हमारा गांव और हमारा राज का नारा देने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डाॅ ब्रहमदेव शर्मा वन अधिकार दिवस के अवसर पर स्मरण करते हुए तमाम संगठनों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिल्ली स्थिति गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। जिसमें देशभर से आए भूमि अधिकार आंदोलन से जुडें सभी कार्यकर्ताओं, किसानों और मजदूरों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरूआत में बीडी शर्मा को याद करते हुए निशांत के साथी ने बृजमोहन के गीत ‘सहते सहते मरने से अच्छी है लडाई, ओ भाई हाथ उठा, ओ बहना हाथ उठा’ से की। सूनीलम जी ने उनके व्यक्तित्व, जीवन और कार्यो पर प्रकाश डाला। एक प्रशासनिक अधिकारी होने के बावजूद वे एक सहज और सरल व्यक्ति थे। जिन्होंने आदिवासियों, दलितों और किसानों के हक के लिए काम किया। उनका कहना था कि ग्रामसभा संसद से भी ऊपर है।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने इस मौके पर बीडी शर्मा को याद करते हुए कहा कि जब वह बस्तर में कलेक्टर थे तब उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा उस क्षेत्र में जंगल काट कर देवदार के वृक्ष लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया। किसी भी समस्या का विकल्प ढूंढ लेने की उनमें अदभुत क्षमता थी। उन्होंने पेशा कानून को पांचवी अनुसूचि में जोड़ने का काम भी किया। आंदोलन के प्रति उनकी सोच बहुत गहरी थी। वह महीन और बडे़ स्तर की हर तरह की बात सोचते थे। वह किसान-मजदूर, शहर-मजदूर और गैरबराबरी के मुद्दे पर अक्सर बात करते थे। गैर बाराबरी की जड़ कहां है उसकी गहराई में उतरने की कोशिश करते थे। उन्होंने अब तक जो गरीबो, आदिवासियों और किसानों के हित में जो भी काम किया वह अतुलनीय है।
वरिष्ठ पत्रकार अरूण कुमार त्रिपाठी ने बताया कि अधिकारियों के बीच में आदिवासी और आदिवासियों के बीच में अधिकारी होने के द्वन्द को उन्होंने मिटा दिया था। उनके विचारों को साकार करने की जरूरत है।
स्वामी अग्निवेश ने बताया कि वह बडे़ पद पर रहे मगर उन्होंने सरलता से जीवन जिया और गरीबों के लिए काम किया। उनकी किताब ‘अनब्रोकन चेन आॅफ ब्रोकन प्रामिसेश’ सत्ताप्रतिष्ठानों की पोल खोलती है। गांव से पलायन को रोका जाना चाहिए नष्ट हो रही खेती किसानी को बचाने का प्रयास करना होगा। हमें उनके आदर्शो को संकल्प के रूप लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
अनिल सद् गोपाल ने बताया कि जिन दिनों बीडी शर्मा मध्य प्रदेश में अधिकारी थे उन्होंने वहां के 15 सरकारी स्कूलों में विज्ञान को वैज्ञानिक ढंग से पढ़ाने के कार्य में मदद की।
पंकज पुश्कर ने कहा कि बीडी शर्मा ने धरती को सजाने संवारने, मुनष्य को गरिमा के साथ जीने का रास्ता ही नहीं दिखाया बल्कि उसपर चलना भी सिखाया है। उनके सपने, विचार, संघर्ष नए शिरे से आगे बढ़गें। उन्होंने ग्राम पंचायत और पंचायती राज के महत्व को समझाया। वह अक्सर कहते थे ‘बी प्रेक्टिकल एंड थिंक इम्पासिबल’।
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक चैधरी ने बताया कि वह मुख्यधारा के प्रशासक थे और मुख्यधारा की राजनीति पर विश्वास रखते थे। गांव और समाज की राजनीति को बदलना चाहते थे।
समाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र रवि ने बताया कि उनका मानना था कि जब तक संसाधनों का विकेन्द्रीकरण और गरीबी पर चिंतन नहीं करेगें तब तक आप गरीबी नहीं मिटा सकते। उनकी चिंतन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। इन दिनों चिंतन वाला भाव चिंता में खोता जा रहा है। उनकी सामग्री और धरोहर को आगे ले जाना होगा। उनका विचार सभी आंदोलनकारी समूहों का विचार बने।
सामाजिक कार्यकर्ता रोमा ने कहा कि वनाधिकार और पेशा कानून बनाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। वे हमेशा गैरबराबरी को मिटाने की बात करते थे।
देवी सक्सेना ने कहा कि उन्होंने हमेशा अपनी वर्ग पहचान को नकारा। वह दो लड़ाईयां एक साथ लड़ रहे थे सरकार के बाहर और सरकार के भीतर।
डाॅ ब्रहमदेव शर्मा ने भारत जन-आंदोलन नामक संगठन बनाकर देशभर में जल, जंगल एवं जमीन के मुद्दे पर चल रहे संघर्ष को एकजुट करने का प्रयास किया।
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