Wednesday, 13 April 2016

सदन में शहीदे आज़म – २

असगर वज़ाहत 
एक दिन फिर सदन में शहीदे आज़म आ गए. गेट पर खड़े, किसानों के बेटों, सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें पहचान लिया . सम्मान से उन्हें सैलूट किया और अन्दर जाने दिया. सदन में लोग शहीदे आज़म को नहीं पहचान पाए. 
एक सदस्य ने उनसे पूछा- तुम कहाँ से इलेक्शन जीत कर आये हो ?
दूसरे ने पूछा – तुम्हारा धर्म क्या है ?
तीसरे ने पूछा – तुम्हारी जाति क्या है?
चौथे से पूछा – तुम्हारा नेता कौन है?
शहीदे आज़म ने कहा – आप लोग मुझे नहीं पहचानते ?
पूरे सदन ने उन्हें गौर से देखा. लम्बा कद, औसत बदन, सर पर फ्लैट हैट, पतली - पतली नोकदार मूछें, आखों में अपार तेज, चेहरे पर हिमालय जैसा विश्वास.
एक सदस्य ने कहा – हम में से कोइ भी तुमको पहचान नहीं सका.
शहीदे आज़म ने कहा- क्या तुमने इतिहास की किताबों में मेरे बारे में नहीं पढ़ा?
सदन ने कहा- हमने इतिहास की किताबें बदल दी हैं ..जो नयी किताबें लगी हैं उनमें तुम्हारे बारे में कुछ नहीं लिखा है.
शहीदे आज़म ने कहा- मैं तेईस साल की उम्र में देश को आज़ाद कराने के लिए फांसी पर चढ़ा था.
सदन ने कहा- तुम देश से प्रेम करते हो ?
शहीदे आज़म ने कहा- देश को आज़ाद कराने के लिए मैंने सदन में बम फेंका था.
सदन ने कहा- प्रमाण दो कि तुम देश से प्रेम करते हो ?
शहीदे आज़म ने कहा- लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए मैंने अंग्रेज़ पुलिस ऑफिसर जॉन सांडर्स की हत्या की थी. मैंने जेल में एक सौ चौदह दिन की भूख हड़ताल की थी.
सदन ने कहा- फिर भी क्या प्रमाण है की तुम देश से प्रेम करते हो ?
शहीदे आज़म ने कहा- मैंने जो भी किया है उसे तुम देश प्रेम नहीं मानते ?
सदन ने कहा- नहीं.
शहीदे आज़म ने कहा- फिर ...
सदन ने कहा- भारत माता की जय बोलो तो हम मानेंगें कि तुम देश से प्रेम करते हो.
शहीदे आज़म ने कहा- क्या देश अब तक आजाद नहीं हुआ है ?
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• लगभग तीन साल पहले मैंने ‘सदन में शहीदे आज़म’ नामक एक कहानी लिखी थी जो मेरे कहानी संग्रह ‘पिचासी कहानियाँ’ में संकलित है.
नोट- असगर वज़ाहत के फेसबुक वाल  से साभार 

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