Thursday, 26 February 2015

राजधानी में स्वाइन फ्लू में बढ़ते मामले

शक्ति मिश्रा
स्वाइन फ्लू का कहर राजधानी में बड़ी ही तेजी से बढ़ रहा है। सरकारी अकड़े के मुताबिक राजधानी में इसके  1781 मरीज हैं। पिछले 18 फरवरी को 643 नये लोंगो ने अपने सैंपल भेजें हैं। साल 2009 में इस पैनडेमिक फ्लू यानि 'एच1एन1' का पता चला। 6 साल बाद भी हम इस स्थिति में हैं कि हमारी राजधानी ही इस बीमारी से मुक्त नहीं हो रही है। यह हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है?
भारत में साल 2010 में इसकी चपेट में अधिक लोग आये थे, साल 2012 में यह शान्त रहा, फिर अगले साल यानि 2013 में कुछ ज्यादा मामले उठे। वहीं पिछले साल इसके कम मामले सामने आये और इस वर्ष इसके मामले एक बार फिर ज्यादा हो गयें है। वैसे हमें समझने की जरूरत है कि इसमें महामारी जैसे कुछ भी  नहीं है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐसी स्थितियाँ आती रहतीं हैं जब कुछ मामलों के बाद चीजों में उसी खतरे को देखा जाता है, अचानक अस्पतालों में भीड़ बढ़ जाती है और यह सुना जाने लगता है कि 'इस' या 'उस' रोग का इलाज मुश्किल है इस लिये ज्यादा जानें जायेंगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कितने बीमार हुये और कितने मरे, उस आधार पर बीमारी की भयावह स्थिति का अंदाज लगाना गलत होगा। हकीकत यह है कि मौत का कारण सिर्फ बीमारी ही नहीं  बल्कि उस बीमारी के खिलाफ तैयारी में बरती जाने वाली लापरवाही भी है।
वर्तमान में स्वाइन फ्लू की जाँच में भी राजधानी के लोंगो को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। राजधानी में  स्वाइन फ्लू की जाँच के लिये तीन सरकारी (एम्स, सरदार वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इन्सटीट्यूट और राष्ट्रीय संचारी रोग विभाग) और सात निजी लेबोरेटरी के जरिये हो रही है। सरकारी लैबोरेटरी में इलाज नि:शुल्क होता है मगर इन पर दबाव ज्यादा होने के कारण तमाम मरीजों को निजी लैबोरेटरी का रूख करना पड़ता है और निजी लैबोरेटरी में मरीजों का आर्थिक शोषण करते हुये उनसे 6-8 हजार रुपये वसूला जा रहा था। अब इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय के हस्तक्षेप के  बाद स्वाइन फ्लू के इलाज के लिये सभी 28 निजी अस्पताल और निजी  लैबोरेटरी मरीजों से 4500 रुपये से अधिक शुल्क नहीं ले पायेगी।
केन्द्रीय स्वास्थय एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के निदेशक डॉ. जगदीश ने 18 फरवरी को दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखकर फटकार भी लगाई । पत्र में कहा गया कि 'मंत्रालय तक मंहगी जाँच और ईलाज की शिकायतें पहुँच रहीं हैं जिसको नियंत्रित नहीं किया जा रहा'।
 आमतौर पर कहा जा रहा है कि सरकार ने 2014-2015 के बजट में स्वास्थय क्षेत्र में 20 फीसदी की कटौती कर दी है, इसलिये विषाणुओं को फैलने से रोकने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

No comments:

Post a Comment