Thursday, 26 February 2015

बाल साहित्यकार प्रकाश मनु से मीना प्रजापति की बातचीत

विश्व पुस्तक मेला में बाल साहित्यकार प्रकाश मनु से भीमराव अंबेदकर कॉलेज की  बीए आनर्स हिंदी पत्रकारिता की छात्रा मीना प्रजापति की हुई बातचीत.
मीना : आज का बाल साहित्य पहले से कितना भिन्न है?
प्रकाश मनु :  आज के बाल साहित्य से बच्चों का जुड़ाव करीबी रिश्ता  है, पहले के लोग जो कहानियां लिखते थे वो राजा-रानी की कहानियां, परियों की कहानियां, लोक कथाएं, भावनात्मकता ज़्यादा होती थी लेकिन आज के लेखन में  यथार्थ को ज़्यादा प्रस्तुत करते हैं और आज की स्थिति कहीं ज़्यादा मुखर करते हैं। उदाहरण के लिए बच्चों का बस्ता बहुत भारी होता जा रहा है, इस पर बहुत सारी कविताएँ हैं "सुनी कहानी रानी की, गलियों की महारानी की।”  यहाँ महारानी से अभिप्राय जमादारनी से है। पहले लगता था यह गंदे लोग हैं लेकिन अब मालूम पड़ता है वे गंदे लोग नहीं होते बल्कि वे हमारी गलियों को साफ करते हैं। गंदे तो हम लोग हैं, जो ये गन्दगी फैलाते हैं। यह जीवन यथार्थ है। जीवन की सच्चाइयाँ ज़्यादा सामने आ रही हैं और खासकर बच्चों के जीवन की। अब बच्चे के ऊपर के ऊपर पढ़ाई का बोझ ज़्यादा है। बच्चा अकेला पड़ता जा रहा है। दादी -नानी दूर हैं। जीवन बदल गया है।
मीना : पब्लिक स्कूल के बच्चों में हिंदी साहित्य के प्रति रुचि को कैसे जगाया जाये ?
प्रकाश मनु :
  मैं देखता हूँ पब्लिक स्कूल के जो बच्चे हैं, जिनका माध्यम अंग्रेजी है वो भी हिंदी की किताबें चाव से पढ़ते हैं बशर्ते वो अच्छे ढंग से लिखी गयी हों और अच्छे ढंग से प्रकाशित हों। अब प्रकाशकों को भी सजग होना होगा। जब प्रकाशक सजग होंगे तो लेखक भी सजग होंगे और उनकी पुस्तकों को ज़्यादा पढ़ा जायेगा। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अंग्रेजी माध्यम वाले बच्चे हिंदी की किताबों को अधिक पढ़ते हैं। हमने एक बार एक अंग्रेजी किताबों के स्टॉल पर कुछ हिंदी की किताबें वहां रख दी और कुछ दिनों बाद मालूम होता है की सभी हिंदी की किताबें बिक गयीं। बुक स्टॉल वाले ने तो अब हिंदी की किताबों के लिए एक अलग अलमारी भी रख ली। स्टॉल  वाले  कहते हैं कि बच्चे इन्हें पसंद करते हैं।
मीना : अंग्रेजी की किताबों में बच्चों को लेकर किस तरह की विषय वस्तु छापी जाती है ?
प्रकाश मनु :
अब यह तो अंग्रेजी वाले जाने! दरअसल एक परायापन तो रहता ही है और जो हिंदी की भाषा है उसमें  अपनत्त्व होता हैं। इसलिए ज्यादातर बच्चे मन की बात मातृभाषा में करना ही ज्यादा पसंद करते हैं।
मीना : आजकल के बच्चे किताबों से ज्यादा टेलीविजन और कार्टूंस में रुचि लेते हैं तो क्या हम किताबों की मार्केटिंग टी.वी. पर विज्ञापन देकर बढ़ा सकते हैं ?
प्रकाश मनु : मनुजी बिलकुल बढासकते हैं लेकिन हिंदी के प्रकाशक इस मामले में बिलकुल भी प्रश्नचिन्ह नहीं हैं। उनकी क्या मानसिकता है उनकी क्या पूंजी है वो सरकारी खरीद के लिए तो बहुत कुछ करते हैं यहाँ तक की बड़ी खराब बात लगती है कि किताब जैसी चीज़ के लिए वो रिश्वत लेते हैं और क्या क्या करते हैं लेकिन प्रचार नहीं करना चाहते। होना यही चाहिए कि वो प्रकाशन से किताबों की कीमतें कम हों और वो पाठक खरीद सके।
मीना :  जितनी दिलचस्पी से बच्चे कार्टून देखते हैं उतनी ही दिलचस्पी से अगर किताबों के भी कुछ विज्ञापन दिए जाएँ तो उनका मार्केटिंग और बढ़ेगा और लिखने वालों की रूचि स्वयं ही बढ़ेगी।
प्रकाश मनु जी :
हाँ बिलकुल ! लेकिन ऐसा होता नहीं है बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि किताबों की जितनी कीमत होनी चाहिए उससे कई गुना रखते हैं जिससे आम पाठक उसे खरीद नहीं सकता। १००रु.  की किताब ३०० रु. में दी जाती है ६० % वो कमीशन लेते हैं। दिखावे के लिए १० % है और जो बचता है उसे प्रबंधन से जुड़े हुए लोगों में बाँट दिया जाता है। यह एक भ्रष्ट आचरण जुड़ा हुआ है जो  आज के लिए  बड़े दुर्भाग्य की बात है। अगर इन किताबों कि कीमत कम हो तो पाठक इन्हें खरीदें। अभी आज डायमंड बुक्स वालों के स्टॉल में मैनें देखा कि इतने पाठक हैं जो पढ़ रहें हैं। किताबें खरीद रहें हैं। वहां मेला लगा हुआ है।
मीना : आपमें बच्चों के प्रति लिखने की रूचि कहाँ से आई ?
प्रकाश मनु :
मुझे ईश्वर एक तो माँ के भोलेपन में दिखाई देता है  और दूसरा बच्चे की सरलता में। बच्चा प्रेम का रूप होते हैं। बच्चे में मैंने ईश्वर को देखा है। बच्चों पर लिखते समय मैं अपनी समस्याओं को भूल जाता हूँ। इस प्रकार बच्चों पर लिखने में मुझे रुचि आई।

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