अभय पाण्डेय
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो कि न आसानी से बनता है और न ही आसानी से नष्ट किया जा सकता है। इसके बनने से नष्ट होने तक की पूरी प्रक्रिया में अनगिनत हानिकारक तत्व उत्सर्जित होते है जो वातावरण में मिल कर प्रकृति को प्रदूषित करते रहते हैं। आज से लगभग 150 वर्ष पहले अलेक्जेंडर पार्किस नामक वैज्ञानिक ने प्लास्टिक की खोज की थी। यह कार्बनिक रसायन के बहुलकीकरण से बनने वाला एक रासायनिक पदार्थ है। अविष्कार के आरंभिक दौर में इसे हाथों-हाथ लिया गया लेकिन आधुनिक समय में यह प्रकृति के लिए एक अभिशाप से कम नहीं हैं। आज प्लास्टिक का प्रयोग एक वैश्विक समस्या बन गयी है। इसके उत्पादन और प्रयोग पर प्रतिबंध की मांग पुरे विश्व में उठ रही है। दैनिक जीवन में इसके बढ़ते प्रयोग को लेकर चिकित्सक लगातार चेतावनियां जारी कर रहे हैं।
प्लास्टिक पर हुए नए शोध से पता चलता है कि इसके अधिक प्रयोग से कैंसर जैसी घातक बीमारियां भी हो सकती हैं। वर्तमान में विश्व में हर सेकंड 8 टन प्लास्टिक सामान का उत्पादन किया जा रहा है। हर वर्ष लगभग 60 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुंद्रों में जा रहा है जिससे जल प्रदूषण की समस्या और भी गहराती चली जा रही है। रंगीन प्लास्टिक से बने खिलौने बच्चों के लिए बहुत हानिकारक साबित हो रहे है क्योंकि खिलौनों के लिए बनाई गई प्लास्टिक में आर्सेनिक और सीसा जैसे जहरीलें तत्व मिले होते हैं। वैज्ञानिक शोधों में पाया गया है कि यदि प्लास्टिक बोतल में रखा पानी बहुत देर तक धूप में रखा रहे तो वह जहरीला हो जाता है। प्लास्टिक को रंग प्रदान करने के लिए उसमे कैडमियम , जस्ता जैसे विषैले पदार्थ मिलाये जाते हैं। ऐसे रंगीन प्लास्टिक से बने पालीथीन में सब्जियां और खाने पीने के अन्य सामान रखने से इसमें उपस्थित विषैले पदार्थ खाद्य पदार्थ में मिल जातें हैं, जो शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक होती है। कैडमियम की बहुत थोड़ी सी मात्रा शरीर में जाने से उल्टियाँ होने लगती है।
प्लास्टिक कचरा मनुष्य से लेकर पशु-पक्षियों सभी के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो रही हैं। प्लास्टिक कचरा ज़मीन में मिलने से जमीन की उर्वरा शक्ति दिन प्रतिदिन ख़त्म होती जा रही है। प्लास्टिक के अधिक सम्पर्क में रहने से महिलाओं में अनेक बिमारियों जैसे थैलेट्स का बढ़ना, प्रजनन अंग के रोग जैसे अनेक बीमारियों की सम्भावना बढ़ रही है। विस्फेनाल रसायन जो शरीर में मधुमेह लिवर एंजाइम को असन्तुलित कर देता है, प्लास्टिक बनाने में एक महत्वपूर्ण रसायन के रूप में उपयोेग होता है। प्लास्टिक कचरें के जलने से उत्पन्न होने विषैली गैसें श्वास संबंधी अनेक रोगों को जन्म देती है।
आज प्लास्टिक कचरे का दायरा बहुत व्यापक हो गया है। गाँव कस्बे या शहर से लेकर एवरेस्ट की चोटियों तक ये कचरा मौजूद है। भारत में प्रतिव्यक्ति 3 किलो कैरी बैग प्रतिवर्ष की खपत है जो कि एक बहुत बड़ी मात्रा है। यहीं कारण है कि आज देश के कूड़े-कचरे में 10% हिस्सा प्लास्टिक कचरे का है। हल्के कैरी बैग को रिसाइकिल भी नहीं किया जा सकता है। इसलिए कूड़ा बिनने वाले भी इसे नहीं उठाते हैं। प्लास्टिक और इसके कचरे से निपटने के लिए भारत सरकार प्रयासरत है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया की 40 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक इकाइयों के खिलाफ जुर्माने की राशि में वृद्धि करने के साथ ही बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक सम्बन्धी एक पायलट परियोजना पर काम किया जा रहा है, जिससे देश को प्लास्टिक कचरों से मुक्ति दिलाने में मदद मिलेंगी।
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