Friday, 1 July 2016

हिरोशिमा बनते देश

संदीप कुमार 
"न्यूक्लिअर सप्लायर ग्रुप " यानी N S G कितना ताकतवर नाम लगता है न, आज हम कैसे सवालों में जी रहे हैं की बिना बम के सुरक्षा कैसी ? अगर हमारे पडोसी के पास बम हैं तो हमारे पास क्यूँ नही ? क्या हम बम बनाकर ज्यादा सुरक्षित हैं ? अगर ऐसा है तो फिर तो सभी देशों को बम बनाना चाहिए और हिरोशिमा और नागासाकी जैसी प्रयोगशालाओं में उसका प्रयोग भी करना ही चाहिए. हम सब को याद तो होगा ही हिरोशिमा में नाभिकीय ऊर्जा के विस्फोट की घटना, हिरोशिमा पर जो परमाणु बम गिराया गया था क्या वो युद्ध समाप्त करने के नाम पर सोचा समझा परीक्षण नही था ? वो हिरोशिमा पर ही नही पूरी मानव जाति पर किया गया जघन्यतम आक्रमण था. जिसने हिरोशिमा और नागासाकी के भूगोल को ही बदल दिया. वो एक परमाणु शक्ति का प्रदर्शन ही तो था जिसने न जाने कितनी माँओं की कोख में अजन्मी संतानों को विकलांग बना दिया, अपने प्रचण्ड तापमान में वाष्प की तरह पिघलाकर लाखों मनुष्यों को उड़ा दिया. उस परीक्षण में  हिचकी लेती और हिचक-हिचक कर न जाने कितनी ज़िन्दगीयों ने दम तोड़ा था. हमें उस हिरोशिमा और नागासाकी ही नही बल्कि फुकुशिमा और चेर्नोबिल को भी
देखना चाहिये जिसने खुद मानव विनाश को देखा है और फिर गर्व से आगे बढ़ते हुए हमे और ताकतवर बनना चाहिए. सभी देशों की तरह अगर हम सब अपने - अपने घरों में भी बन्दूक और पिस्तौल रखने लगे तो कितना सुरक्षित महसूस करेंगे हम सब ? हमने परमाणु शस्त्रों के निर्माण के लिए बडी संख्या में वैज्ञानिकों को लगा रखा है हम एक लक्ष्य तय करते हैं कि हम एक सिमित संख्या में शस्त्र बनाएंगे. इस काम में हमको ज्यादा वक़्त नही लगता कुछ सालों में ही हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं फिर हम उन वैज्ञानिकों का क्या करें जो परमाणु शास्त्रों के निर्माण में लगे हुए थे ? हमने उसके लिए भी एक विकल्प रखा परमाणु ऊर्जा का. परमाणु ऊर्जा बिजली उत्‍पादन का असाधारण रूप से महंगा और अस्‍वीकार्य रूप से जोखिम भरा तरीका है. सभी विद्युत संयंत्र मानव भूलों, प्राकृतिक आपदाओं और डिजायन की विफलता के खतरे के दायरे में आते हैं. परमाणु ऊर्जा के साथ दुर्घटनाओं का एक बहुत बड़ा जोखिम जुड़ा है. इसके प्रभाव भयानक लंबे समय तक रहते हैं. यह समय सिद्ध है कि परमाणु ऊर्जा न तो साफ सुथरी है और न ही सस्ती! इसके अलावा दुर्घटना की स्थिति में होने वाले विनाश का आकलन कर पाना भी कठिन है. इसके विकिरण सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में विद्यमान रहेंगे और मानवता को नुकसान पहुंचाते रहेंगे. लेकिन हमारे राजनीतिज्ञ इसको अंतिम विकल्प के रूप में देखते हैं. लेकिन परमाणु ऊर्जा के संयंत्रों की दुर्घटनाएं इतनी गंभीर हो सकती हैं, की उनसे  व्यापक व दीर्घकालीन क्षति हो सकती है. इतिहास इसका गवाह रहा है. 
चेरनोबिल दुर्घटना के असर के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ की परमाणु विकिरण पर गठित वैज्ञानिक समिति ने बताया था कि इसके कारण कैंसर के 34000 से 140000 अतिरिक्त मामले सामने आए, जिनसे 16000 से 73000 मौतें हुईं. अब तो लगता है की परमाणु ऊर्जा से हुए हादसे का नुकसान जानने के लिए केंद्रीय कैबिनेट की बैठक फुकुशिमा और चेर्नोबिल में होनी चाहिए. नासमझी की हद तो तब होती है जब भारत में परमाणु रिएक्टर बेचने को इच्छुक अमेरिकी कंपनी जेनरल इलेक्ट्रिक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कहना है कि परमाणु ऊर्जा दूसरे संसाधनों के मुकाबले इतनी अधिक महंगी है कि इसे ‘न्यायोचित ठहराना मुश्किल’ है. वास्तविकता तो यह है की अधिकांश देश ऊर्जा के प्रमुख स्रोत गैस और पवन ऊर्जा की ओर रुख कर रहे हैं. सही रूप से देखा जाए तो आज की दुनिया गैस और पवन ऊर्जा की है. अतीत को अगर देखा जाय तो ये डर केवल भारतीय आम नागरिक का ही नही बल्कि श्रीलंका ने दक्षिण भारत में स्थित परमाणु बिजली घरों को लेकर चिंता का इजहार किया था. श्रीलंका के बिजली और ऊर्जा मंत्री चम्पिका रणवाका ने  2012 में कहा था की कोलम्बो भारत के किसी परमाणु बिजली घर में दुर्घटना की स्थिति में श्रीलंका पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित है. दोनों देशों को समुद्र की एक बारीक रेखा अलग करती है.

अब सवाल यह है की जिस तरह की ऊर्जा की तरफ हम इतनी तेज़ी से आकर्षित हो रहे हैं उसकी ज़रूरत हमे किस कदर है.

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