कुंदन कुमार
1 मार्च 2015 को जब भाजपा और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की संयुक्त सरकार बनी तो शायद ही किसी को यह अंदेशा रहा होगा कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक हालात आगामी कुछ दिनों में बहुत तेजी से बदलने वाले हैं। गौरतलब है कि सरकार बनने के चंद दिनों बाद ही जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी और देशद्रोह का आरोप झेल रहे मसर्रत आलम को अचानक ही रिहा कर दिया गया। मसर्रत आलम की रिहाई के बाद भाजपा और पीडीपी में दरार पड़ने लगी है। जहां एक ओर बीजेपी पीडीपी पर यह आरोप लगा रही है कि पीडीपी ने मसर्रत को रिहा करने के सिलसिले में उन्हें कोई जानकारी नहीं दी। वहीं पीडीपी ने इस मसले पर कहा कि हमने इस बारे में बीजेपी से बात की थी।बहरहाल मसर्रत की रिहाई से सिर्फ जम्मू-कश्मीर में भूचाल नहीं आया है बल्कि दिल्ली में भी राजनीतिक सुगबुगाहट तेज हो गई है। कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने दोनों सदनों में मसर्रत के मुद्दे पर खूब हंगामा किया एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजनाथ सिंह से इस मसले पर जवाब मांगा।
सोमवार को लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मसले पर जवाब देते हुए कहा कि उन्हे राष्ट्रीयता नहीं सिखायी जाए। वहीं राजनाथ सिंह ने कहा कि वे राज्य सरकार द्वारा दी गई जानकारी से पूरी तरह से सहमत नहीं है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में जब से बीजेपी और पीडीपी की सरकार बनी है तब से लेकर अब तक लगभग हर रोज घाटी में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। जम्मू-कश्मीर में सरकार बनने के पहले दिन ही पीडीपी के नेता और वर्तमान में जम्मू- कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने एक विवादास्पद बयान देते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव के असली हकदार पाकिस्तान और अलगाववादी हैं। इसके अलावा उन्होंने भारतीय संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के शव को भी कश्मीर लाने की मांग की थी।
जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता पर काबिज होने की भाजपा की लालसा ने अपने से पूर्णतः अलग विचारधारा वाली पार्टी के साथ सरकार तो बना ली लेकिन हाल ही में हुए राजनीतिक उठा-पटक के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों पार्टियों का तलाक होता है या फिर घाटी के राजनीति में कुछ और नए राजनीतिक अध्याय जुड़ेंगे।
No comments:
Post a Comment