शिवम् आर्य
गणतन्त्र दिवस समारोह के अवसर पर दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा का मोदी सरकार द्वारा भव्य स्वागत किया गया। संभवतः भरता में इस तरह का स्वागत इससे पहले 1911 में किंग जौर्ज का हुआ था। ओबामा का स्वागत कुछ इस प्रकार हुआ, तोपों की सलामी, शाही भोज, कड़ी सुरक्षा व्यवस्था, चाय की चुस्की आदि अनेक नजारे पेश किए गए, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि ओबामा ने पाकिस्तान को प्रदान की जाने वाली मदद को बढ़ाकर चाय में चीनी कम होने का बदला भी लिया। पिछले वर्ष दिसम्बर में रूस के राष्ट्रपति पुतिन अपनी द्वीपक्षीय वार्षिक शिखर वार्ता पर भारत आए थे जिनका स्वागत इतना भव्य नहीं हुआ। एक समय था जब रूस सबसे शक्तिशाली राष्ट्र था और भरता का मित्र भी।
खैर मेहमान नवाजी में ज्यादा न भटकते हुए मख्य बात पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। शीत युद्ध के समय जब दुनिया दो खेमे में बट रही थी जिसमे एक खेमा था अमेरिका की पूंजीवादी विचारधारा का तथा दूसरा साम्यवादी विचारधारा का, ऐसे वक़्त में भारत ने स्वयं को तीसरी दुनिया का कहलना पसंद किया था। भारत खेमेबाजी से दूर रहा पर फिर भी दूसरी तरफ जब भारत-पाक युद्ध हुआ उस समय तत्कालीन सोवियत संघ एक अच्छे दोस्त की तरह भारत के साथ खड़ा रहा था। वहीँ दूसरी तरफ अमेरिका पाकिस्तान समर्थन देने का काम किया। 1974 में एनएसजी की स्थापना में भी अमेरिका की सर्वाधिक अहम भूमिका थी, जिसमे मुख्य कारण लिटिल बुदधा ही था। रूस शुरू से भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता केलिए वकालत करता रहा है पर अमेरिका ने कभी इसके लिए सहयोग नहीं किया।
उदारीकरण के दौरा के बाद रूस की अर्थव्यवस्था में कमजोरी आई। ओपेक की ओर से तेल में कमी, निर्यात में कमी न करने के निर्णय के कारण रूस संभल नहीं पा रहा है। एक पुरानी अमेरिकी फिल्म का डाइलॉग “जब आप दो खेमो के मध्य खड़े हो तो एक खेमे को अपना लीजिये” हम तीसरी दुनिया का तमगा पहनकर अपना पक्ष बदल रहे है पर अमेरिका के भी इसमे अपने ही राजनैतिक हित है। हालांकि इन बढ़ती नज़दीकियों का विरोध रूस ने पाकिस्तान पर से हथियारो की बिक्री पर से रोक हटाकर किया भी है। भारत अपनी सैन्य साझेदारी अमेरिका व अन्य यूरोपियो राष्ट्रो से तेजी से बड़ा रहा है। दूसरी तरफ सैन्य आरोप लगाते है कि रूस सप्लाइ देने में देरी करता है जबकि ब्रहमाष मिसाएल से लेकर टी-90 टैंक तक सभी रूस की सहायता से बनाए गए थे।
भारत आज विश्व बिरादरी में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है जो की एक स्वस्थ्य विदेश नीति के आधार पर एक अहम पहल है, पर वह अपनी पुरानी तीसरी दुनिया की नीति में बदलाव लाकर अपने पुराने सहयोगीयो से भी दूरिया बड़ा रहा है पर कही ऐसी नीति अपनाने में भारत की छवि थाली में बेंगन की न बन जाए।
भारत आज विश्व बिरादरी में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है जो की एक स्वस्थ्य विदेश नीति के आधार पर एक अहम पहल है, पर वह अपनी पुरानी तीसरी दुनिया की नीति में बदलाव लाकर अपने पुराने सहयोगीयो से भी दूरिया बड़ा रहा है पर कही ऐसी नीति अपनाने में भारत की छवि थाली में बेंगन की न बन जाए।
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