मीनू त्रिपाठी की एक कविता
यही कहते है न सब
सौभाग्य से जन्म लेती
और....
दुर्भाग्य से बड़ी होती
और....
दुर्भाग्य से बड़ी होती
जब उड़ना चाहती तो
बंदिशो में कैद पाती
बंदिशो में कैद पाती
इच्छा करती तो...सुनती
लड़की हो ! लड़की !...
लड़की हो ! लड़की !...
कदम कदम पर त्याग करती
एक इकरार करती तो....
दुनिया उस पर वार करती
एक इकरार करती तो....
दुनिया उस पर वार करती
फिर वह यही सुनती
लड़की ! हो लड़की !...
लड़की ! हो लड़की !...
ज़िन्दगी वो मादा पक्षी जीती है ...पर
उड़ने के बाद वो घर लौट आती है
मादा ही तो है कोई कैद कर लेगा।
यही तो कहते है न सब
लड़की ! हो लड़की ?
उड़ने के बाद वो घर लौट आती है
मादा ही तो है कोई कैद कर लेगा।
यही तो कहते है न सब
लड़की ! हो लड़की ?
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