Wednesday, 23 April 2025

जेएनयू प्रेसिडेंशियल डिबेट में वामपंथियों पर जमकर बरसी एबीवीपी की शिखा स्वराज


नई दिल्ली, 24 अप्रैल। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यक्ष पद के लिए प्रेसिडेंशियल डिबेट की शुरुवात, भारत माता की जय और वंदे मातरम् के जयघोष के साथ हुई। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ की प्रेसिडेंशियल डिबेट की प्रतीक्षा छात्र बेसब्री से कर रहे थे। माना जाता है कि जेएनयू में अध्यक्ष प्रत्याशी की जीत, डिबेट में उसके भाषण प्रदर्शन पर काफी निर्भर करती है और बहुत से छात्र डिबेट सुनने के बाद किसे वोट देना है, यह तय करते हैं। इसी लिए अध्यक्ष पद के सभी प्रत्याशी इस आयोजन के लिए पुरजोर मेहनत कर भाषण तैयार करते हैं।

एबीवीपी के केंद्रीय पैनल से अध्यक्ष पद प्रत्याशी एवं अभाविप जेएनयू की इकाई मंत्री शिखा स्वराज ने अपने भाषण में बिहार की गौरवशाली परंपरा को स्मरण करते हुए कहा कि यह वही धरती है जिसने भारत को सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य और उनकी नीति के निर्माता आचार्य चाणक्य जैसे महापुरुष दिए। इसी मिट्टी से महावीर की तपस्या, कर्पूरी ठाकुर का सामाजिक न्याय, रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वी कविता और दशरथ मांझी जैसा अटूट संकल्प उपजा, मैं उसी धरती से आती हूँ। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पहलगांव में हुए आतंकी हमले पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की। इस संदर्भ में उन्होंने तीखा प्रश्न उठाया कि जब कुछ लोग आतंकवाद का कोई धर्म नहीं मानते, तो वे यह क्यों नहीं बताते कि हमलावरों का धर्म और उनकी पहचान क्या थी। उन्होंने कोलकाता, संदेशखाली और मुर्शिदाबाद की महिलाओं और वहां के हिन्दू समाज की पीड़ा की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि वे इस मंच के माध्यम से उन सभी की आवाज़ बनकर आई हैं।

उन्होने जेएनयू के वामपंथी संगठनों की विचारधारा और कार्यशैली कि कड़ी निंदा की। कहा कि इस कैंपस में अब दो विचारधाराएं आमने-सामने खड़ी हैं — एक तरफ वामपंथी, जो आपस में ही उलझे हैं, और दूसरी तरफ एबीवीपी, जो राष्ट्रवाद, छात्र सेवा और समर्पण की प्रतीक है। उन्होंने भरोसा जताया कि वह दिन दूर नहीं जब लाल झंडों द्वारा फैलाया गया अंधकार छटेगा और एबीवीपी की प्रेरणा से यह परिसर फिर से राष्ट्रध्वज के गौरव से पूर्णतः आलोकित होगा। उन्होंने कोविड महामारी के दौरान एबीवीपी कार्यकर्ताओं की निस्वार्थ सेवा को याद करते हुए कहा कि जब सब अपनी जान की परवाह कर रहे थे, तब एबीवीपी के कार्यकर्ता छात्रों की मदद में लगे हुए थे। आज यदि इस विश्वविद्यालय में वाई-फाई, ई-रिक्शा, बराक छात्रावास और छात्र सुविधाएं उपलब्ध हैं तो वह एबीवीपी के संघर्षों की ही देन है। वहीं वामपंथी संगठनों को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें न छात्रों की समस्याओं से सरोकार है, न सुविधाओं से—उनका सारा ध्यान केवल लेनिन, स्टालिन और मार्क्स की विचारधारा को बनाए रखने में है, भले ही छात्र हॉस्टलों में पानी के लिए तरसें या वॉशरूम की छतें गिरती रहें। यह टुकड़े टुकड़े मानसिकता वाले संगठन आज खुद आपस में टुकड़ों में बंट चले हैं, लेकिन इनका अगर बस चले तो यह पूरे भारत को टुकड़ों में बांट दें।

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