नीलम रावत
जब हम हजारों लाखों लोगों को बेघर होते देखते है, घायल होते या मरते हुए देखते है तो हम सभी के सामने आपदाएँ प्राकृतिक तो है ही परंतु बहुत सी आपदाएं ऐसी भी है जिन्हें मनुष्य ने स्वंय निमंत्रण दिया है, जिन्हें मानव निर्मित आपदाएं कहा जाता है। मनुष्य ऐसी आपदाओं से स्वंय अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है तथा स्वंय ही नुकसान का भोगी बनता हैं। यदि मानव जाति सुझ-बुझ से काम करें तो काफी हद तक इन आपदाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। औद्योगिकीकरण के बढ़ते प्रभाव ने मानव को अंधा बना दिया है वह प्रकृति की अवहेलना करने पर तुला हुआ है जबकि मानव और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं।साल 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी मानव निर्मित आपदा हैं जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी तथा कई लोगों पर आज भी उस आपदा के प्रभाव देखने को मिलते है। यदि यूनियन कारबॉइड इंडिया के कर्मचारियों ने पहले ही उपकरणों पर ध्यान दिया होता तो आपदा को काफी हद तक टाला जा सकता था परंतु प्रबंधन की एक भूल के कारण हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तथा कई अपाहिज होकर रह गए,लोगों को रातों-रात भोपाल छोड़कर जाना पड़ा। इस आपदा ने केवल भोपाल पर ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत पर अपना असर छोड़ा था।
आज ऐसे उपायों की आवश्यकता है जिनकी योजना पहले से बनाई गई हो,सबको उनकी जानकारी हो तथा समयानुसार उनका उपयोग किया जा सकें।
मौसम की जानकारी देकर,बचाव कार्य तथा प्राथमिक उपचार के बारे में विशेष प्रशिक्षण देकर लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती हैं। प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता परंतु उसके असर को कम अवश्य किया जा सकता है।
यदि मनुष्य कम से कम वृक्षों की कटाई करें तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करें तो प्राकृतिक आपदोओं को कम किया जा सकता है साथ ही नदियों को दूषित ना किया जाए तथा इन सबके लिए जागरुकता फैलाई जानी चाहिए।
अच्छें निर्माण कार्यों की समझ हमारे लिए सबसे आवश्यक हैं ताकि घर,इमारतों को भूकंप सुरक्षित रखा जा सकें। आपदाओं से निपटने के लिए सरकार तथा आम जनता को साथ मिलकर काम करना होगा तभी हम आपदाओं से लड़ने में कामयाब हो पाएँगें।
हम सुसभ्य, पढ़े-लिखें कहलाने वाले प्राणी आए दिन आपदाओं के लिए सरकार या भगवान को कोसते रहते हैं परंतु स्वंय हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। किसी भी प्रकार की आपदा का सबसे अधिक शिकार आम जनता ही होती है तो आपदाओं से बचने के उपाय भी हमें ही करने चाहिए, सबकुछ सरकार तथा भगवान के भरोसे छोड़ देना सही नहीं हैं।
समाज मे इन आपदोओं से संबंधित सावधानी बरतनें के लिए उपाय लोगों को इनके प्रति जागरुक करना हैं। हम प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परंतु समुचित व्यवस्था,उचित जानकारी और संगठित उपायों से हानिकारक प्रभावों को कम अवश्य कर सकतें हें। इसके अतिरिक्त संकट के समय हमें धैर्य और साहस से काम करना पड़ता हैं।
यह प्रश्न आ खड़ा होता है कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? आपदाएं प्राकृतिक हो या मानव निर्मित उसमें नुकसान तथा हानि मानव जाति को ही झेलनी पड़ती हैं। यदि प्राकृतिक आपदाओं को देखा जाए तो वह प्रकृति का मानव के प्रति रोष ही है। बाढ़, भूकंप, सुनामी जैसी भयंकर आपदाओं को देखकर मनुष्य सिहर उठता है परंतु जन-जीवन के सामान्य होते ही वह सब कुछ भूल जाता है। मनुष्य अपनी भूल से तनिक भी सीख नहीं लेता तथा वृक्षों की कटाई कर,नदियों को दूषित कर स्वंय ही आपदाओं को निमंत्रण देता हैं। जून 2013 में उतराखण्ड में आई बाढ़ से बड़ी तबाही का सामना करना पड़ा था जिससे जन-जीवन अस्त-व्यस्त तो हुआ ही साथ ही कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी।
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