कृष्णा द्विवेदी
अक्सर ऐसा होता है कि मंदिर में दर्शन केलिए जाने वाले दर्शनार्थी भीख माँगने
वाले ग़रीब बच्चों के जमावड़े से पीछा छुड़ाते हैं, उन पर झल्लातें है और
बिना उनकी मदद किए आगे बढ़ जाते हैं. भगवान की मूर्ति के समक्ष मेवा-प्रसाद
चढ़ाते है, उन्हें वस्त्र आभूषणों से सजाते हैं. दान पेटी में डालने के लिए
उनकी जेब से १०-२० या ५०-१०० के नोट भी निकल जाते हैं. मानो ऐसा करने से
ईश्वर उन्हें आशीर्वाद देंगें और उनके कष्टों को हर लेंगें. ये तो ऐसा हुआ
जैसे ईश्वर के घर में भी बस पैसे की पूछ है, तो फिर इंसान और ईश्वर में क्या
अंतर रहा? मंदिरों के निर्माण कार्य में कई लोग करोड़ों का दान कर देते हैं,
ईश्वर को खुश करने और समाज में अपना मान सम्मान और रुतबा बढ़ाने के लिए. पर
जब प्रश्न किसी ग़रीब का उठता है तो उस समय कुछ लोगों की मानसिकता उस
ग़रीब की ग़रीबी से भी ज़्यादा ग़रीब बन जाती है.
कई बार मेरे जेहन में ये
प्रश्न उठते हैं कि मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों के निर्माण कार्य पर
करोड़ों रुपये बहाना धर्म है या फिर दर-दर भटकने वाले निराश्रितों के लिए
आश्रय का कोई स्थल बनवाना धर्म है? भगवान की मूर्ति के सामने मावे-मेवा का
प्रसाद चढ़ाना धर्म है या फिर किसी भूखे ग़रीब के लिए दो वक्त के खाने की
व्यवस्था करना धर्म है? एक पत्थर की मूर्ति को नये-नये आभूषण और वस्त्रों
से सजाना धर्म है या फिर एक फटे कपड़ो से ढके अधनंगें तन को कपड़े पहनाना
धर्म है? आख़िर क्या है सच्चा धर्म? हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और ना जाने
कितने धर्मों में मनुष्य और भगवान को बाँट कर हम अपनी ढपली अपना राग बजाते
रहते है. पर अगर ये सब करने की बजाय हमनें मानवता को अपना धर्म बनाया होता
और ईश्वर को मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों मे सजाने की बजाय अपने दिल मे
बसाकर समाज के दीन-दुखी, निर्धन, निराश्रित तबके के उत्थान के लिए कुछ कदम
उठाए होते तो आज हमारा समाज कितना खुशहाल होता और तब शायद हम सच्चे अर्थों
में अपना धर्म निभा पाते.
कुछ ग़रीब लोग की गयी मदद का अनावश्यक फायदा उठाते
हैं और भीख माँगने को ही अपना पेशा बना लेते हैं. ग़लत कार्यों में धन का
उपयोग करते हैं. ये सब तर्क अपनी जगह सही है पर इन सब तर्कों से हम अपने
कर्तव्यों से भाग नहीं सकते. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही हमे
अपना मानव धर्म निभाना चाहिए. इसके लिए पैसो का दान करने की बजाय हम उनके
लिए कुछ ऐसा करें जिससे वे स्वाभिमान के साथ अपना जीवन यापन कर सके.
No comments:
Post a Comment