Thursday, 24 December 2015

जातिवाद और पितृसत्ता में पिसती स्त्री

अंकिता पाण्डेय 

नई दिल्ली में डब्लू एस एस (वोमेन अगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रेप्रेशन) द्वारा जातिवाद और पितृसत्ता का प्रतिरोध विषय पर  दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। इस समारोह में बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया । इस कार्यक्रम का उद्देश्य दलित महिलाओं पर हो रहे अत्याचार  एवं बढ़ते जातिवाद के बारे में लोगो को बताना एवं उनको इस समस्या के प्रति जागरूक करना था। इस कार्यक्रम का सबसे पहला सत्र शुरु हुआ जो की जातिवाद उन्मूलन?जनांदोलन और जाति का प्रश्न पे था। 
प्रथम सत्र को बताने के लिए सबसे पहली वक्त आई जिनका नाम कविता कृष्णन था जो की ऐपवा,नई दिल्ली से आई थी।इन्होंने कुछ बातें और जानकारी दी। कविता कृष्णन ने बोला की आज भी हमारे समाज में औरतों को बहुत कमजोर समझा जाता हैं। खास कर की दलित महिलाओं को इन् परेशानियों से रोज़ जूझना पड़ता हैं। उन्होंने अस्सी के दशक के बारे में बताया। की दलितों पर बहुत अत्याचार होते थे। इसका उन्होंने उधारण दिया की उस समय बिहार के किसानों से उनकी ज़मीन छीन ली जाती थी और उन्हें बोला जाता था की तुम नीचे वर्ग के हो और महिलाओं को बार -बार याद दिलाना की वो महिलां हैं। इसके लिए अनेक आन्दोलन हुए। उन्होंने बहुत सारे उदारण दिए। कविता जी ने बताया की तमिल नाडू में दलित लड़कियां हॉस्टल में पढ़ती हैं तो वहाँ की कोई भी लड़की किसी भी पुरुष से बात नहीं कर सकती। उस लड़की का कोई भी बॉय फ्रेंड आदि नहीं होना चाहिए। ऐसा वहां की सरकार के नियम हैं।
दूसरी वक्ता सुजाता सूर्यपल्ली जी ने कहा  कि जाति और जेंडर मामलों में कैसे सुधार करे. उन्होंने तेलंगाना मूवमेंट के बारे में बताया और साथ उस समय चले बहुत सारे मुद्दों और मूवमेंट के बारे में बोला। जैसे -स्टूडेंट मूवमेंट,पोलिटिकल मूवमेंट,ग्रुप ऑफ वोमेन मूवमेंट
और-दलित मूवमेंट के विषय में जानकारी दी. सुजाता जी ने तेलंगाना के समय जेंडर मुद्दे का उठना चाहा था । मगर सरकार ने कहा की पहले राज्य बन जाने दो फिर बात करेंगे। कोई भी जाति या जेंडर के मसले को गंभीरता से नहीं लेता। साथ ही उन्होंने कास्ट आर्गेनाइजेशन के बारे में बताया और कहा की जब तक वर्ग संघर्ष नहीं होगा तब तक जेंडर और कास्ट का कोई समाधान नहीं हो सकता। सबसे पहले वर्ग को समझना होगा। पुलिस सवाल जवाब ज्यादा करती हैं गालियाँ देती हैं, और तो और आपत्तिजनक शब्द भी बोलती हैं। उन दलित महिलाओं को जो अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास जाती हैं। उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। उन्होंने महिला नेतृत्व विकसित करने की बात भी कही और अन्य कई स्त्री मुद्दों पर भी बात की.
सुमति पी.के.,मेहनतकश महिला संगठन,से जो की दिल्ली से आई हुई थी। यह वक्ता दिल्ली में एक वर्कर्स के तौर पर कार्य करती हैं।
सुमति जी ने सबसे पहले बात लैंड एजेंट्स के बारे में कही और उन्होंने बहुत सारे विषयो पर चर्चा की-दलित माइनॉरिटी सेक्शन, डोमेस्टिक लेबर, मजदूर संगठन आदि. उन्होंने सामाजिक कार्यकर्त्ता अनुराधा जी के बारे में बताया की वह कहती  हैं की आर्थिक लड़ाई चलेगी तो जेंडर अपने आप खत्म  हो जाएगा।
सुमति जी ने आगे कहा की दलित तबको की लड़कियां जो पढ़ रही होती हैं उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता हैं और सुमति जी ने हरियाणा में हुए महिलाओं पर किये गये अत्याचार,महाराष्ट्र की पुलिस ने दो आदिवासी लडकियों से बलात्कार किया, बहुत बड़ा आन्दोलन चला । नारी आन्दोलन, पित्र संस्था, कुटुंब संस्था,  सोशल सिक्यूरिटी, 1987 में नार्थ इंडिया की दो महिला ने आपस में शादी कर ली तो सरकार ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था। दोनों दलित महिला थी। 1975 में स्त्री संगम शुरु हुआ था। जिसको दिसम्बर में 20 साल हो गये। उन्होंने एक सर्वे किया जो की डांस बार की महिलाओ पर था । 40 बार में काम करने वाली 500 महिलाओं। महिला मुंबई के बार में कार्य करती थी । वहाँ की सरकार ने उस डांस बार पर प्रतिबन्ध लगा दिया.आदि विषयों पर चर्चा की.
पुणे से आई कबीर कला मंच की ज्योति जगताप ने सबसे पहले लिटरेचर के बारे में बताया। फिर उन्होंने बाबा साहेब की किताब के बारे में बताया और कहा की बाबा साहेब कहते थे की उच्च शिक्षा बहुत जरुरी हैं न की पाप और प्रायश्चित। उन्होंने  कहा की डाइवोर्स के बाद गवर्मेंट की जिम्मेदारी बनती हैं की वह उन महिलाओं की जिम्मेदारी को समझे और उनकी समस्याओ का समाधान करे। रिजर्वेशन के बारे में  कहा की दलित महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए। अंतिम बात उन्होंने रामायण और महाभारत के बारे में कहा की इसमें भी कहीं न कहीं रामायण और महाभारत में भी महिलाओं के साथ बहुत अत्यचार और ज्यादती  की गयी। उन्होंने सीताजी का उदाहरण देकर अपनी बात को समाप्त किया। फिर दूसरा सत्र शुरु हुआ जो -जाती,जेंडर और श्रम पर आधारित था।
ऐपवा,पंजाब की इकबाल उदासी ने सबसे पहले पंजाब की स्थिति  के बारे में बताया की पंजाब में भी जेंडर और जाति का बहुत बड़ा भेद भाव हैं। उन्होंने मनरेगा के बारे में बताया। माईग्रेशन बहुत बढ़ गया हैं। सामाजिक शोषण, सांस्कृतिक शोषण आज बढ़ गया है,-किसानो की खुदकुशी के बारे में बात की. 
फिर आए दूसरे वक्ता जिनका नाम सोनल शर्मा जो की शोधार्थी हैं वो आंबेडकर विश्व विद्यालय से आये हुए थे। सोनल जी ने घरेलू बाते के बारे में बताते हुए शुरुआत की। उन्होंने बताया की वर्कर्स जो होते हैं वो कास्ट की वजह से अलग -अलग होते हैं। उन्होंने अपने रिसर्च के बारे में बताया ।untouchability,explotation,worker behaviours,domestic workers,humilation इन सब विषय के बारे में बताया ।और भी काफी महत्वपूर्ण बाते बताई.  एम्प्लोयी तय करते हैं की उन्हें कैसे वर्कर्स चाहिए। वो explotation की बात करते हैं humilation की नहीं। और सबसे ज्यादा छूआछूत  के विषय पर बोला और यह भी कहा की आज अधिकतर लोग अपनी पहचान छुपा कर काम करते हैं। इन सब विषय पर बोलकर उन्होंने अपनी बात को समाप्त किया।फिर आई वक्ता जिनका नाम दीपा टाक वो सावित्रीबाई फुले महिला अध्यन केंद्र,पुणे से आई थी। इन्होने बहुत सारी विशेष बातो का जिक्र किया।

वोमेन की सिचुएशन, नार्थ इंडिया के माइग्रेशन की बात बताई. महाराष्ट्र की कम्युनिटीज में इन्वोल्व लोगो के बारे में बताया। conversn के इतिहास के बारे में बोला। वाल्मीकि कम्युनिटीज के बारे में बोला और दीपा जी ने अंतिम बात यह कही की सोशल और कल्चर में जो भी बदलाव हुए हैं तो वो आगे दिखाई देंगे। उन्होंने रेलवे सेक्टर का उधारण देते हुए यह बात को समाप्त किया और कहा की 2013-2014 में बहुत सारे एरियाज में आदमियों के काम औरतो ने किये।और कहा की कई बार तो टॉयलेट साफ़ करते हुए वहाँ अगर कोई मेल अन्दर आ जाये तो कोई matter नहीं करता। वाल्मीकि कम्युनिटी में ज्यादा धर्म परिवर्तन हुए हैं जो की मुस्लिम और क्रिस्चियन से हुए हैं। यह बात कहकर उन्होंने अपनी बात को समापं की तरफ बढ़ी और थोड़े बहुत और विषयों के बारे में बोलकर अपने विचारो को समाप्त किया। वशुधा रतवाल शोधार्थी दिल्ली वि. वि.ने अपने अनुभवों को शेयर किया । 1929 की बाते बताई क्लास, कास्ट और जेंडर के बारे में बोला।
मक्रना शहर जो राजस्थान में हैं वहाँ के बारे में बताया की वहाँ स्टोन मिलिंग और गिट्टी फोड़ने का काम होता हैं। डेली वेजेज रुपया 150 हैं लेकिन कास्ट आते ही उनका रुपया 130 दिया जाता हैं। दलित महिलाओं के साथ यह सब होता हैं उन्हें पैसे कम तथा देर में दिए जाते हैं। उनसे गिट्टी फोड़ने के काम करवाए जाते हैं। स्टोन पॉलिशिंग का काम उच्च वर्ग की महिलाओं को दिया जाता हैं। यह सब वहाँ के मालिक करते हैं। बहुत भेदभाव करते हैं। दलित महिलाओं को क्लास स्ट्रगल,जेंडर स्ट्रगल को बहुत फेस करना पड़ता हैं। फिर उन्होंने ऍम पी की बात बताई जहां डायमंड की खदानों में भेद भाव होता है. उच्च वर्ग की महिलाओं को डायमंड चुनने को कहते हैं और दलित महिलाओं को कहते हैं तू नहीं करेगी तू चुरा लेगी। बहुत ज्यात्ति करते हैं। उन्होंने दलितों के बारे में कुछ और शब्द बोलकर अपने विषय को समाप्त किया।
 डी सरस्वती सामाजिक कार्यकर्त्ता जो आदकारा एवं लेखिका हैं जो की कर्नाटक से आई थी । इन्होने एक बहुत अच्छी स्टोरी सुनाई नर्शिमा ओखले।
इस आयोजन का तीसरा और अंतिम सत्र-यौन हिंसा के रूप में उत्पीड़न अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून का औजार विषय था. इस विषय पर डॉ प्रसाद  ने कहा की कानून जब बनेगा उसका कैसे क्रियावान हो इस पर चिंता व्यक्त किया.  Humilation,untouchability,men- women different time के बारे में बताया । 2006 के हुए रेप के बारे में कहा और कहा की 68% दलित महिलाओं के केस पुलिस स्टेशन नहीं आते और 27%के फैसले पंचायत में होते हैं । कोई सुनवाई नहीं और तो और उन्हें शक की विशेष नजरो से देखा जाता हैं। उनके लिए कोई प्रोटेक्शन नहीं और न ही कोई एक्शन लिया जाता हैं। अंत में दहेज़ कानून में आईपीसी एक्ट दुरपयोग हो रहा है. आज महिलाओ पर तेजाब हमले और दुराचार हो रहा है इन मामलो की उपेक्षा हो रही है. 

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