करुणा नयन चतुर्वेदी और अर्पित ओम यादव
आजाद भारत में राजनीतिक विमर्श गांधी के बिना अधूरा है। कोई भी विमर्श विचारों की ही उपज होती है। महात्मा गांधी के शब्दों में कहें तो "किसी भी व्यक्ति के विचार ही सब कुछ हैं"।व्यक्ति के मस्तिष्क में हमेशा विचारों का संचार होता रहता है। यह मनुष्यों के लिए वरदान है। क्योंकि इसका सकारात्मक तरीके से प्रयोग व्यक्ति को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकता है। विचारों ने ही न्यूटन को सेब गिरने पर गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए प्रेरित किया। शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद का संबोधन विचारों की सशक्त श्रृंखला की ही देन थी।
आजादी में गांधी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। अंग्रेजों के गुलामी और शोषण के विरुद्ध 78 वर्षीय बूढ़े ने जब अहिंसा और शांति का विचार लेकर आजादी का बिगुल बजाया तो तमाम लोगों ने उसका मखौल उड़ाया। जिसकी क्रांति से डरकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने एनकाउंटर का फरमान सुनाया, आज उसी के देश के युवा बिना सोचे विचारे अपने राष्ट्र निर्माताओं पर अभद्र टिप्पणी करते हैं। गांधी, नेहरु , भगत और सावरकर पर आए दिन बहस होते हैं। अज्ञानता से ग्रसित समाज इन महान विभूतियों के योगदान पर बात नहीं करता है या कहें कि इसके पीछे राजनीतिक महत्वाकांक्षियों ने एक धुरी का निर्माण कर दिया है।
राजनीतिक बहसों को अगर देखा जाए तो यह प्रश्न हमेशा पूछा जाता है कि आखिर गांधी ने देश के लिए क्या किया है ? गांधी का रोज चारित्रिक हरण होता है। गांधी ब्रह्मचर्य के बहाने लड़कियों संग रात बिताते थे। अंग्रेजी महिलाओं के साथ अय्याशी करते थे इत्यादि। जिस व्यक्ति ने पूरा जीवन सादगी के साथ केवल धोती में बिता दिया। जिसके हिटलर , मार्टिन लूथर और आइंस्टीन आदि दीवाने हों। जिसके पदचिन्हों पर चलकर नेल्सन मंडेला ने अफ्रीका में समाज सुधार किया । आज उसी के देश में कुछ अज्ञानी सवालिया निशान खड़े कर देते हैं। इन मूर्खों पर अधकल गगरी छलकता जाए कहावत फिट बैठता है। सोशल मीडिया के जमाने में कुछ लोग परम ज्ञानी बनते है। इंस्टाग्राम , यूट्यूब के टूटपूँजिये पॉडकास्ट , एआई आदि पर से इनको ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान का माध्यम किताबें होनी चाहिए। लोगों के संस्मरण होने चाहिए। अधूरा ज्ञान लेकर किसी भी महान व्यक्तित्व पर चर्चा नहीं हो सकती है। इसलिए बिना ज्ञानार्जन किए किसी भी महान विभूतियों पर प्रश्न उठाना हमारी मूर्खता को ही परिलक्षित करता है।
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