Saturday, 20 August 2016

आभाव ग्रस्त गाँव में स्वतंत्रता दिवस के मायने

बिपिन बिहारी दुबे 
१५ अगस्त की सुबह जब देश आजादी का ७० वां वर्षगांठ मना रहा था. माननीय प्रधानमंत्री जी  ने दिल्ली के लाल किले से तिरंगा झंडा फहराया और राष्ट्र को संबोधित किया. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ देश के हर वर्ग के लोग प्रधानमंत्री के संबोधन को उम्मीद लगाये सुन रहे थे. कश्मीर में सेना के जवान देश की सुरक्षा के खातिर तैनात थे. गुजरात के ऊना में दलित मुक्ति को लेकर रैली अपनी आवाज बुलंद कर रही थी. देश के लगभग हर स्कूल के बच्चे स्वतंत्रता दिवस समारोह जश्न में डूबे थे. मैं उस समय राजस्थान के उदयपुर जिले के झाड़ोल ब्लॉक के पालावाड़ा गाँव में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के साथ स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने की तैयारी कर रहा था. देश की राजधानी से लगभग 650 किलोमीटर स्थित पालावाड़ा गाँव की आबादी ६०० के करीब है. छोटी-छोटी पहाड़ियों पर बसे होने के कारण यहाँ जनसंख्या का घनत्व काफी कम है. इसलिए विद्यालय तक आने के लिए बच्चों को 4-5 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने पड़ती है. 

आम तौर पर विद्यालय के दिनों में समय(सुबह 8 बजे) होने पर भी देरी से आने वाले बच्चे भी आज सुबह 7 बजे विद्यालय में उपस्थित थे. आज़ादी के राष्ट्रवादी नजरिये से अनजान बच्चे आज एक दूसरे को निहार कर बहुत प्रसन्न थे. क्योंकि इन बच्चों का देश झाड़ोल के रास्ते चलकर उदयपुर तक सिमट जाता है तो कभी-कभी ये राजस्थान तक भी चला जाता है. बच्चों की प्रसन्नता का एक कारण यह भी था कि आज(15 अगस्त) के दिन उन्हें विद्यालय की नियमित गतिविधि से हटकर पैदल मार्च, पीटी-परेड, नृत्य-संगीत और कई कार्यक्रम देखने को मिलेंगे. खाली पैर कई किलोमीटर चलकर आने वाले बच्चे मार्च को लेकर जितने उत्साहित थे शिक्षक उतने ही सीमित होना चाहते थे. बिना किसी पूर्व तैयारी के मार्च निकला जहाँ बच्चे अपने बालपन का स्पष्ट प्रदर्शन किये. भारत माता की जय, जय जवान-जय किसान, जब तक सूरज चाँद रहेगा पालावाड़ा नाम रहेगा आदि नारों के बीच बच्चों ने सुबह के मार्च को पूरा किया.  झंडोत्तोलन कार्यक्रम के बाद पीटी-परेड, ख़ास तौर पर सूर्य नमस्कार ने वहाँ उपस्थित समुदाय के लोगों को भी आकर्षित किया. बच्चे आज जितना हो सके तैयारी के साथ नजर आ रहे थे. बच्चे हाथ में तीरंगे का पट्टा बाँध कर आये थे. पर यहाँ भी इनकी मासूमियत बाजारवाद की ठगी का शिकार हो गयी. दुकानदार ने केसरिया की गाढ़े संतरे रंग के पट्टे का बना तिरंगा इन्हें दे दिया था.

विद्यालय के प्रधानाध्यापक समारोह के अन्दर जिम्मेदार भूमिका निभा रहे थे. राष्ट्रध्वज को तैयार करते वक्त उन्होंने याद दिलाया देखिएगा दुबेजी आजकल तिरंगा यात्रा के नाम पर लोग उल्टा तीरंगा लटकाकर निकल पड़ते हैं. बाद में सोशल मीडिया पर खूब खिल्ली उड़ती है. उनके इस बात से यह तो स्पष्ट था कि देश में चल रही विकास योजनाएं यहाँ तक पहुंचे या नहीं सोशल मीडिया यहाँ तक ज़रूर पहुंच चुका है. शिक्षकों के बीच तालमेल का अभाव था. जो किसी तरह इस कार्य को संपन्न करने में लगे थे. कार्यक्रम के दौरान बच्चे पहले से अपना नाम लिखवाने के बावजूद पीछे हट रहे थे. जिसका कारण तैयारी की कमी के रूप में उभर कर आया. प्रधानाध्यापक ने बताया कि 3-4  दिन लगातार बारिश होने के कारण तैयारी का समय नही मिल पाया. ध्यान रहे कि बारिश के दिनों में विद्यालय भवनों के छत से पानी टपकना आम बात है. यह स्थिति झाडोल के लगभग सभी सरकारी विद्यालयों में देखने को मिलती है. पहाड़ी इलाका होने के कारण नदियों का अनियमित प्रवाह बच्चों को नुकसान न पहुंचाए. इसलिए सावधानी भी बरतनी पड़ती है.  

प्रधानाध्यापक ने अपने संबोधन में समुदाय के विकास में विद्यालय की भूमिका को बताते हुए विद्यालय को व्यवस्थित रखने के लिए सहयोग की अपील की. क्योंकि गाँव के इस विद्यालय में बियर की खाली बोतलें मिलना, मल-मूत्र आदि आम बात होती है. समुदाय की पहली पीढ़ी विद्यालय में पढ़ने आ रही है. इसलिए समुदाय के ज्यादातर बड़े लोग शिक्षा से दूर रहे हैं. लेकिन जाने-अनजाने वे गाँव के आसपास मौजूद शराब की दुकानों के करीब हैं. जिसका प्रभाव समय-समय पर विद्यालय प्रांगण में भी दिखता है. इन सबके बीच यहाँ के समारोह में समुदाय के लोगों की भी काफी भागीदारी होती है. समुदाय के लोग बच्चों में बांटने के लिए बूंदी और नमकीन आदि सामग्री अपनी स्वेच्छा से लाते हैं. नृत्य और संगीत के समय भी लोग बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार देते हैं. विद्यालय विकास को लेकर चर्चा करते हैं. क्योंकि विद्यालय के विकास का सारा फण्ड ग्राम सभा और सरपंच से होकर आता है. इसलिए समुदाय का जागरूक होना आवश्यक होता है. तथा समुदाय को भरोसे में लेना प्रधानाध्यापक के लिए आवश्यक.

11 बजने तक समारोह अपने अवसान की तरफ पहुँच जाता है. बच्चे उत्सुकता के साथ बूंदी और नमकीन मिलने का इंतजार करते हैं. साथ ही साथ वो अन्य किसी बड़े विद्यालय में चल रहे कार्यक्रम को देखने के लिए भी लालायित रहते हैं. बच्चों के साथ कुछ शिक्षक भी पड़ोस के माकड़देव स्थित माध्यमिक विद्यालय की और प्रस्थान करते है. इस प्रकार यहाँ आज़ादी के ७०वें समारोह की समाप्ति होती है. यह 15 अगस्त जाते-जाते बच्चों की आँखों में 26 जनवरी का इंतज़ार छोड़ जाता है. इस दिन बच्चों का उत्साह और उमंग देखने लायक होता है.
(फोटो बिपिन बिहारी दुबे)

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