संदीप कुमार राय
स्वर्गीय कथाकार कमलेश्वर का उपन्यास "कितने पाकिस्तान" वाकई में मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय की एक दस्तक है. उपन्यास की कामयाबी इस लिहाज से है कि कमलेश्वर ने मानसिक, वैचारिक, भावनात्मक, सामाजिक और राजनितिक किसी तरह की हदबंदी को कबूल नही किया है. उपन्यासकार ने अपनी रचनाशीलता को उन्मुक्त अभिव्यक्ति की राह दिखाई है. इसीलिए इतिहास की सच्चाई कितने पाकिस्तान में एक दस्तावेज की तरह सुरक्षित लगती है. भारत और पाकिस्तान के विभाजन पर कितना कुछ लिखा गया, जाने कितने पन्ने रँगे गए, लेकिन दुख है कि कम ही नहीं होता ! हर किताब विभाजन की त्रासदी को अलग-अलग रूपों में बयान करती है. इसके अलावा सँस्मरणों की तो भरमार है. मगर इसी क्रम में सन् 2000 में प्रकाशित उपन्यास कितने पाकिस्तान ने उस पूरी परिघटना को देखने की एक नई नजर दी है और दुखों को कुरेदने के साथ नए सिरे से सोचने पर मजबूर भी किया है. यह सम्भव है कि कुछ विशेष विचारधारा के लोग कमलेश्वर के वैचारिक स्वतंत्रता को गुमराही के नजरिये से देख सकते हैं.
इस उपन्यास में कमलेश्वर ने इतिहास और भूगोल की सीमाओं को तोड़ने का प्रयास कर मनुष्य की वास्तविक समस्याओं एवं चिंताओं को सामने रखने का सफल प्रयास किया है. इस पुस्तक के प्रथम संस्करण की भूमिका में कमलेश्वर ने लिखा है कि ’मेरी दो मजबूरियाँ भी इसके लेखन से जुड़ी है. एक तो यह कि कोई नायक या महानायक सामने नहीं था, इसलिए मुझे समय को ही नायक, महानायक और खलनायक बनाना पड़ा.’ इस उपन्यास ने आज के टूटते मानवीय मूल्यों को सँजोने तथा दहशत की जिंदगी में मानवता की खोज की है. यह उपन्यास उन लोगो का हलफनामा है जिन्होंने कभी किसी को कुछ नुकसान नहीं पहुँचाया, लेकिन जिनका पूरा जीवन कुछ लोगों के अंधे स्वार्थों की बलि चढ़ गया हो. यह साँप्रदायिक झगड़ों में खत्म हुए हर मृत व्यक्ति की दास्तान है जो आने वाली समूची मानवता से सवाल कर रहा है कि अब और कितने पाकिस्तान? साथ ही साथ कमलेश्वर ने वर्तमान में बढ़ता हुआ बाजार, मुक्त व्यापार के नाम पर नव साम्राज्यवाद की स्थापना पर भी गहरी चिंता व्यक्त किया है. भुमंडलीकरण के इस दौर में नदारद हो गयी मानवता जैसे प्रश्नों को लेखक ने वक़्त और इंसानी अदालतों के सामने रखा है. एक तरफ कमलेश्वर ने बड़े ही कठोर शब्दों में अंग्रेजों के कूटनीति का भी पर्दाफाश किया है वही दूसरी तरफ धर्म के ठेकेदारों और धार्मिक कट्टरता पर गहरी चोट की है, .यहाँ तक की कमलेश्वर ने बाबर से लेकर औरंगजेब के क्रूर काल को गवाह के रूप में उपस्थित कर उन मुर्दों को इंसानी समय के अदालत में पेश किया जिन्होंने भारतीय इतिहास और संस्कृति को एक नया मोड़ दिया था . "उपन्यास मेरे मन के भीतर लगातार चलने वाली एक जिरह का नतीजा है" यह कथन कमलेश्वर का उपन्यास के बारे में था और उपन्यास में यह बेचैनी साफ नजर आती है. आज के दहशतवाद और पूँजीपतिवाद की दुनिया में कमलेश्वर जैसा मानवीय संवेदना में डूबा हुआ रचनाकार विरलय ही पैदा होते हैं. यह उपन्यास विभाजन की त्रासदी पर लिखा गया महत्वपूर्ण दस्तावेज है.
उपन्यास- कितने पाकिस्तान
लेखक- कमलेश्वर
प्रकाशन- राजकमल एंड सन्स, दिल्ली.
मूल्य- 169
पृष्ठ-364
इस उपन्यास में कमलेश्वर ने इतिहास और भूगोल की सीमाओं को तोड़ने का प्रयास कर मनुष्य की वास्तविक समस्याओं एवं चिंताओं को सामने रखने का सफल प्रयास किया है. इस पुस्तक के प्रथम संस्करण की भूमिका में कमलेश्वर ने लिखा है कि ’मेरी दो मजबूरियाँ भी इसके लेखन से जुड़ी है. एक तो यह कि कोई नायक या महानायक सामने नहीं था, इसलिए मुझे समय को ही नायक, महानायक और खलनायक बनाना पड़ा.’ इस उपन्यास ने आज के टूटते मानवीय मूल्यों को सँजोने तथा दहशत की जिंदगी में मानवता की खोज की है. यह उपन्यास उन लोगो का हलफनामा है जिन्होंने कभी किसी को कुछ नुकसान नहीं पहुँचाया, लेकिन जिनका पूरा जीवन कुछ लोगों के अंधे स्वार्थों की बलि चढ़ गया हो. यह साँप्रदायिक झगड़ों में खत्म हुए हर मृत व्यक्ति की दास्तान है जो आने वाली समूची मानवता से सवाल कर रहा है कि अब और कितने पाकिस्तान? साथ ही साथ कमलेश्वर ने वर्तमान में बढ़ता हुआ बाजार, मुक्त व्यापार के नाम पर नव साम्राज्यवाद की स्थापना पर भी गहरी चिंता व्यक्त किया है. भुमंडलीकरण के इस दौर में नदारद हो गयी मानवता जैसे प्रश्नों को लेखक ने वक़्त और इंसानी अदालतों के सामने रखा है. एक तरफ कमलेश्वर ने बड़े ही कठोर शब्दों में अंग्रेजों के कूटनीति का भी पर्दाफाश किया है वही दूसरी तरफ धर्म के ठेकेदारों और धार्मिक कट्टरता पर गहरी चोट की है, .यहाँ तक की कमलेश्वर ने बाबर से लेकर औरंगजेब के क्रूर काल को गवाह के रूप में उपस्थित कर उन मुर्दों को इंसानी समय के अदालत में पेश किया जिन्होंने भारतीय इतिहास और संस्कृति को एक नया मोड़ दिया था . "उपन्यास मेरे मन के भीतर लगातार चलने वाली एक जिरह का नतीजा है" यह कथन कमलेश्वर का उपन्यास के बारे में था और उपन्यास में यह बेचैनी साफ नजर आती है. आज के दहशतवाद और पूँजीपतिवाद की दुनिया में कमलेश्वर जैसा मानवीय संवेदना में डूबा हुआ रचनाकार विरलय ही पैदा होते हैं. यह उपन्यास विभाजन की त्रासदी पर लिखा गया महत्वपूर्ण दस्तावेज है.
उपन्यास- कितने पाकिस्तान
लेखक- कमलेश्वर
प्रकाशन- राजकमल एंड सन्स, दिल्ली.
मूल्य- 169
पृष्ठ-364
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