मीना प्रजापति
फोटो : नवीव स्मार्टी चौधरी |
रामलीला शब्द में तो राम हैं लेकिन असल ज़िन्दगी में रामलीला से राम गायब होते जा रहे हैं। रामलीला में राम के बजाय राजनेता हावी हो रहे हैं। एक धार्मिक पर्व को राजनितिक खेला बना दिया गया है। कभी राम भाजपा पाले में, तो कभी समाजवादी, बसपा या कोंग्रेस के पाले में दिखाई देते हैं। अब बेचारे राम भी क्या करें उन पर भी राजनीती हावी होने लगी है।
रामलीला मंचों पर राजनेता जाकर अपनी पार्टी की उपलब्धियां गिनाना शुरू का देते हैं। क्या करें राजनेता अपनी आदत से मजबूर हैं। इसका ताजा उदहारण उड़ी हमले में हुए आतंकवादी हमले के बाद बदले के रूप में की गई सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण करना है। भाजपा चाहे कितना ही क्यों न, ना ना कर ले कि हम सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण नहीं कर रहे हैं लेकिन फिर भी सच्चाई तो ज़ुबान पर आ ही जाती है। दिल्ली के एक बड़े रामलीला में भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने अंगद का अभिनय करते हुए सर्जिकल स्ट्राइक का उल्लेख किया। तो क्या यह सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण नहीं है? रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर चाहे कितना ही गला फाड़कर कह लें कि हम राजनीतिकरण नहीं कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि इस सरकार में बोला कुछ जाता है और किया कुछ और जाता।है।
रामलीला में अब राम की रामलीला की खबरें न के बराबर आती हैं बल्कि नेता ने क्या बोला यह ज़्यादा प्रासंगिक हो जाता है। मंगलवार को मोदी उत्तर प्रदेश में दशहरा मनाने जा रहे है, तो ज़ाहिर सी बात है एक बार फिर रामलीला के मंच से चुनावी भाषण के बादल गरजेंगे। मोदी की रणनीति बड़ी तेज़ है हमें मालूम है कि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर जीत चाहिए तो सर्जिकल स्ट्राइक का उल्लेख करना ज़रूरी होगा। अगर वे ऐसा नहीं करते तो वे राष्ट्रवादी नहीं कहलायेंगे। यह स्थिति मोदी के लिए ठीक वैसी ही हो जायेगी जैसी भारत माता की जय न बोलने वालों की। बहरहाल कयास यही लगाये जा रहे हैं कि मोदी उत्तर प्रदेश की रामलीला में अपनी लीला ज़रूर दिखाएंगे। खैर यह सिर्फ भाजपा या मोदी का मसला नहीं है इनकी जगह कोई और पार्टी होती तो यही करती।
भारत में सर्जिकल स्ट्राइक कई बार हो चूका है लेकिन जैसा इस बार राजनीतिकरण किया जा रहा वैसा कभी नहीं किया गया। रामलीला असत्य पर सत्य की जीत का नाम है। और इसके बिलकुल विपरीत राजनीती है जहाँ असत्य ही असत्य भरा हुआ है। कोई भी अपने घोषणा पत्र में कहे गए वादों को पूरा नहीं करता, और अगले चुनावों के भाषणों के लिए मुद्दे उठाना, बनाना शुरू कर देते है। इस तरह से आज रामलीला राजलीला बन गई है। और इस राजलीला से राम गायब हैं।
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