मनीषा पाल
इस फिल्म में नारी शक्ती को दिखाया गया है. मुसिबतो से पीछे ना हटने वाली अकिरा ने एक और संदेश दिया कि कोई भी हडताल या अपनी मांग अगर शांतिपूण व अहिंसक तरीके से रखी जाए तो बात को समझा व उस समस्या का हल निकाला जा सकता है. जैसे- अकिरा जब भीड में अकेली शांति से बैठी होती है और कोई भी नारे बाजी़ नहीं कर रही होती और कमीश्नर के आने तक का इंतजा़र करती है. लेकिन जहाँ अंत में फिल्म यह संदेश देती है कि हर लड़की को अकिरा जैसा बनना चाहिए. यँहा फिल्म एक सवाल खड़े करती है कि क्या अकिरा जैसी लडकियों के लिए समाज को कुछ नहीं करना चाहिए? क्या हर लडकी अकिरा की तरह इस तरह के समस्याओं का सामने कर पाएगी? ये सवाल 'अकिरा' फिल्म छोड जाती है. फिल्म के क्लाईमेक्स में कोई दम नज़र नहीं आता. अकिरा को कही कोई इंसाफ नहीं मिलता. अकिरा को अंत मे अपनी सफाई पेश करने का भी मौका नहीं मिल पाता की वो पागल नहीं है, बल्कि उसे पागल बनाया गया है.
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