Wednesday, 16 April 2025

चीन में पाँच हजार लोगों को हिन्दी सीखने से मिला रोजगार


नई दिल्ली, 17 अप्रैल। डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज के हिंदी विभाग ने हिंदी भाषा का वैश्विक परिदृश्य : आर्थिक, राजनीतिक एवं शैक्षणिक संदर्भ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। मुख्य अतिथि के रूप में अमर उजाला के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री और विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो सुधा सिंह उपस्थित रहीं। 

कॉलेज के प्राचार्य प्रो. सदानंद प्रसाद ने अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि सभ्यता और संस्कृति ही भाषा की वाहक है। भाषा समाज को आशा, प्रेम और नई दिशा देता है। 

 उद्घाटन सत्र में विषय प्रवेश कराते हुए हिंदी पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रो बिजेंद्र कुमार ने कहा कि हिंदी को केवल बाजार, रोजगार और  शिक्षा से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है बल्कि यह देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के संपर्क की भाषा है। हिन्दी संपूर्ण भारत को आपस में जोडने का काम करती है। उन्होंने कहा कि भाषा की राजनीति और राजनीति की भाषा सदैव विरोधाभास रखती है किन्तु हिंदी का विकास राजनीति से नहीं हुआ है। हिंदी के विकास में कॉन्टेंट क्रिएटरों का बहुत बड़ा योगदान है। हिन्दी ने अपने को तकनीकी के अनुकूल ढ़ाला है और अब तो तकनीकी के विकास में भी हिन्दी भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

   उद्घाटन वक्तव्य में इग्नू के पूर्व निदेशक और भाषाविद प्रो. वी आर जगन्नाथन ने कहा कि विदेशों में प्रवासी लोग ही हिंदी को लुप्त होने से बचा रहे हैं। अमेरिका में भी हिंदी के संगठन मिल जाएंगे जो हिंदी के विकास के लिए काम करते हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का दूतावास होना चाहिए जिससे हिंदी की वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता बढ़ेगी। हिन्दी के विकास में औपचारिक औऱ अनौपचारिक संस्थाओं का उपयोग किया जाना चाहिए। 

   विनोद अग्निहोत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भाषा पूरे समाज की होती है किंतु हिंदी के प्रति हीनता का बोध हिंदी भाषाई लोगों में ही ज्यादा है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक साम्राज्यवाद सबसे पहले भाषा पर ही लागू होता है। भाषा ही लोगों की अस्मिता को जोड़ती है।  भाषाई विवाद भाषा की ताकत को क्षीण करता है जबकि आर्थिक सत्ता, बाजार और राजनीति सत्ता भाषा को बढ़ावा देती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भाषा तभी संवृद्ध होगी जब भाषा बाजारू न होकर बाजार की होगी क्योंकि बाजार की ताकत भाषा को संबल और संवृद्धि प्रदान करती है।

 सत्र को संबोधित करते हुए  दिल्ली विश्वविद्यालय की हिन्दी विभाग की अध्यक्ष प्रो. सुधा सिंह ने कहा कि भारत में सबसे ज्यादा अखबार और खबरिया चैनल हिन्दी भाषा के हैं। इसके बावजूद भी हिन्दी की संवृद्धि सकते में हैं क्योंकि हमारी भाषा बौद्धिक चिंतन का आधार नहीं बन पा रही है। उन्होंने कहा कि विचार, दृष्टि और संवेदना ही भाषा की शुद्धता का निर्धारण करता है। रोजगार के लिए विदेशों में होने वाला प्रवास भाषा के प्रसार में योगदान नहीं दे पाता है क्योंकि उन्हें भाषा के संवर्धन से कोई खास मतलब नहीं होता बल्कि वे मनोरंजन और स्वजनों से संवाद के लिए अपनी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। रोजगार के लिए भाषा पर अगर आप बात कर रहे हैं तो आप केवल संप्रेषण कर रहे हैं न कि भाषा का विकास कर रहे हैं।

दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए चीन के क्वांतोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के सह-प्राध्यापक डॉ विवेक मणि त्रिपाठी ने कहा कि चीनी लोगों को भारत की संस्कृति, सभ्यता और भाषा से गहरा जुड़ाव रहा है। इस कारण चीन में पाली, संस्कृत और हिन्दी भाषा के अध्ययन और शोध पर विशेष ध्यान दिया जाता है। चीन में 18 विश्वविद्यालयों में आज हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। चीनी में हिन्दी भाषा की पढ़ाई करने वाले तकरीबन पाँच हजार लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। प्राचीन काल में चीनियों ने भारत से नेत्र विज्ञान, योग और आयुर्विज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया है। चीन के लोगों ने भारतीय नेत्र विज्ञानियों की प्रशंसा में एक हजार से ज्यादा कविताएं लिखी हैं जो भारत से हिन्दी से गहरे जुड़ाव का प्रतीक है। इस सत्र का संचालन प्रो. शशि रानी ने किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीपार्जन से हुआ। पहले दिन की संगोष्ठी के समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए हिन्दी विभाग की प्रभारी प्रो. चित्रा रानी ने कहा कि हिन्दी का वैश्विक पटल शानदार है। कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी लोगों का धन्यवाद दिया। इस कार्यक्रम में देश और विदेश के प्रतिष्ठित विद्वानों को जुड़ने के लिए प्रो. चित्रा रानी ने विशेष आभार जताया। कार्यक्रम में प्रो. ममता वालिया, प्रो. कुसुम नेहरा, डॉ राजवीर वत्स, डॉ विनीत कुमार, डॉ धनंजय कुमार, डॉ आदर्श मिश्र, डॉ मंजू, रजनी, अखिलेश, डॉ सुभाष गौतम और डॉ अनिल कांबले समेत सैंकड़ो छात्र उपस्थित रहे।

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