Sunday, 2 October 2016

महात्मा गांधी : आज से आगे

मीना प्रजापति
गांधी शांति प्रतिष्ठान में गांधी जयंती के उपलक्ष्य में गांधी आज से आगे विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई। गांधी शांति प्रतिष्ठान हर साल 30 जनवरी और 2 अक्टूबर को गांधी जी पर कार्यक्रम आयोजित करता है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रकाश भाई का सम्मान साल और गाँधी साहित्य देकर किया गया। इस तरह के कार्यक्रम आज के वैमनस्य व मन मुटाव के माहौल को कम करने में सार्थक होते हैं। गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रमुख कार्यकर्त्ता कुमार प्रशांत ने भारत भूषण अग्रवाल की कविता 'आने वालों से एक सवाल' का पाठ किया ।

जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने प्रकाशभाई का परिचय देते हुए कहा कि गांधी जी के बारे में हम जब भी बात करते हैं तब प्रकाश भाई का नाम खुद ही चला आता है। गांधी जी की बातों में प्रकाश भाई को गांधी जी की समाज को बदलने की रणनीति दिखाई देती थी। जनसत्ता गुजरात के संपादक और वर्तमान में निरीक्षक पत्रिका का संपादन कर रहे प्रकाश भाई ने कार्यक्रम में अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि आजकल मेल फीमेल तो ख़त्म हो गया है। ईमेल चल रहा है। गांधी आज से आगे हैं और आज से आगे रहेंगे। आज हम लोग नेशन में बुरी तरह फंस गए हैं। और उससे बाहर निकलना ही नहीं चाहते है। गांधी को आज हम राष्ट्रपिता कहते हैं इसमें राष्ट्र शब्द जो है हम आज उसी में फंस कर रह गए हैं। हमने गांधी को राष्ट्रपिता तो घोषित कर दिया लेकिन हम नेशन से नहीं निकल पाये और गांधी उससे आगे निकल गए।
प्रकाश भाई ने रामचंद्र गुहा की किताब में लिखे विचारों का ज़िक्र करते हुए कहा कि जो लोग अपने राष्ट्र के प्रति आलोचनात्मक नजरिया नहीं रखते तो वो राष्ट्रवादी नहीं है। गांधी आज हम सब से आगे इसलिये हैं क्योंकि हम नेशन में रुक गए हैं। वक्ता ने वैश्वीकरण की रुपरेखा खीचते हुए कहा कि आज हम एक ही शक्ति की हुकूमत झेल रहे हैं। फुकियामा के विचारों का ज़िक्र करते हुए प्रकाश भाई ने कहा कि जब हमें अधिकार मिल जाते हैं और हम संतुष्ट हो जाते हैं। वास्तव में वह संतुष्टि भी बेचैनी पैदा करती है। और उस बेचैनी का उत्तर हम इस मॉडर्न कल्चर में ढूढने की कोशिश करते हैं।हम लोकतंत्र की बात तो करते है लेकिन हम इंस्टीट्यूशन में खो गए हैं। हमारे पास इंस्टीट्यूशन तो हैं लेकिन उनमें लोग नहीं हैं। ऐसे समय में गांधी जी कहते थे कि कहा लिबरल डेमोक्रेसी में जान तो तब आती है जब उसमें हर प्रकार के लोगो की पहल और सहभागिता हो । आज हमारी सोच राष्ट्र में बंध गई है। गांधी की अंतर्यात्रा में राज्य का क्रिटिक करना शामिल है। गांधी के सत्याग्रह की खोज प्यार के कॉन्सेप्ट से आई है। थोरो को पढ़कर गांधी ने सिविल डिसओबिडियंस की बात की। थोरो ने कहा कि ऑल लाइफ इस वन। ये अहिंसा और प्रेम से ही सिविल डिसओबिडियंस का कॉन्सेप्ट आया है।
आज राष्ट्र, राज्य और सरकार का क्रिटिकल मूल्यांकन नहीं करेंगे तो हम पीछे रह जायेंगे। इसीलिये मैं कहता हूँ की गांधी आज से आगे और कल से आगे हैं ।कार्यक्रम के अंत में अशोक जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। और दिल्ली गंधर्व विद्यालिया से आये खुशाल एंड टीम ने 'वैष्णव जन' भजन सुनाया।

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