अभिषेक
हमारे समाज में सदियों से लिंग को लेकर भेद-भाव होता होता रहा है जो हमारे लिये बेहद ही शर्म की बात है. जहाँ एक ओर हम विकसित समाज में रहते हुए नई सोच और किसी भी प्रकार का भेदभाव न करने की बात करते है और दूसरी तरफ हम लिंग के प्रति हो रहे भेदभाव को बढ़ावा भी देते है. स्त्री-पुरुष में लिंगभेद तो है ही पर एक विरादरी और है जिसके साथ लिंगभेद चरम पर होता है. वह किन्नर होते हैं जिन्हें आप रोज़ देखते तो है परंतु उन्हें अपने समाज में जगह नहीं देते, वह भी केवल इसलिए क्योंकि वह किन्नर हैं. भारत सरकार द्वारा किन्नरो को भी उतना ही अधिकार प्राप्त है जितना की हमें प्राप्त है. किनार हमारे साथ क्यों नहीं पढ़-लिख सकते? या हमारे साथ नौकरी क्यों नहीं कर सकते? केवल इसलिये कि वे किन्नर है. इस प्रकार की रूढ़िवादी सोच की आज के युग में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. यदि आपके मन में यह बात आ रही है कि पहले से ही यह रीत चली आ रही है तो हमे अपने विचारो को बदलना होगा और सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा. चाहे हम तकनीकी क्षेत्र में कितनी ही उपलब्धिया हासिल कर ले परंतु जब तक हम अपनी इस रूढ़िवादी सोच का विकास नहीं करेंगे तब तक पिछड़े हुए ही कहलाएंगे. हमे उन्हें आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करना चाहिये न कि उनका मज़ाक उड़ाकर उन्हें निराश.
No comments:
Post a Comment