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फोटो रवि पाल |
महात्मा गांधी के विचारों को देशहित में समझने और समझाने का निरंतर प्रयास
समाज का एक बड़ा साहित्य वर्ग कर रहा है. इन्हीं विचारों को एक बार फिर से
समाज को अवगत कराने के लिये गांधी जी की 146वीं जयंती और गांधी शांति
प्रतिष्ठान के वार्षिक व्याख्यान के 21वें व्याख्यान के रूप में नई दिल्ली
स्थानीय गांधी शांति प्रतिष्ठान में 'सादगी की सुन्दरता' विषय पर व्याख्यान
का आयोजन किया गया. गांधी के विचारों से प्रभावित लोगों ने इसमें शिरकत की
और गांधी के वसूलों का अनुसरण करने की शपथ ली. कार्यक्रम की अध्यक्षता
राधा बहन ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य वक्ता आचार्य विश्वनाथ
त्रिपाठी के दीप प्रजवल्लन से हुई. प्रथम वक्ता के रूप में गाँधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव
कुमार प्रशान्त ने कविता पढ़ी और गांधी के विचारों, वसूलों को समाज से
जोड़ते हुए उनकी प्रसांगिकता पर श्रोताओं का ध्यान केन्द्रित किया. उन्होंने कहा कि सामाजिक तौर पर कविता और गांधी का रिश्ता केवल
अहिंसा, भाईचारे और स्नेह का था. दूसरे वक्ता के रूप में मुख्य वक्ता
आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी को आमंत्रित किया किया गया. कभी विनोबा भावे ने
साहित्य की व्याख्या करते हुए कहा था जो समाज के सहित चले वही साहित्य है.
आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी अपने जीवन में जैसे इस व्याख्या को साकार करते
हुए चले हैं.
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फोटो रवि पाल | |
भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक मूल्यों में गहरी पैठ कर उन्होंने
साहित्य की हर विधा में लिखा है-उपन्यास भी, कविता भी, स्मृति-व्याख्यान भी
और आलोचना साहित्य भी. उन्होंने अपने व्याख्यान में समाज के हर तबके, हर
प्रकार के साहित्य पर प्रकाश डाला. उन्होंने अपने जीवन काल के महत्वपूर्ण
संघर्षों जो कि बस्ती के विषकोहर क्षेत्र से लेकर आज तक के सफ़र मे सभी कुछ
साहित्य के माध्यम से श्रोताओं को बताया और साहित्य को समाज से जोड़ा.
उन्होंने अपने आप को आचार्य कहलाना तक उचित नहीं समझा. उन्होंने कहा कि
आचार्य तो हिन्दी साहित्य के तीन ही स्तम्भ के रूप में हैं और अब चतुर्थ
स्तम्भ की जरूरत अपने समाज को नहीं. उन्होंने उन तीनों स्तम्भों में आचार्य
महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य राम चन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद
द्विवेदी का नाम बताया और समझाया. व्यास सम्मान और मूर्तिदेवी पुरस्कार से
सम्मानित आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी वामपंथी विचारधारा की तरफ खिचे रहे
हैं. उन्होंने अपने व्याख्यान में भी इस बात की पुष्टि की और कहा गांधी
बदलाव की नहीं बल्कि सुधार की बात करते थे.
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फोटो रवि पाल |
इसीलिए गांधी सत्ता से दूर रहे.
आज समाज में सत्ता परिवर्तन ही बदलाव बन गया है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
सत्ता का चाहेता ही बदलाव की बात करता है कि बदलाव होगा तो सत्ता
परिवर्तित होगी और यह सत्ता का खेल पक्ष विपक्ष तक ही सिमित रहकर समाज के
हितों से कोशों दूर हो जायेगी. उन्होंने आगे कहा कि समाज को बदलाव की जरूरत
नहीं सुधार की जरूरत है और गांधी हमेशा सुधार की ही बातें किया करते थे.
तीसरे वक्ता के रूप में गांधी शांति प्रतिष्ठान की मुकुल प्रियदर्शनी ने
आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी को आचार्य ना कहते हुए चाचा कहकर पुकारा और उनका
हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान बताते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया.
उन्होंने श्रोताओं के प्रति भी अपना आभार जताते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया.
कार्यक्रम के अंत में वीणा के धुन के साथ गांधी के प्रियवचन 'वैष्णव जन' का
गायन भी किया गया और 'अहिंसा परमो धर्मः' के वचन के साथ कार्यक्रम का
समापन हुआ. कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्र, कई
पत्रकार और समाज सेवक भी सम्मिलित हुए.
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