नई दिल्ली, 20 अप्रैल। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए जेएनयूएसयू चुनावों को संवैधानिक रूप से कराने की मांग की है। अभाविप जेएनयू ने यह भी स्पष्ट किया है कि चुनाव समिति बीते कई वर्षों से अपनी भूमिका को निष्पक्ष निर्वाचन संस्था के रूप में निभाने के बजाय वामपंथी छात्र संगठनों के हितों के संरक्षक के रूप में कार्य कर रही है। इस पक्षपातपूर्ण रवैये ने न केवल लोकतांत्रिक आदर्शों को चोट पहुंचाई है बल्कि समूचे विद्यार्थी समाज के विश्वास को भी गहरी ठेस दी है। पिछले कई वर्षों से जेएनयू चुनाव समिति वामपंथी हितों में धांधली करते अरहा है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं।
वर्ष 2017-जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के दौरान प्रेसिडेंशियल डिबेट जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भी वामपंथी संगठनों के दबाव में चुनाव समिति ने निष्पक्षता का पालन नहीं किया। डिबेट के दौरान एबीवीपी के प्रत्याशियों को बार-बार व्यवधान डालकर बोलने से रोका गया, उनके वक्तव्यों के दौरान सुनियोजित हंगामा कर माहौल बिगाड़ा गया, जबकि वामपंथी संगठनों से जुड़े उम्मीदवारों को निर्बाध और सहानुभूतिपूर्ण मंच प्रदान किया गया।
वर्ष 2018-जेएनयू छात्रसंघ चुनावों में पारदर्शिता की धज्जियां तब उड़ गईं जब एबीवीपी के काउंटिंग एजेंट की गैरमौजूदगी में मतगणना प्रारंभ कर दी गई। मतदान प्रक्रिया के इस उल्लंघन ने न केवल निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए, बल्कि पूरे चुनाव परिणाम की विश्वसनीयता को भी संदिग्ध बना दिया।
वर्ष 2019-इलेक्शन कमेटी उस वर्ष यह स्पष्ट करने में विफल रही कि कुल कितने मतपत्र छापे गए थे और उनमें से कितने का वास्तविक मतदान में उपयोग हुआ। मतपत्रों की संख्या और मतदान में अंतर को लेकर पारदर्शिता की कमी ने चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर गहरे सवाल उठाए।
वर्ष 2024-कोविड-19 के पश्चात आयोजित हुए छात्रसंघ चुनाव में भी वामपंथी प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया। स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज सहित कई अन्य संकायों में चुनाव प्रक्रियाओं के दौरान सुनियोजित अनियमितताएं की गईं। इलेक्शन कमेटी में वामपंथी संगठनों के निकटस्थ सदस्यों की नियुक्ति ने पूरी चुनावी प्रक्रिया को पक्षपातपूर्ण बना दिया। स्क्रूटिनी से लेकर मतगणना तक, हर चरण में नियमों का उल्लंघन कर एकतरफा लाभ पहुँचाने का प्रयास हुआ।
वर्ष 2025-वर्तमान छात्रसंघ चुनाव प्रक्रिया ने इस पक्षपातपूर्ण प्रवृत्ति को और भी स्पष्ट कर दिया। निर्धारित नियमों के अनुसार, नामांकन वापसी की अंतिम तिथि 16 अप्रैल थी। किंतु वामपंथी संगठनों के दबाव में, इलेक्शन कमेटी ने असंवैधानिक तरीके से इसे 17 अप्रैल तक बढ़ा दिया। यही नहीं, 17 अप्रैल को नाम वापसी का समय 4 बजे तक था जिसे मनमाने ढंग से बढ़ाकर 4:30 बजे कर दिया गया और फिर, 18 अप्रैल को बिना किसी पूर्व सूचना के प्रत्याशियों की फाइनल सूची जारी होने के बावजूद, एक अतिरिक्त आधे घंटे का समय और देकर वामपंथी संगठनों को मनमाफिक बदलाव की छूट दी गई। यह सब इसलिए किया गया ताकि वामपंथी व माओवादी संगठन AISA और SFI के बीच आंतरिक मतभेदों को सुलझाया जा सके और वामपंथी गठबंधन को चुनाव में एकजुट रूप से उतारा जा सके।
जब इस मनमानी का विरोध आम छात्रों और विभिन्न संगठनों ने किया तो चुनाव समिति ने पूरे चुनावी कार्यक्रम को होल्ड पर डाल दिया जो दर्शाता है कि इलेक्शन कमेटी की प्राथमिकता निष्पक्षता नहीं, बल्कि वामपंथी संगठनों के हितों की रक्षा करना रहा है।
एबीवीपी की मांग है कि चुनाव प्रक्रिया पूर्व निर्धारित तिथियों एवं नियमों के अनुसार संपन्न हो। इलेक्शन कमेटी के गठन में निष्पक्ष, गैर-राजनीतिक और गैर पूर्वाग्रही सदस्यों को सम्मिलित किया जाए। चुनाव प्रक्रिया के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। जेएनयू में लोकतंत्र को वामपंथी संगठनों की राजनीति का बंधक बनने से बचाया जाए। पूर्व में ही चुनाव समिति द्वारा संवैधानिक रूम से जारी की गई प्रत्याशियों की फाइनल सूची में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए एवं उसी पर आधारित होकर चुनाव प्रक्रिया को सामान्य तुरंत आगे बढ़ाना चाहिए।
एबीवीपी जेएनयू के इकाई अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने कहा कि जेएनयू की चुनाव समिति वर्षों से एक ऐसे संस्था के रूप में कार्य कर रही है, जो वामपंथी संगठनों के लिए राजनीतिक सहुलियतें उपलब्ध कराती है। यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ विश्वासघात है, बल्कि विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पर भी आघात है। एबीवीपी इस अन्यायपूर्ण और षड्यंत्रकारी रवैये का विरोध करते हुए यह सुनिश्चित करेगी कि निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया लागू हो।
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