मीना प्रजापति
सामाजिक न्याय आंदोलन की नई धारा विषय पर मीडिया स्टडीज़ ग्रुप द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पत्रकारों को संबोधित करते हुए ऊना दलित अत्याचार समिति के अध्यक्ष जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात मॉडल, गुजरात वाइब्रेंट, गुजरात नंबर वन जैसे नारों पर व्यंग्य करते हुए कहा कि आज गुजरात के गांवों में दलितों को उनके अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं। उनके द्वारा की जा रही एफ आई आर दर्ज नहीं की जाती है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से सवाल किया कि अगर दलित जानवरों की खाल ना निकालें तो क्या आप उन्हें वैकल्पिक रोजगार दोगे? हज़ारों एकड़ ज़मीनों का आबंटन दलितों के लिए किया गया है लेकिन वो सिर्फ कागजों तक सीमित है। गुजरात में दलितों को शारीरिक उत्पीडन सहना पड़ा है। हमारी मांग है कि हर दलित को पांच एकड़ जमीन दी जाये। सफाई कर्मियों को परमानेंट किया जाये। उन्होंने इन मांगों के साथ सरकार को चेतावनी भी दी कि अगर 15 सितंबर तक दलितों को ज़मीने नहीं मिली तो वह गुजरात में रेल रोको आंदोलन करेंगे। जिग्नेश मेवाणी के इस आंदोलन में किसान, छात्र , एक्टिविस्ट आदि शामिल हैं।
सामाजिक न्याय की पृष्ठभूमि बांधते हुए अनिल चमड़िया ने कहा कि जब -जब इस देश में सामजिक न्याय की मांग उठी है तब तब साम्प्रदायिकता फैली है। यह वो ताकतें हैं जो सामाजिक न्याय की मांग उठने से पहले ही रोकना चाहती हैं। जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात दलितों के साथ हो रहे इस तरह के व्यवहार के विरोध में यात्रा निकाली है। आज इस आंदोलन ने वर्ण व्यवस्था के बोझ को नकारा है।
प्रशांत टंडन ने कहा कि सामजिक न्याय का सन्देश गुजरात से आया है। सामाजिक न्याय को लेकर सोशल मीडिया पर पहले भी खूब हो हल्ला होता था लेकिन ज़मीनी स्तर पर दिखाई नहीं देता था। इस बार गुजरात का आंदोलन केवल सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि ज़मीनी स्तर पर हुआ है।
ऊना की घटना से उठे आंदोलन को समझने और बहुत कुछ सीखने के लिए भगत सिंह स्टूडेंट यूनियन से गई उफ़क पैंकर ने कहा कि आज ऐसा क्या हुआ है कि यह सरकार जे एन यू जैसे संस्थानों पर अत्याचार करने में लगी हुई है। सभी अल्पसंख्यक, दलित गुजरात आंदोलन से आज बहुत सीख ले रहे हैं। 2002 के दंगों के बाद गुजरात में गुजरात मॉडल अपनाया गया उस मॉडल में गरीबों की ज़मीन छीन ली गई। लेकिन ऊना दलित अत्याचार समिति द्वारा शुरू किये गए आंदोलन ने इसे तोडा है। आज वहाँ हर दलित और महिला के अधिकारों की मांग चल रही है।
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