Tuesday, 13 October 2015

बुनियादी सुविधाओं को तरसते गांव

अभय पाण्डेय व पूजा सिंह
एक माह के ग्रामीण पत्रकारिता के प्रशिक्षण के दौरान मध्य प्रदेश के कुछ बुनियादी सुविधाओं के लिये जूझ रहे गांवों की रिपोर्ट .

रिपोर्ट-1 DATE02/06/015
 चौर ग्राम' की रिपोर्
आज 'सी जी नेट स्वर' की जन पत्रकारिता एवं जागरूकता यात्रा मध्यप्रदेश के रीवा जिले के चौर ग्राम में पहुँची | जहाँ हमारी टीम ने गाँव की समस्या को जानने की कोशिश की | समस्याओं में प्रमुख रूप से पानी, सड़क, शिक्षा, अस्पताल आदि की समस्या दिखी | गाँव में लोग पीने के लिए पानी दो किलोमीटर से लाते हैं | गाँव में लगभग 10 से 11हैण्डपंप होंगे जिसमे 4 से 5 हैण्डपंप ख़राब हैं और जो ठीक भी वह मरणासन की हालत में हैं | गाँव को आज तक 'प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना' से नही जोड़ा गया है | गाँव में शिक्षा की समस्या बहुत जटिल है | यहाँ पर 8वीं के बाद की पढाई के लिए विद्यार्थीयों को 4 से 5 किलोमीटर की यात्रा करके जाना पड़ता है जो एक भारी समस्या है | आंगनबाड़ी की बिल्डिंग है पर वह कब खुलता है कब बंद होता है कुछ पता नहीं, गाँव में बिजली है लकिन आधी अधूरी है, ग्रामीणों से पूछने पर पता चला कि आदिवासी बस्ती में आज तक बिजली नहीं पहुँची है | किसानों के लिए यहाँ बहुत बड़ी समस्या है कि यहाँ पर सिचाई के लिए कोई साधन नहीं है | यहाँ ना कोई तालाब है ना ही कोई बोरिंग | गाँव में दबंगई और जातिवादता इतना अधिक है की 2001 में 60 भूमि हीनों को पट्टा दिया गया था | जिस पर आज तक कब्ज़ा नहीं दिलाया जा सका और इस समस्या के समाधान के लिए प्रशासन के द्वारा भी कोई ठोस कदम आज तक नहीं उठाया गया |

रिपोर्ट-2 DATE05/06/015
जनकहाई ग्राम' की रिपोर्ट
सी जी नेट जनपत्रकारिता एवं जागरुकता यात्रा का दूसरा दिन था | आज हमारी हिंदी टीम मध्यप्रदेश के रीवा जिले के 'जनकहाई' ग्राम में पहुँची | इस गाँव के सरपंच श्रीमती इन्द्रावती मिश्रा हैं | यहाँ की कुल आबादी लगभग 5000 है | वार्डों की संख्या 20 है | यह गाँव देखने में काफी विकसित एवं समृद्ध दिखाई देता है | लेकिन वास्तविक सच्चाई कुछ और ही है | यहाँ जतिवादिता, दबंगई, साम्प्रदायिकता बहुत अधिक है | यहाँ जो कुछ भी विकास हुआ है दबंगों के मोहल्लों में हुआ है | दलित और आदिवासी आज भी उसी स्थिति में जहाँ आजादी के पहले थे | इस गाँव में एक तरफ दबंगों के मोहल्लों में घर-घर हैंडपंप है तो वही दूसरी तरफ आदिवासी और दलित बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे है | दलित बस्ती में लोग घंटो पानी के लिए कतार में खड़े रहते है | गाँव में 3प्राथमिक एवं एक जूनियर हाईस्कूल मिला कर कुल चार स्कूल हैं | जिसमें पढ़ाई की स्थिति ठीक नहीं है | पिछले दीपावली पर जो ट्रांसफर्मर ख़राब हुआ था उसकी मरम्मत आज 8 महीने के बाद भी नहीं हुआ | लोग बिजली न आने से परेशान है | लगभग 4 साल हो गये बभनी नदी के पुल को टूटे हुए जिससे प्रतिदिन दुर्घटनायें घटती रहती है | लेकिन बार-बार कहने पर भी प्रशासन के द्वारा कोई सुनवाई नहीं हो रही है | पानी की एक टंकी बने लगभग साल भर होने को है पर आज तक सप्लाई नहीं शुरु किया गया | गाँव में स्वास्थ्य संबंधित कोई भी इंतजाम नहीं है न यहाँ कोई अस्पताल है न प्राथमिक चिकित्सा केंद्र | लोगों को इलाज के लिए 2-2 किलोमीटर चल कर जाना पड़ता है| लगभग ३ साल हो गये वृद्धा पेंशन, विकलांगता पेंशन, विधवा पेंशन आदि का कोई पता नहीं है | लोगों के पास जीविका का कोई साधन नहीं, दलित, आदिवासी लोग जंगली लकड़िया काट-काट कर बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं | गाँव में  दबंगई इतनी अधिक है कि मनरेगा मिड-डे मील जैसी योजनायें कागजों तक ही सीमित रह गयी हैं | 8वीं क्लास के बाद पढाई के लिए लगभग 10किलोमीटर चल कर जाना पड़ता है क्योंकि हायर उच्च शिक्षा के लिए कोई भी स्कूल गाँव या गाँव के आस-पास नहीं है |

रिपोर्ट-3  DATE13/06/2015
'सांगी' ग्राम की रिपोर्ट
आज सी जी नेट जनपत्रकारिता एवं जागरुकता यात्रा का 14वां दिन था | हमारी हिंदी टीम इन 14 दिनों में रीवा जिले के गाँव-गाँव को सी जी नेट के बारे में जागरुक करते हुए गाँव की समस्याओं और सुविधाओं से खुद भी रूबरू हुए | यात्रा के 14वे दिन हमारी टीम रीवा जिले के सांगी ग्राम के आदिवासी टोले में पहुंची | इस टोले की प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनती है | चारों ओर से पहाड़ और घने जंगल,बीच में छोटा सा आदिवासी मोहल्ला | गाँव तक पहुँचने के लिए हमें बड़ी मशक्कत करनी पड़ी | गाँव में सड़क का कुछ पता नहीं था | हमारे गाँव में पहुचने के लगभग 10मिनट में कार्यक्रम की शुरुआत हुई | कार्यक्रम के दौरान गीत, संगीत, नाटक और कटपुतली नाच के द्वारा लोगो को सी जी नेट और मोबाइल रेडियो के प्रयोग के बारे में बताया गया | प्रशिक्षण के साथ-साथ उनकी समस्याओं की भी रिकॉर्डिंग कराई गयी | समस्याएं बहुत ही मूलभूत हैं | लोगों के पास खाने के लिए खाद्यान्न नहीं, पीने के लिए पानी नहीं, रोड रोड नहीं, रोजगार नहीं कुछ इसी प्रकार की समस्यायें देखने को मिली | बच्चों के लिए स्कूल नहीं जो है भी उसमे पढ़ाई नाम मात्र की है | गाँव में या गाँव से 10-15किलोमीटर दूरी तक कोई अस्पताल नहीं है और सड़क न होने के कारण आपातकाल में 108से एम्बुलेंस भी गाँव में नहीं पहुँच पाती है | ऐसे में लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है | गाँव के लोगों से पता चला कि लगभग एक साल होने को है न वृद्धा पेंशन का कुछ पता न ही विधवा पेंशन का | गाँव में रोजगार की भारी समस्या है और उसके लिए सरकार के ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा | मनरेगा का कार्य ठप पड़ा है | स्थानीय लोग जंगली लकड़ियाँ बेच-बेच कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं | गाँव में बिजली का वितरण बहुत ही असमान है, कहीं बिजली है कहीं नहीं | बिजली के बिल के लिए कोई मानक नही बिजली विभाग द्वारा मनमाने ढंग से बिल की वसूली की जा रही है ऐसे अनेकों समस्यायें गाँव में देखने को मिली जिनके निराकरण के लिए हमारे सी जी नेट के साथियों ने गाँव वालों के सहायता से सन्देश रिकॉर्ड करवाए | इस प्रकार से कार्यक्रम जन जागरूकता एवं समस्या रिकॉर्डिंग के साथ समाप्त हुआ |

रिपोर्ट-4. DATE 13/06/2015  
ग्राम 'कोलमोजरा' की समस्याएं
कहते हैं की हमारा देश विकास कर रहा है पर क्या यह विकास शहरों के लिए है या गांव के लिए भी | आज जब मैं यात्रा के दौरान कोलमोजरा गांव अहिरान टोला ग्राम पंचायत कोनिकला ब्लाक जवा तहसील जिला रीवा मध्य प्रदेश में गयी तब गांव की हकीकत का पता चला | इस गांव की कुल जनसंख्या 7000 है कुल वार्ड 20 इस गांव में सरकारी हैंडपंप 50 हैं | जिनमें चालू हैंडपंप 40 हैं और बंद हैंडपंप 10हैं | सरकारी कूप 5है और सरकारी तालाब 1है वो भी सूखा पड़ा है | यहाँ पर सरकारी स्कूल 22है जिनमें से 2स्कूल बंद पड़ हैं और जो स्कूल खुले हुए है उनकी छत पूरी तरह जर्जर है औरों की तरह टपक  रहा है | जमीन की फर्श पूरी तरह उखड़ी हुई है और स्कूलों में बेंच भी नहीं है बच्चों के बैठने के लिए जमीन की टाट पट्टी लेकर बैठते हैं और कुछ बच्चे तो घर से बोरी लेकर स्कूल आते हैं | बैठने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र 5हैं | जिनमें भवन नहीं है और इन आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों के लिए पौष्टिक आहार नहीं दिया जाता है | इस गांव में 10मई 2015 को पत्थर पड़ने से अरहर और चने की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गयी, जिसके मुआवजे के लिए सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है | किसानों की जमीन पर अभी तक न कोई कर्मचारी न अधिकारी न किसी प्रकार का सर्वे हुआ है जिस कारण किसानों की फसल नुकसान होने का उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला जिस कारण उनकी स्थिति  काफी ख़राब हो गयी है | इस गांव में रोड की भी समस्या है लेकिन उससे भी बुरी समस्या अस्पताल की है | यहाँ का रोड ठीक ना होने के कारण इस गांव में आज तक कोई भी वाहन का आवागमन नहीं हो सकता, जिस कारण गांव में आज तक कोई भी वाहन नहीं आया है | इस गांव में अस्पताल नहीं है और रोड ठीक न होने के कारण इस गांव में जननी एक्सप्रेस के एम्बुलेंस भी नहीं आती जिस कारण अगर गांव में किसी की भी स्वास्थ ख़राब हो जाती है तो उसे झोली में लेकर सरकारी हॉस्पिटल ले जाते हैं | जो कि इस गांव से 2किलोमीटर दूर है लेकिन उसमे भी कोई डॉक्टर नहीं बैठता है डॉक्टर सिर्फ कागजो में ही नियुूक्त है क्योंकि वहाँ सिर्फ कम्पाउण्डर ही बैठता है | उस अस्पताल में डॉक्टर ना होने के कारण उस अस्पताल में गांव के लोगों को 30किलोमीटर 'जबा' में लेकर जाना पड़ता है | व्रद्धा महिला 'रम रजिया' जो की विधवा हैं उनसे बात करने पर पता चला की उन्हें आज तक विधवा पेंशन नहीं मिला | उन्हें इन्दिरा आवास योजना के तहत घर भी नहीं मिला उन्हें रासन, खाद्यान भी नहीं मिल रहा यह महिला चार-चार पाँच-पाँच दिन बिना खाए रहती है क्योंकि इनकी स्थिति भीख मांगने लायक भी नहीं है | गांव के लोग कभी-कभी खाना उसके घर पहुँचा देते हैं तो वो खाना खा लेती है और जिस दिन नहीं पहुँचाते उस दिन वह बिना खाना खाये रहती है गांव के एक और व्यक्ति मथुरा प्रसाद यादव से बात हुई जिनकी उम्र 18वर्ष है यह दोनो पैरो से विकलांग हैं | इन्हें आज तक ट्रॉयल साइकिल नहीं मिला और ना ही विकलांगता पेंशन मिला | इस तरह इस गांव में सरकार की तरफ से किसी भी योजना का लाभ इन गांव वालों को नहीं मिल रहा |

रिपोर्ट-5. DATE 14-06-015
ग्राम पंचायत 'गड़ेहरा(चौरीडाडी)' की रिपोर्ट
सी जी नेट जनपत्रकारिता एवं जागरुकता यात्रा का १15वाँ दिन था | आज हमारी टीम मध्यप्रदेश के रीवा जिले के गड़ेहरा ग्राम के चौरीडंडी मोहल्ले में पहुँची | इस गाँव की सरपंच गीता देवी हैं | यहाँ की कुल आबादी लगभग 5000 है | वार्डो की संख्या 19 है | यहाँ जतिवादिता, दबंगई, साम्प्रदायिकता बहुत अधिक है | यहाँ जो कुछ भी विकास हुआ है वह  दबंगों के मोहल्लो में हुआ है | दलित और आदिवासी आज भी उसी स्थिति में जहाँ 50 साल पहले थे | इस मोहल्ले में पानी की भारी समस्या है, यहाँ कुल 6 हैंडपंप लगे हैं जिनमें से 2 ख़राब पड़े हैं | गाँव में 2 प्राथमिक एवं 3जूनियर कुल मिला कर 5 स्कूल है, जिसमें पढ़ाई की स्थिति ठीक नहीं है | गाँव में बिजली की समस्या भी है स्थिति बहुत ख़राब है पिछले कई महीनों से ट्रांसफार्मर ख़राब पड़ा है लेकिन उसकी मरम्मत आज भी बिजली विभाग द्वारा नहीं किया गया | गाँव के बीचो-बीच खम्भा टूटा पड़ा हुआ है जिसमे करंट भी उतरता, जिसके चपेट में आ कर 2-3 मवेशियों की मौत हो चुकी है | इसके बाद भी बिजली विभाग ने कोई कदम नहीं उठाया है जबकि सैकड़ो शिकायते की गयी है | गाँव में बिजली के नाम पर लूट मची है गाँव वालों का कहना है कि बिजली भी नहीं दी जा रही और बिल भी अधिक वसूला जा रहा है | गाँव में स्वास्थ्य संबंधित कोई भी इंतजाम नहीं है न यहाँ कोई अस्पताल है न प्राथमिक चिकित्सा केंद्र | लोगों को इलाज के लिए 18-20 किलोमीटर चल कर जाना पड़ता है | लगभग एक  साल हो गये वृद्धा पेंशन, विकलांगता पेंशन, विधवा पेंशन आदि कोई पता नहीं है | लोगों के पास जीविका का कोई साधन नहीं, दलित, आदिवासी लोग जंगली लकड़िया काट-काट बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं | गाँव में दबंगई इतनी अधिक है कि मनरेगा मिडडे मील जैसी योजनायें कागजों तक ही सीमित रह गयी हैं | आंगनबाडी में पौष्टिक आहार का वितरण में बड़ी धांधली है | गाँव में हायर एजुकेशन के लिए कोई सुविधा नही है | 8वीं क्लास के बाद पढाई के लिए लगभग 10 किलोमीटर चल कर जाना पड़ता है क्योंकि हायर एजुकेशन के लिए कोई भी स्कूल गाँव या गाँव के आस-पास नहीं है |
                                                                                            
रिपोर्ट-6. DATE 10-06-015
ग्राम 'छपरियाहा' की रिपोर्ट
सी जी नेट जनपत्रकारिता एवं जागरुकता यात्रा, आज हमारी टीम मध्यप्रदेश के रीवा जिले के छापरियाहा ग्राम में पहुँची | इस गाँव की सरपंच श्रीमती सरिता सिंह हैं | यहाँ की कुल आबादी 1200 है| वार्डो की संख्या 17 है | इस गाँव को देख कर ही इसकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है | यहाँ जो कुछ भी विकास है दबंगों के मोहल्लो में हुआ है | दलित और आदिवासी आज भी उसी स्थिति में है जिस स्थिति में अंग्रेजी हुकूमत के समय में थी | इस गाँव में एक तरफ दबंगों के मोहल्लो में घर-घर हैंडपंप है तो वही दूसरी तरफ आदिवासी और दलित बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं | दलित बस्ती में लोग घंटो पानी के लिए कतार में खड़े रहते हैं | यहाँ 4 हैण्डपंप है | सिचाई के लिए गाँव में कोई सुविधा नहीं है | इस पूरे गाँव में केवल एक कूप है | यहाँ शिक्षा की बड़ी बदहाल स्थिति है, पूरे गाँव में कोई भी स्कूल नहीं है | गाँव के आस-पास भी कोई स्कूल नहीं है | गाँव में बिजली की स्थिति बहुत खराब है, आधे-अधूरे बिजली कनेक्शन दिए गये हैं पूरे गाँव में बिजली सप्लाई नहीं है जितने घरों में बिजली है भी उनमे सप्लाई की स्थिति बदहाल है | यहाँ सडक कि कोई सुविधा नहीं है | गाँव को आज तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से भी नहीं जोड़ा गया | गाँव में सड़क नहीं होने के कारण यातायात की बड़ी बदहाल स्थिति है, गाँव में फोर व्हीलर गाड़ियाँ बमुश्किलें आ पाती हैं | सालों हो गये गाँव में वृद्धा पेंशन, विकलांगता पेंशन, विधवा पेंशन आदि कोई पता नहीं है | लोगों के पास जीविका का कोई साधन नहीं दलित, आदिवासी लोग जंगली लकड़िया काट-काट बेचकर अपनी जीविका चला रहे हैं | स्वास्थ्य संबंधित कोई भी सुविधा गाँव में नहीं है, लोगों को 10-12किलोमीटर चलकर जाना पड़ता है | इस प्रकार गाँव में विकास के नाम पर केवल कागजी कार्यवाही हो रही है | वास्तविक रूप विकास कहाँ हो रहा है कुछ पता नहीं है |
                                     
रिपोर्ट-7. DATE  09-06-015
'डभौरा' ग्राम की समस्याएं
सी जी नेट जनपत्रकारिता एवं जनजागरुकता यात्रा आज रीवा जिले के डभौरा ग्राम पंचायत के अम्बेडकर नगर मोहल्ले में पहुँची | जहाँ मूल रूप से दलित एवं आदिवासी निवास करते हैं | यहाँ हमारी सी जी नेट की टीम ने गीत, संगीत, नाटक, कठपुतली नाच के द्वारा लोगों को सी जी नेट की उपयोगिता बताते हुए मोबाइल रेडियो का प्रयोग की विधियां भी बताई | कार्यक्रम के उपरान्त हमारी टीम के सभी सदस्य ग्रामीणों की समस्यायें जाने और उनके समाधान के लिए सी जी नेट में सन्देश भी रिकॉर्ड कराये साथ ही साथ ग्रामीणों को सी जी नेट की उपयोगिता भी बताई | इस प्रकार से कार्यक्रम का समापन हुआ | यहाँ की प्रमुख समस्यायें बिजली, पानी और शिक्षा की है | आज भी गाँव में छुआछूत, जतिवाद इतना अधिक व्यापत है कि सवर्ण समाज दलितों और आदिवासियों को अपने मोहल्ले के नलों से पानी तक नहीं लेने देते हैं | यहाँ शिक्षा की हालत बहुत बेहाल है ,गाँव में स्कूल तो है लेकिन शिक्षा एवं शिक्षा के नाम पर केवल कागजी कार्यवाही हो रही है वास्तविकता में स्थिति बहुत गंभीर है | दलित आदिवासी मोहल्ले में 5 हैंडपंप लगे हैं, लेकिन चालू हालत में 2 ही हैं, जिसके कारण लोगों को पानी की भारी समस्या से जूझना पड़ता है | गाँव में कुल 5 आंगनबाड़ी केंद्र हैं | जिसमें सभी केन्द्रों के भवन बना हुआ है | कुछ एकाध बातों को छोड़ दिया जाये तो सभी केंद्र सही ढंग से कार्य कर रहे हैं | स्कूल में मिडडे मील कभी-कभी मिलता है | गाँव में सड़क की समस्या बहुत अधिक है | पूरे गाँव में टूटी सड़के एवं खुली नालियां लोगों का जीना मुहाल कर रखीं हैं |

रिपोर्ट-8.DATE 09-06-015
ग्राम 'जतरी(नोनारी)' की बात
सी जी नेट जनपत्रकारिता एवं जागरुकता यात्रा आज मध्यप्रदेश के रीवा जिले के जतरी ग्राम पंचायत के नोनारी आदिवासी मोहल्ले में पहुंची | इस गाँव में कुल 15 वार्ड हैं | जिसकी जनसंख्या 2200 है और यहाँ के वोटरों की सख्यां 1240 है | यहाँ के लोगों की सबसे बड़ी समस्या अपने अस्तित्व को बचाए रखना है | यहाँ की मूल समस्या लोगों के लिए खाना और रहना है | न लोगों के पास रहने के लिए घर है और न ही खेती के लिए जमीन और किसी भी प्रकार के रोजगार की कोई सुविधा नहीं है | गाँव वालों ने बताया 2002 में पट्टा दिया गया, जिस पर आज तक कब्ज़ा नहीं मिला क्योंकि सरकार खुद नहीं चाहती कि लोगों को रहने के लिए जमीन मिल पाए | लोग 45-45 डेसिमल जमीन में रहने को मजबूर हैं | 34 लोगों को वन भूमि के आधार पर पट्टा दिया गया जिस पर आज तक कब्ज़ा नही मिला | शिक्षा एवं स्वास्थ्य के सुविधाओं की बहुत ख़राब स्थिति है पूरे पंचायत में 6 प्राथमिक और 1 पूर्व माध्यमिक कुल मिलाकर 7 स्कूल है | किसी में भी शिक्षण कार्य का कुछ अता पता नहीं है | लोग मजबूर हैं अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए लेकिन गरीबी इतनी अधिक है कि आदिवासी बस्ती के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते | अस्पताल यहाँ से 10किलोमीटर की दूरी पर है और रोड की स्थिति इतनी नाजुक है कि आपातकाल की स्थिति में जननी एक्सप्रेस भी तुरंत नहीं पहुँच सकती है | पूरे गाँव में पानी की भारी समस्या है, गाँव में कुल 15 हैंडपंप हैं जिसमें से 5 ख़राब पड़े है | दो कूप हैं जिसमें पानी है पर उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है | ग्राम पंचायत के अंतर्गत एक तालाब है जो सूखा पड़ा है | नोनारी मोहल्ले में एक आंगनबाड़ी बनी हुई है जो आधा अधूरा बना हुआ है | इसी प्रकार इसमें पौष्टिक आहार का वितरण भी आधी अधूरी होती है | गाँव में इन्दिरा आवास के लिए 34 लोगों को कालोनियों का आवंटन किया गया था जिसका एक क़िस्त के बाद दूसरा क़िस्त नहीं दिया गया है इस कारण लोगों के घर आधे अधूरे बने पड़े है और न ही किसी प्रकार की कोई कार्यवाही ही की गयी | वनविभाग के द्वारा, क्योंकि वन विभाग भी अपना मालिकाना हक़ पेश करता है | इस प्रकार से पता चलता है कि सरकार एवं वन विभाग के नियत में खोट है, ये लोग खुद नहीं चाहते कि यहाँ के लोगों को रहने के लिए ठिकाना मिल पाए |

रिपोर्ट-9. DATE 16-06-015
'सीयानगर' गाँव की रिपोर्ट
सीजीनेट स्वर, जनपत्रकारिता एवम् जनजागरूकता यात्रा के तहत आज हमें सियानगर में जाने का मौका मिला, गांव-पंचायत कोटा, ब्लाक जबा, तहसील जबा और जिला रीवा, इस गांव को सन 2001 में बसाया गया था पर यहाँ के जमींदारो ने कुछ ही समय में बाद में गांव को खाली करवा दिया था | उसके बाद यह गांव दुबारा सन् 2010 में बसाया गया | इस गाँव को दुबारा बसाने में सियादुलारी आदिवासी का संघर्ष है | इस गांव को खाली करवाने का प्रयास वहाँ के जमींदारो ने बार-बार किया | जमींदारो ने इस गांव को खाली कराने के लिए कैलेक्टेर से मिल कर झूठी शिकायत की जिसके बाद इस गांव को खाली कराने के लिए नोटिस भी भेजा गया | जिस नोटिस का सियादुलारी आदिवासी ने जमकर विरोध किया और इस गांव को दुबारा उजड़ने से बचा लिया | इसमे  भोले-भले आदिवासियों के लिए सियादुलारी ने मीडिया का सहारा लिया | जमींदारों की इस करतूत की खबर जब अखबारों में छपी तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसकी सुध ली और घोषणा किया कि जहाँ कहीं भी आदिवासी गांव में आकर बसा है उस गांव से हटाया नहीं जायेगा | अब इस गांव को पट्टा दिलाने के लिए सरकार से इस मुददे पर बात चल रही  है |
सियादुलारी आदिवासी ने बताया कि वह एक आदिवासी संस्था में काम करतीं हैं, इन्होंने 10 आदिवासी वंचित बच्चों के लिए स्कूलखोला है | इस सराहनीय काम को देखते हुए उन्हें एक प्रोजेक्ट मिला है जिसके तहत वे काम करतीं हैं | सियानगर गांव को बसाने में सियादुलारी आदिवासी का बहुत बड़ा योगदान है | जहाँ पर यह गांव बसा हुआ है वह जमीन बंजर पड़ी हुई थी जिस पर उन्होंने इन बेसहारा आदिवासी लोगों को बसाने के बारे में सोचा | इस गांव में सिर्फ वही आदिवासी लोग रहते हैं जिनके पास जमीन नहीं है | जिनका जमींदारो के हाथों शोषण हुआ करता था | इन्हें गाय, भैस, बकरी चराने तक कि छूट नहीं थी | ऐसे आदिवासी को इस गांव में लाकर बसाया गया है | यहाँ सिर्फ एक हैंडपंप है, वो भी चन्दा ले कर बनवाया गया है, कोई सरकारी हैंडपंप इस गांव में नहीं है, जबकि दो हैंडपंप होने चाहिए | बिजली-पानी कि यहाँ अभी भी समस्या है | सरकारी प्राथमिक हॉस्पिटल और स्कूल का तो नामो-निशान नहीं है | यहाँ की जनसँख्या 240 है इस गांव में 150 मकान है | स्वयंसेवी बाल संस्था के सहयोग से एक स्कूल चल रहा है जिसमें इस गांव के आदिवासी बच्चे पढ़ने जाते है | इस स्कूल में एक शिक्षक है जिसकी क्वालिफिकेशन बीएससी है और तीन सहयोगी हैं | इस गांव के बच्चों को कपड़े बनाकर स्वयंसेवी संस्था गूंज फ्री में बच्चों को कपड़े भी बाँटती है | इस गांव को अब रासन भी मिलने लगा है और आने वाले समय में यह गांव सब से ज्यादा प्रगति करेगा ऐसा यहाँ के सरपंच का कहना  है |

No comments:

Post a Comment