पोलो मैदान के बाहर शाखा लगती थी। रामबालक जी हमें लाठी भांजना सिखाते थे। सब मिल कर संस्कृत में एक प्रार्थना गाते थे, नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिंदूभूमे सुखम वर्धितोहम्। कुछ गीत थे, जो गाये जाते थे। एक गीत की धुन बहुत अच्छी थी - चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है; हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा बच्चा राम है। नियम से ध्वजारोहण होता था और भगवा झंडे के नीचे हम व्यायाम करते थे। चित्त को लुभाने का सारा इंतज़ाम था। एक बार गुरुपूर्णिमा के दिन राजमैदान में आधी रात को सामूहिक शाखा लगी। ज़िले भर के लड़के आये थे। चांद चमक रहा था और बिना बिजली-बत्ती के हम आसपास के चेहरे देख पा रहे थे। सब पंक्तियों में बैठे। सबको केले के पत्ते पर खीर परोसी गयी। सबने खीर खायी और भोर होने से पहले घर लौट आये।
जोश ऐसा था कि उन दिनों मेरी नींद सुबह चार बजते-बजते खुल जाती थी। शहर को जगाने के लिए मैं शाखा कार्यालय से एक भोंपू ले आया था। रोज़ सुबह भोंपू बजाते हुए गलियों में निकल जाता। एक बार तो शाहगंज (बेंता) के अपने डेरा (किराये का घर) से दौड़ते हुए गांव चला गया और भोंपू बजाने लगा। बुलाकी साव उस दिन चुनिया भैया के दालान पर सो रहा था। सबसे पहले उसी की नींद खुली। वह बड़बड़ाते हुए उठा। उस वक्त मैं महाकाली पुस्तकालय के पास खड़ा था। मुझे देखते ही उसकी त्यौरी चढ़ गयी। दौड़ कर मेरे पास आया और मेरा गला दबोच लिया। अपने प्रिय व्यक्ति का यह बर्ताव देख कर मैं सन्न था। उसने मेरे हाथ से भोंपू छीन लिया। फिर मुझे धक्का देते हुए चिल्लाया, 'आज के बाद अगर गांव की नींद ख़राब की, तो उठा के बागमती में फेंक देंगे।'
उस दिन मैं शाखा नहीं गया। दोपहर में बुलाकी साव डेरा आया। मैंने उसे देखा और उठ कर जाने लगा। उसने हाथ पकड़ कर रोक लिया। मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, मगर उसकी पकड़ मज़बूत थी। उसने मुझसे शाखा के बारे में पूछा। मैंने बताया कि देश का नवनिर्माण शाखा ही करेगी। मैंने देखा, बुलाकी साव की आंखों में मेरे लिए प्रशंसा उतर आयी थी। उसने कहा कि शाखा जाति का भेद तो नहीं करती है? मैंने कहा, न जाति का भेद करती है, न धर्म का भेद करती है। फिर उसने पूछा कि क्या वो और उसके कुछ दोस्त शाखा में शामिल हो सकते हैं? मैं खुश हो गया, क्योंकि शाखा में नये लोगों को जोड़ने पर तरक्की मिलती थी। मैंने बुलाकी से कहा कि कल सुबह छह बजे पोलो मैदान के पास आ जाना। बुलाकी ने कहा, 'ठीक है' और चला गया।
अगली सुबह वह पांच लड़कों के साथ आया। मैंने आगे बढ़ कर बुलाकी साव और उन लड़कों का स्वागत किया। सब प्रार्थना में शामिल हुए। सबसे व्यायाम किया। सबने लाठी भांजी। सबने मिल कर गीत गाया। आख़िर में सब गोल घेरे में बैठे और परिचय सत्र शुरू हुआ। सबसे पहले बुलाकी ने अपना परिचय दिया और फिर बाक़ी लड़कों ने अपने नाम बताये। मैंने देखा कि उन लड़कों का नाम सुनते ही रामबालक जी का उत्साह ठंडा पड़ गया है। उन लड़कों के नाम थेे इख़लाक़़, साहिल, जब्बार, शौक़त और हिलाल। रामबालक जी उठ कर खड़े हो गये और उस दिन की शाखा भंग कर दी गयी। आमतौर पर शाखा के बाद वह हमें लहेरियासराय टावर के पास जलेबी खिलाते थे, लेकिन उस दिन उन्होंने अपनी साइकिल उठायी और बिना कुछ बोले चले गये।
रामबालक जी के जाने के बाद बुलाकी साव ने मुस्कराते हुए मेरी ओर देखा। मेरा सिर झुका हुआ था। उसने ठुड्डी पकड़ कर मेरा चेहरा उठाया। कहा कि कुछ चीज़ें सबके लिए नहीं होतीं, सिर्फ कुछ लोगों के लिए होती हैं। देश जगाना है मुन्ना, तो देश के लिए सोचो। एक देश में सबके लिए जगह होनी चाहिए। मैंने हां में सिर हिलाया। उस दिन बुलाकी साव ने मुझे और उन पांच लड़कों को लहेरियासराय टावर के पास जलेबी खिलायी। उस दिन के बाद मैं कभी शाखा नहीं गया। उस दिन बुलाकी साव ने यह कविता मुझे सुनायी।
ताड़ के ऊंचे शिखर के पार चम चम चांद
सतह पर कुछ झूमते मदहोश छम छम लोग
सतह पर कुछ झूमते मदहोश छम छम लोग
बांट बखरे की हवा चट्टान सी गूंजी
पेट काटा था, जमा की थी ज़रा पूंजी
एक दिन चाकू दिखा कर ले गये सपनेे
ले गये उम्मीद और विश्वास के गहने
पेट काटा था, जमा की थी ज़रा पूंजी
एक दिन चाकू दिखा कर ले गये सपनेे
ले गये उम्मीद और विश्वास के गहने
नगाड़ों से बज रहे हैं यहां ढम ढम लोग
सतह पर कुछ झूमते मदहोश छम छम लोग
सतह पर कुछ झूमते मदहोश छम छम लोग
उड़ रही है आंख के आगे बहुत अफवाह
छिप गयी है सामने से रोशनी की राह
एक दीया तुम जलाओ एक दीया हम
दहिने बाएं दहिने बाएं दहिने बाएं थम
छिप गयी है सामने से रोशनी की राह
एक दीया तुम जलाओ एक दीया हम
दहिने बाएं दहिने बाएं दहिने बाएं थम
धड़कनों सी अनवरत रफ्तार धम धम लोग
सतह पर कुछ झूमते मदहोश छम छम लोग
(अविनाश दास के फेसबुक वाल से साभार)
सतह पर कुछ झूमते मदहोश छम छम लोग
(अविनाश दास के फेसबुक वाल से साभार)
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