नई दिल्ली, 20 अगस्त। डॉ. भीम राव अम्बेडकर महाविद्यालय में ऑपरेशन सिंदूर : भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रथम सत्र की अध्यक्षता मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर उर्मी नंदा विश्वास ने की। इस सत्र में सिंदूर और जेंडर विषय पर गांधी विद्यापीठ की सामाजिक कार्य विभाग की प्रो वंदना सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर में महिलाओं की भूमिकाओं पर बात करते हुए देवियों को याद किया व महिला सैनिकों का उदाहरण देकर आने वाले भविष्य में बेटियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मिथिलेश कुमार ने कहा कि सिंदूर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है।उन्होंने कहा कि भारत की राष्ट्रीय अस्मिता पर चोट पहुंचाने का जवाब ऑपरेशन सिंदूर के रूप में दिया। केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो एन नागालिंगम ने कहा कि सिंदूर नाम महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयोग किया गया है।प्रो. दीपाली जैन ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर महिला सशक्तिकरण और महिलाओं की पहचान का प्रतीक तो है ही, त्याग का भी प्रतीक है।प्रो. पूनम मित्तल ने धार्मिक ग्रंथों से सीता जी और हनुमान जी के माध्यम से सिंदूर के महत्व को जोड़ कर उसके आध्यात्मिक पक्ष की चर्चा की।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुप्रिया पाठक ने सिंदूर को महिलाओं के सम्मान व अस्तित्व से जोड़ा। डी यू के समाज कार्य विभाग के प्रो. चित्ररंजन सुबोधी ने भारत की प्राचीन सभ्यता से सिंदूर का संबंध बताते हुए साहित्य और संगीत में सिंदूर के महत्व को दर्शाया। के. के. एम. कॉलेज पाकुड़, झारखंड के प्रो. युगल झा ने कहा कि जब राजनीति गड्डमड होती है तब साहित्य वहां पर रास्ता दिखाता है। इस दूसरे सत्र का मंच संचालन डॉ अंजलि सुमन एवं डॉ किसलय सिंह ने किया।
सिंदूरः नीति और लोक विमर्श के विषय में गणित विभाग की प्रो. सरला भारद्वाज ने श्रीमद् भागवत का प्रसंग शामिल करके श्री कृष्ण के माध्यम से सिंदूर के महत्व को बताया। इग्नू में सतत शिक्षा विभाग की प्रो. शालिनी कुशवाहा ने सिंदूर और आयुर्वेद के मध्य संबंधों को बताया। डॉ. मनीष द्विवेदी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत पर सामाजिक प्रभाव डाला है और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान को पुनर्स्थापित किया है।इग्नू में सामाजिक कार्य विभाग के डॉ. विनोद कुमार ने ऑपरेशन सिंदूर को भारतीय सांस्कृतिक जागरण से जोड़कर उसके महत्व पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के समापन सत्र में प्राचार्य प्रो. सदानंद प्रसाद ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे उम्मीद है कि इस संगोष्ठी से शोध के क्षेत्र को एक नयी दिशा मिलेगी। भारत भक्ति फाउंडेशन के बृजेश कुंतल ने रानी किशोरी देवी के पराक्रम के माध्यम से सिंदूर के महत्व को बताया। सेवानिवृत डी.आई.जी. नरेंद्र दुबे ने अपने जीवन की घटनाओं के माध्यम से सिंदूर के महत्व को बताया। ब्रिगेडियर डॉ. भुवनेश चौधरी ने आने वाले समय के लिए छात्रों को जागरुक किया। दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. धनंजय जोशी ने कहा कि भारतीय प्रतिभा यदि भारत में रहकर अपना योगदान देते हैं तो इससे विकसित भारत का सपना जल्द पूरा हो सकेगा। कार्यक्रम संयोजक प्रो. विष्णु मोहन दास ने संगोष्ठी की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। हिंदी पत्रकारिता विभाग की प्रो. शशि रानी ने मंच संचालन किया धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कुमार सत्यम ने किया।
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