Monday, 10 August 2015

स्त्री सशक्तिकरण और आजादी के मायने

विनिता  सामँत
हिंदुस्तान की आजादी को 68 वर्ष हुए, लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी महिलाओं की स्थिति जस की तस है . वह आज भी सशक्त नहीं बन पाई है. गुलामी जैसा जीवन जीने को अभिशप्त है.  हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज रहा है, और आज भी है. हमारे यहाँ महिलाओं को हमेशा से दोयम दर्जे का समझा जाता रहा है.   आज महिलाएं कुछ हद तक आत्मनिर्भर बनी हैं मगर एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं को किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी. उनकी सामाजिक और पारिवारिक स्थिति एक पराश्रित से अधिक और कुछ नहीं थी, जिसे हर कदम पर एक पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ती थी. वैसे तो आजादी के बाद से ही महिला सशक्तिकरण के लिए प्रयास जारी थे. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण की बयार में अत्यधिक तेजी देखी गई है. इन्हीं प्रयासों के परिणाम स्वरूप महिलाओं के आत्मविश्वास में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है और वे किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए  तैयार  हैं. जहां सरकारें महिला उत्थान के उद्देश्य से नई-नई योजनाएं बनाने लगी हैं, वहीं कई गैर-सरकारी संगठन भी उनके अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. नारी सशक्तिकरण के तहत महिलाओं के भीतर आत्मविश्वास पैदा किया जा रहा है कि वह अपनी प्रतिभा को पहचान सकें, बिना किसी सहारे के आने वाली हर चुनौती का सामना कर सकें. आज की महिलाएं सिर्फ घर गृहस्थी को संभालने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई  है. व्यावसायिक क्षेत्र हो या पारिवारिक, महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि वे हर वो काम कर सकती हैं जो कभी पुरुष किया करते थे . कुछ समय पहले तक जिन व्यवासायिक क्षेत्रों में केवल पुरुषों का ही वर्चस्व था, अब वहां महिलाएं भी काम करती है. शिक्षित और आत्म-निर्भर बन जाने के कारण वह अपने ऊपर विश्वास कर, अपने जीवन संबंधी निर्णय स्वयं लेने लगी हैं.
हम बड़े गर्व के साथ सरकारों द्वारा बनाई जा रही योजनाओं को अपना लेते हैं.लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि महिलाओं के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाएं उन्हें अधीनस्थ और शोषित होने का ही अहसास दिलवाती हैं. घरेलू हिंसा को रोकने और स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे कानून हमारे समाज की इस कड़वी हकीकत को बयान करते हैं की महिलाओं की स्थिति बदली है मगर आज भी पुरुष उसका सम्मान नहीं करते उसे स्वयं से कमतर आंकते हैं . उनकी मानसिकता आज भी पहले जैसी ही है. विवाह के तुरंत बाद ही उसे अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है. बेटी को शादी के बाद दूसरे घर ही जाना है तो उसे पढ़ा-लिखा कर खर्चा क्यों किया जाए. लेकिन जब सरकार उन्हें लालच देती है, तो वह उसे पढ़ाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं और हम यह समझने लगते है कि परिवारों की मानसिकता बदल रही हैं. दुर्भाग्यवश नारी सशक्तिकरण केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सिमटकर रह गया है. एक ओर बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र, विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचे पदों पर काम करने वाली और आधुनिक विचारधारा वाली महिलाएं हैं, जो पुरुषों के दमन को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं करेंगी. अपने साथ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध वह अपने दमपर लड़ना जानती हैं. इनकी संख्या भले ही कम हो, लेकिन उन्होंने जो सम्मानजनक स्थिति प्राप्त की है, वह बेहद प्रशंसनीय है. वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में तो आज भी नारी के अस्तित्व पर प्रश्नचिंह ही लगा हुआ है. गांवों में रहने वाली महिलाएं ना तो अपने अधिकारों को जानती हैं और ना ही उनके महत्व को समझती हैं. जिस कारण वह पति के अत्याचारों को अपनी नियति समझकर सहन करती रहती हैं.
हमारा पुरुष प्रधान समाज जिन संस्कारों, परंपराओं और मर्यादाओं की दुहाई देकर महिलाओं को अपने द्वारा निर्मित दायरे में बांध कर रखना चाहता हैं, पुरुष द्वारा उन्हीं सीमाओं का अतिक्रमण और अवमानना कोई नई बात नहीं है. खास बात तो यह है कि उसे ऐसे कृत्य के लिए कोई ठोस सजा नहीं दी जाती. वहीं दूसरी ओर  अगर कोई महिला इन बंधनों को तोड़ कर बाहर निकलना चाहे तो उसे समाज के ठेकेदारों की कोप दृष्टि का पात्र बनना पड़ता है. हम भले ही खुद को आधुनिक कहने लगे हों, लेकिन वास्तविकता यही है कि आधुनिकता केवल हमारे पहनावे और व्यवहार में आई है लेकिन चरित्र और विचारों से अभी भी हमारा समाज पिछडा  हुआ हैं. पुरुष वर्ग महिलाओं को आज भी एक वस्तु की भांति अपने अधीन बनाए रखना चाहता है. आज महिलाएं गृहणी से लेकर एक सफल व्यावसायी की भूमिका को सहज ढ़ंग से निभा रही हैं. वह स्वयं को पुरुषों से बेहतर साबित करने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहती. अगर वह खुद में छिपी ताकत को पहचान अपना पृथक और स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण करने का प्रयास करती है तो वह पुरुषों से ज्यादा बेहतर निर्णय लेने की भी काबिलियत रखती हैं. आधुनिक युग की महिलाएं पुरुष के समकक्ष ही नहीं, बल्कि कई क्षेत्रों में तो पुरुष के वर्चस्व को भी चुनौती दे रही हैं. अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर वह अपनी एक अलग पहचान बनाने  में कामयाब हुई  है.

No comments:

Post a Comment