी, अमन चोपड़ा(न्यूज 18 एंकर), श्रीमान जयप्रकाश द्विवेदी, श्री रजनीश त्रिपाठी (डीडी न्यूज दूरदर्शन), श्रीमान अश्विनी मिश्रा (डीडी न्यूज) को सम्मानित किया गया। इसके बाद सत्यपाल सिंह बघैल (माननीय पंचायती एवं मत्स्यपालन और डेयरी राज्यमंत्री)। ने बताया कि नवजात शिशु को भी अंग्रेजी में ही सिखाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि तराइन के युद्घ में पृथ्वीराज के हारने के बाद हिंदी ज्यादा प्रभावित हुई। उसके बाद उर्दू, फारसी, अरबी का भारत में जन्म हुआ।
इसके बाद प्रेम रावत जी की स्वयं की आवाज, अरुण सज्जन जी की "दशरथ मांझी" (काव्य कथा) , डॉ नंदकिशोर साहब जी की समावेशी विकास में शिक्षा और समाज पुस्तक का विमोचन हुआ।
इसके बाद संजय सिन्हा जी ने अपने विचारों को श्रोताओं के सामने रखा। उसके बाद रामचंद्र जांगड़ा ( सांसद राज्यसभा ) ने श्रोताओं के सामने अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने कहा कि हमारी भाषा, संस्कृति, आर्थिक तंत्र आदि पर चोट की जा रही है। हमारी भाषा जैसे क्रम और किसी भाषा में नहीं है जो हिंदी में है।
सत्र के अंत में प्रो संध्या वात्स्यान )सम्मेलन संयोजिका) ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
प्रथम सत्र का संचालन प्रो श्री निवास त्यागी (गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने किया उन्होंने संचालन द्वारा हमारे मुख्य वक्ता प्रो रमा ( प्राचार्य हंसराज कॉलेज , दिल्ली विश्वविद्यालय), वक्ता प्रो संपदानंद मिश्र (निदेशक मानव विज्ञान केंद्र ऋषिहूड विश्वविद्यालय, सोनीपत) को मंच पर आमंत्रित किया और उनका संक्षिप्त परिचय दिया। इस सत्र के अध्यक्षता प्रो मुरली मनोहर पाठक कुलपति, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय, के द्वारा किया गया। इसके बाद प्रो रमा जी ने अपना वक्तव्य रखते हुए कहा कि मस्तिष्क का ज्ञान महत्वपूर्ण है। भारतीय संस्कृति उच्चतम शिखा है जिस पर एकाएक नहीं चला जा सकता है। उन्होंने इसके साथ अरविंद के द्वारा बताए गए रास्ते पर चलने को कहा।
इसके बाद वक्ता प्रो डॉ संपदानंद मिश्र ने अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने कहा कि श्री अरविंद को भारत के प्रति दृष्टिकोण और पांच स्वप्न का जिक्र किया। उन्होंने वेद का उच्चारण में नियम और सावधानियों के बारे में बताया। उन्होंने ऋषि के तीन गुणों से अवगत कराया जिसमें श्रुति, दृष्टि, विवेक संपन्न शामिल हैं । प्रो मुरली मनोहर पाठक जी ने वक्ताओं का धन्यवाद करते हुए अपने वक्तव्य को प्रस्तुत किया। उन्होंने संस्कृत के सुंदर श्लोक के साथ अपना वक्तव्य शुरू किया। उन्होंने श्री अरविंद के स्वप्न का जिक्र किया फिर " एक भारत , श्रेष्ठ भारत " का उल्लेख किया। उन्होंने वेदों के प्रकार के बारे में बताया। भारतीय ज्ञान परम्पराओं के दो धाराओं लिखित एवं व्यावहारिक को बताया।
इसके बाद प्रो ब्रह्मानंद पांडे (पटना विश्विविद्यालय) और कविता प्रसाद द्वारा विपिन पांडे जी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। अंत में श्री श्रवण कुमार मुख्य समन्वयक, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा अतिथियों का आभार प्रकट किया। फिर सत्र की समाप्ति हुई। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सत्र था।
इसके बाद द्वितीय सत्र का आरंभ हुआ। जिसका विषय श्री अरविंद और मानवमूल्य था। इस सत्र का संचालन प्रो प्रदीप कुमार , सह संयोजक द्वारा किया गया और अद्यक्षिता प्रो पूरण चंद टंडन, (वरिष्ठ प्रो हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा किया गया। इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो विनीता , (हिंदी विभाग स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय), और विशिष्ट वक्ता प्रो नरेंद्र मिश्र (प्रो एवं संयोजक हिंदी संकाय, हिंदी विभाग, इंडिया गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय) जी शामिल थे। संचालक प्रो प्रदीप कुमार द्वारा अतिथियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया व स्वागत किया गया। इसके बाद प्रो नरेंद्र मिश्र जी ने सभी के स्वागत करते हुए अपना वक्तव्य दिया।
उन्होंने दधिचि, राजादिलीप और भी लोगो के त्याग से अवगत करवाया और नैतिक मुल्यों का जिक्र किया और उन्होंने श्री अरविंद को मानवीय प्रेरणा बताया। उन्होंने अंत मे श्री अरविंद के दिव्य चेतना और निरंतर सेवा से अवगत कराते हुए अपना वक्तव्य समाप्त किया। इसके बाद प्रो. विनीता ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए अपना वक्तव्य शुरू किया और विशेष रूप से विश्व हिंदी परिषद का आभार व्यक्त किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस जैसे महान विभूतियों के बारे मे बताया और श्री अरविंद के जीवन और लेखनी के बारे मे बताया।
उन्होंने इंद्रीयजन्य के बारे में बताया और चेतन के क्रमिक मूल्य और सावित्री नामक चेतना के महत्व को स्पष्ट करते हुए अपने वक्तव्य को समाप्त किया। इसके बाद डॉ नम्रता कुमारी जी की थारू जनजाति की धार्मिक मान्यताएं पुस्तक का विमोचन हुआ। इसके बाद सत्र की अध्यक्षता प्रो पूरनचंद टंडन जी ने बताया की श्री अरविंद से उनका पुराना रिश्ता है क्योंकि श्री अरबिंदो कॉलेज से ही अध्ययन शुरू किया था। सभी शोधार्थियों को शुभकामनाएं दी और श्री अरविंद के पांच स्वप्न का जिक्र किया। उन्होंने भारतेंदु के युग और महावीर प्रसार की पत्रिका सरस्वती का भी जिक्र किया । सैद्धांतिक चिंतन के साथ ही व्यवहारिक अनुप्रयोग को बताते हुए अपनी बात को समाप्त किया।
अन्त में प्रो तृप्ता शर्मा (हिंदी विभाग अदिति महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा धन्यवाद ज्ञापन करते हुए उन्होंने आयोजक मंडल का भी आभार व्यक्त किया और उसी के साथ इस सत्र को समाप्त किया गया। यह सत्र बहुत ही बौद्धिक सत्र रहा । इस सत्र से सभी श्रोताओं ने बहुत कुछ नया सिखाया।
द्वितीय सत्र के बाद सांय 6:30 बजे से कवि सम्मेलन एवम सांस्कृतिक कार्यक्रम का आरंभ हुआ। इसका संचालन भी श्री विनय विनम्र जी द्वारा किया गया। इसके बाद कत्थक नृत्यकार श्री राहुल कुमार रजत ने सभी दर्शकों को और अपने गुरु को नमन करते हुए कत्थक के बारे में बताया और इस कार्यक्रम को शुरुआत कत्थक नृत्य प्रस्तुति के साथ किया गया। उसके बाद राहुल कुमार रजत को स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया। इस कवि सम्मेलन के अध्यक्षता श्री ओमपाल सिंह निडर, पूर्व सांसद एवम लोकप्रिय कवि द्वारा की गई। इसके बाद संचालक द्वारा श्री शांतमानु(अपर सचिव, उपभोक्ता मामले खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय भारत सरकार) , श्री सत्येन्द्र सत्यार्थी , कविराज श्री आर पी शर्मा, डॉ. भावना शुक्ला, श्री दुर्गेश अवस्थी अन्य सभी कवियों को मंच पर आमंत्रित किया गया और अंगवस्त्र के साथ स्मृति चिन्ह भेंट देकर सम्मानित किया गया।इसके बाद डॉ. सारंगा सिंह द्वारा सरस्वती वन्दना(काव्य) प्रस्तुत किया गया।
इसके बाद डॉ. दर्शनी प्रिय जी ने स्त्री शक्ति की कविता पेश की फिर श्री दुर्गेश अवस्थी, डॉ. सतेंद्र सारथी और आदि सभी कवियों ने भी अपनी कविताओं को प्रस्तुत किया। इसके बाद रात्रिभोज के साथ कार्यक्रम के प्रथम दिवस का समापन हुआ।
विश्व हिंदी परिषद द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र का शुभारंभ प्रेम रावत जी के शांति वीडियो संदेश के साथ हुआ। सम्मेलन में सम्मानित अतिथि रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी सर्वलोकानंद जी महाराज, विश्व हिंदी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. विपिन कुमार, एनडीएमसी के चीफ इंजीनियर प्रो. सुदर्शन कुमार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रवि कुमार अय्यर, दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन प्रो. बलराम पाणी, त्रिनिदाद और टोबैको गणराज्य के राजदूत डॉ. रोजर गोपाल और कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्व हिंदी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवी प्रसाद मिश्र, संयोजिका प्रो. संध्या वास्त्यानन एवं सह संयोजक डॉ. वेद प्रकाश और डॉ. प्रदीप कुमार उपस्थित रहें। सभी माननीय अतिथियों का स्वागत डॉ. विपिन कुमार द्वारा अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट करके किया गया। डॉ. विपिन कुमार ने कहा आरएसएस के प्रचारक रवि कुमार हिंदी के प्रचार–प्रसार में निरंतर सक्रिय रहते हैं। स्वामी सर्वलोकानंद जी का हमेशा मार्गदर्शन मिलता है और डीयू के डीन प्रो. बलराम पाणी का एवं प्रो. ममता, प्रो. शशि का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा की यह कार्यक्रम असाधारण है और यहां उपस्थित लोग भी असाधारण हैं और उल्लेख किया की थाईलैंड के राजदूत ने बताया कि लोग वहां हिंदी सीखना चाहते हैं। अपने आगामी सम्मेलनों के बारे में बताया और विश्व हिंदी परिषद में हिंदी भाषा के प्रचार– प्रसार के लिए जुड़ने को प्रेरित किया और अंत में दिनकर जी की पंक्ति से अपना वक्तव्य समाप्त किया। प्रो. बलराम पाणी ने विश्व में हिन्दी भाषी लोगों के आंकड़ों से अवगत कराया और बताया कि भारत के बाहर भारतीय भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक बोली जाती है। उन्होंने बताया कि "कोई भी भाषा देश को जोड़ने के लिए होती है न की तोड़ने के लिए" और हिंदी को विश्व पटल पर पहुंचाने के लिए प्रेरित किया। स्वामी सर्वलोकानंद जी महाराज एक श्लोक के साथ अपना वक्तव्य शुरू किए उन्होंने बताया कि हमारे देश में सर्वत्र हिंदी भाषा का प्रचार– प्रसार होना चाहिए और संस्थानों में हिंदी भाषा को वैकल्पिक के बजाय अनिवार्य करना चाहिए। फिर उन्होंने अपने जीवन यात्रा में बंगला भाषी होने के बावजूद हिंदी भाषा को कैसे अपनाया, उसके बारे में बताया तथा कहा कि भाषा के द्वारा ही 'अनेकता में एकता' ला सकते हैं। फिर स्वामी विवेकानन्द के संकल्प को दोहराया "भारतवर्ष एक दिन विश्वगुरुरूर बनेगा" और स्वामी जी का शिकागो में भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर दिए गए भाषण से भी अवगत कराया। उन्होंने बताया की हम अपने शिक्षण संस्थानों के माध्यम से ही हिंदी भाषा को विश्व पटल पर प्रदर्शित कर सकते हैं। अन्त में संस्कृत के एक श्लोक "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया" से अपने वक्तव्य को समाप्त किया। राजदूत रोजर गोपाल ने बताया कि वेस्टइंडीज में हिंदू वर्षों से पूजा हवन करते आ रहे हैं और भारतीय भाषा सर्वाधिक शक्तिशाली है। हिंदी के प्रभाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि टोबैगो के सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थी हिंदी में पाठ पढ़ाते हैं और हिंदी भजन भी गाते हैं। 14 लाख वाली जनसंख्या के देश में 315 से अधिक मंदिर हैं। उन्होंने कहा कि "हिंदी" भाषा नहीं विचार है। भारतीय भाषा एवं संस्कृति के संरक्षण की आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि भविष्य की पीढ़ी 'थैंक्यू' ना कह कर 'धन्यवाद' कहे इसलिए हिंदी का संरक्षण आवश्यक है।
उसके बाद सुदर्शन कुमार ने कारगिल विजय दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए अपना वक्तव्य शुरू किया, उन्होंने कहा कि व्यास जी ने रचना में लिखा है कि मुझे यश, सुख, मोक्ष और विद्या नहीं चाहिए परंतु मुझे भारत में जन्म चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में किसी को अंग्रेजी में स्वप्न नहीं आते हैं, हम सबको मातृभाषा में स्वप्न आते हैं इसलिए हिंदी का प्रचार प्रसार करना आवश्यक है। धर्मो रक्षति रक्षिता का संदेश देते हुए उन्हें अपने वक्तव्य को समाप्त किया।
अभिनंदन एवं सम्मान सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में कंभमपाठी हरी बाबू (महामहिम राज्यपाल मिजोरम) श्री रवि कुमार अय्यर (वरिष्ठ प्रचारक, आरएसएस ), श्री फग्गन सिंह कुलस्ते (पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ सांसद), पद्मश्री पद्मभूषण आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद (राष्ट्रीय अध्यक्ष, विश्व हिंदी परिषद), कमलेश सिंह जागड़े (सांसद, छत्तीसगढ़) दिनेश प्रसाद सकलानी (एनसीआरटी और प्रशिक्षण परिषद नई दिल्ली), शांतमनु कुमार अपर सचिव उपभोक्ता मामले खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय भारत सरकार) शामिल थे। इसके बाद विपिन कुमार महासचिव ने सभी मुख्य अतिथियों का संक्षिप्त परिचय दिया एवं सभी आयोजकों प्रतिभागियों का धन्यवाद किया तथा अपने विचारों को व्यक्त किया। इसके बाद माननीय दिनेश सकलानी जी ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा की मातृभाषा सबसे बड़ी बात है। प्रकृति के साथ है संवाद व संयोजन करके भाषा को समझा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि 121 भाषा ही है जो लोगों को पता ही नहीं है तथा उनको आगे लाने के लिए वह कई प्रवेशिका का विमोचन कर रहे हैं। यह प्रवेशिका लोगों को एक बार में कई भाषाएं सिखाती है। इसके बाद कमलेश जागड़ा जी ने भाषा व बोली के बारे में बात की और अपने बारे में बताया तथा सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए अपनी बात को समाप्त किया। अगली कड़ी में फग्गन सिंह जी ने सभी लोगों का अभिनंदन करते हुए अपने वक्तव्य को शुरू किया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में प्रारंभ किया गया है तथा इसके साथ अपना वक्तव्य समाप्त किया।
यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद ने कहा कि व्यक्ति विशेष की मातृभाषा हिंदी हो या ना हो परंतु उसकी गौरव भाषा हमेशा हिंदी रही है। हिंदी प्रेमी भी अलग-अलग मातृभाषा से आते हुए भी हिंदी को प्रचारित एवं प्रसारित किया। इन्हीं सब के बाद अपने वक्तव्य को समाप्त किया। उसके बाद रवि कुमार अय्यर ने अपने वक्तव्य में बताया कि हिंदी भाषा दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी एक ऐसी विशेष भाषा है जिसका शब्द एवं अर्थ एक ही होता है जो की भ्रामक स्थिति नहीं उत्पन्न करता है। भारत में प्राचीन काल से ही हिंदी का प्रचार प्रसार होता आया है। उन्होंने बताया कि आईएमएफ ने कहा है कि आज अगर दुनिया चल रही है तो इसमें भारत का महत्वपूर्ण योगदान है।उन्होंने बताया की भारत ने दुनिया के 98 से ज्यादा देशों को कोरोना काल में स्वनिर्मित वैक्सीन मुफ्त में उपलब्ध कराया और ब्रिक्स की जीडीपी ने इस समय जी 7को भी पछाड़ा है।उन्होंने कहा कि दुनिया इस समय भारत को एक नई दृष्टि से देख रही है । राज्यपाल हरीबाबू जी ने हिंदी प्रेमियों, चिंतकों, कवियों, दर्शकों और विचारकों का हिंदी के साथ निरंतर किए जाने वाले प्रयासों का उल्लेख किया। साथ ही कहा कि अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो दीप की ज्वाला के साथ ही खत्म हो जाता है । हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य का उद्देश्य है लोगों के बीच मातृवाद जगाना और महर्षि अरविंद के व्यक्तित्व से निरंतर प्रेरणा लेना तथा अपने जीवन को सार्थक बनाना। अंत में 'जय हिन्द' के नारे के साथ अपना वक्तव्य समाप्त किया।इसके बाद कार्यक्रम में 'स्मारिका', 'श्री अरविंद', 'राष्ट्र नायक डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर', 'वीणा की गूंज' और 'द्रौपदी' के साथ कई अन्य पुस्तकों का विमोचन किया गया। विमोचन के बाद कुछ मुख्य अतिथियों का सम्मान स्मृति चिन्ह देकर किया गया। इसी कड़ी में देश विदेश के महाविद्यालयों से आए प्रोफेसरों ने अरविंद से जुड़े अलग अलग विषयों पर पेपर प्रस्तुतिकरण किया । कार्यक्रम के समापन सत्र में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
(सौम्या, अनामिका, सक्षम पांडे व सौभाग्य द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट, आप सभी डॉ भीमराव अंबेडकर व अदिति कालेज, हिन्दी पत्रकारिता के छात्र हैं)
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